Rajasthan History : Meena Aandolan | मीणा आन्दोलन

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Rajasthan History : Meena Aandolan | मीणा आन्दोलन – इस भाग में सिरोही हत्याकांड, वनवासी सेवा संघ और मीणा आन्दोलन (Meena Aandolan) के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है |


सिरोही हत्याकांड

  • 5 व 6 मई, 1922 को रियासत की सैनिक टुकड़ी ने सिरोही की रोहेड़ा तहसील के बालोलिया व भूला गाँवों को घेर लिया और अंधाधुंध फायरिंग के साथ-साथ दोनों गाँवों में आग भी लगा दी।
  • अनेक भील मारे गए।
  • राजस्थान सेवा को भील पीडितों की सहायतार्थ कार्य किया।

वनवासी सेवा संघ

  • भीलों सहित आदिवासियों में जागरण की लहर लाने के प्रयासों की श्रृंखला में सर्व श्री भूरेलाल बया, भोगीलाल पण्ड्या व राजकुमार मानसिंह जैसे समाज सुधारकों ने ‘वनवासी सेवा संघ‘ की स्थापना कर भीलों में सामाजिक व राजनीतिक चेतना लाने का प्रयास किया।
  • इसके अलावा श्री माणिक्यलाल वर्मा, श्री हरिदेव जोशी व श्री गौरीशंकर उपाध्याय के नाम भी प्रमुख हैं।
  • उन्होंने आदिवासी भीलों के लिए स्कूलें, प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र, छात्रावास आदि सुविधाएँ उपलब्ध करवाकर उनमें नई चेतना का प्रसार किया।

मीणा आन्दोलन (Meena Aandolan) –

  • मीणा जाति के लोग बड़े मेहनती, निष्ठावान् व दबंग व्यक्तित्व के धनी रहे हैं।
  • इन्होंने राज्य के कई भागों पर शासन किया है।
  • लेकिन कालांतर में मीणों का शासन समाप्त हो जाने के कारण ये अपनी आजीविका कमाने के लिए चोरी और लूटपाट करने लगे।
  • सन् 1924 के क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट तथा जयपुर राज्य के जरायम पेशा कानून, 1930 के तहत इन्हें जरायम पेशा मानकर सभी स्त्री-पुरुषों को रोजाना थाने पर उपस्थिति देने के लिए पाबंद किया।
  • मीणा समाज ने इसका तीव्र विरोध किया तथा अपने मानवोचित अस्तित्व के लिए ‘मीणा जाति सुधार कमेटी‘ एवं 1933 में ‘मीणा क्षत्रिय महासभा‘ का गठन किया।
  • जयपुर क्षेत्र के जैन संत मगनसागर की अध्यक्षता में अप्रैल 1944 में मीणों का एक वृहद् अधिवेशन नीम का थाना में हुआ, जहाँ पं. बंशीधर शर्मा की अध्यक्षता में राज्य मीणा सुधार समिति का गठन किया गया।
  • इस समिति ने 1945 में जरायम पेशा व अन्य कानून वापस लेने की माँग करते हुए समिति के संयुक्त मंत्री श्री लक्ष्मीनारायण झरवाल के नेतृत्व में आंदोलन चलाया।
  • जुलाई, 1946 में सरकार ने स्त्रियों व बच्चों को पुलिस में उपस्थिति देने से मुक्त कर दिया।
  • बाद में कभी भी अपराध नहीं करने वाले मीणों को जरायम पेशा कानून के तहत रजिस्टर में नाम दर्ज करवाने में सरकार ने छूट दी।
  • 28 अक्टूबर, 1946 को एक विशाल सम्मेलन बागावास में आयोजित कर चौकीदार मीणों ने स्वेच्छा से चौकीदारी के काम से इस्तीफा दिया तथा इस दिन को ‘मुक्ति दिवस‘ के रूप में मनाया।
  • मीणों द्वारा लगातार प्रयास करने पर सन् 1952 में कहीं जाकर यह जरायम पेशा संबंधी काला कानून रद्द हुआ।

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