राजस्थान संस्कृति | राजस्थान चित्रकला की जोधपुर शैली

Share with friends

राजस्थान संस्कृति | राजस्थान चित्रकला की जोधपुर शैली : – इसमें आपको Rajasthan Culture की Rajasthan Chitrakala की Rajasthan Chitrakala Ki Jodhpur Shaili के बारे में विस्तृत जानकारी मिलेगी। Jodhpur Shaili के प्रारंभ से लेके उसके स्वर्ण काल तक का सम्पूर्ण वर्णन दिया गया है । जोधपुर शैली में अलग-अलग राजाओं के योगदान को भी उल्लेखित किया गया है। इसके चित्र, चित्रकारों और इसकी प्रमुख विशेषताओं का वर्णन किया गया है।


जोधपुर शैली

  • मारवाड़ शैली के पूर्ण विकास का काल 16वीं से 17वीं शताब्दी रहा है।
  • मारवाड़ में कला एवं संस्कृति को नवीन परिवेश देने का श्रेय ‘मालदेव’ (1532-1568 ई.) को है।
  • इस काल की प्रतिनिधि चित्रशैली के उदाहरण हमें ‘चौखे का महल‘ तथा ‘चित्रित उत्तराध्ययन सूत्र‘ से प्राप्त होते हैं।
  • राजा सूरसिंह के समय ऐतिहासिक सचित्र ग्रंथों में ‘ढोला-मारू‘ तथा पुस्तक प्रकाश, जोधपुर के ‘भागवत‘ का प्रमुख स्थान है।
  • सन् 1610 में लिखित एंव चित्रित ‘भागवत‘ मेवाड़ एवं मारवाड़ की अनेक विशेषताओं से युक्त है।
  • उपर्युक्त भागवत में अर्जुन, कृष्ण आदि की वेशभूषा मारवाड़ी है तो आभूषण मुगलई हैं।
  • चित्रों के शीर्षक नागरी लिपि में गुजराती भाषा में दिये गये हैं।
  • पाली का रागमाला चित्र सम्पुट मारवाड़ की प्राचीनतम तिथियुक्त कृति के रूप में महत्व रखता है।
  • सन् 1623 में कलाकार वीरजी द्वारा पाली के प्रसिद्ध वीर पुरुष विठ्ठलदास चाँपावत के लिए ‘रागमाला चित्रावली‘ चित्रित की गई।
  • वीरजी द्वारा ही पाली रागमाला के समान ‘उपदेशमालावृत्ति 1634 ई. में बालोतरा में चित्रित की गई।
  • महाराजा ‘गजसिंह‘ (1618-1632 ई.) के राज्यकाल में जोधपुर शैली विकास की ओर उन्मुख होती है।
  • इनके समय में चित्रित ‘ढोलामारू‘ तथा ‘भागवत‘ के चित्र इस तथ्य को इंगित करते हैं।

महाराजा अजीतसिंह और जोधपुर शैली

  • मारवाड़ की एक स्वतंत्र चित्रण परम्परा उभर कर आयी जिसका प्रारम्भ महाराजा अजीतसिंह (1707-1724 ई.) के राजकाल से होता है।
  • अजीतसिंह जी के शासन काल के चित्र सम्भवतः मारवाड़ शैली के सबसे अधिक सुन्दर एवं प्राणवान चित्र हैं।
  • जिनमें सामन्ती संस्कृति का सजीव चित्रण प्रस्तुत हुआ है।
  • महाराजा अभयसिंह (1744-1749 ई.) के काल में अन्य मारवाड़ क्षेत्रीय ठिकानों में भी चित्रण को प्रोत्साहन प्राप्त हुआ तथा कलाकारों ने इसी चित्र परम्परा के प्रभाव में आकर चित्रण किया।
  • महाराजा अभयसिंह के राज्यकाल में चित्रकार डालचन्द (डालू) को विशेष ख्याति प्राप्त हुई।
  • इनके द्वारा अनेक कलात्मक चित्रों की रचना की गई जिनमें राजसी ठाट-बाट एवं शिकार के चित्रों को विशेष महत्व दिया गया है।
  • इनके चित्र ‘महाराजा अभयसिंह नृत्य देखते हुए‘ 1725 ई. मेहरानगढ़ संग्रहालय, जोधपुर एवं कुंवर संग्रामसिंह संग्रह, जयपुर में सुरक्षित देखे जा सकते है।
  • महाराजा रामसिंह के समय में लम्बी तुरंदार पगड़ियों का पहनावा बढ़ा जिसने चित्रों में विशेष आकर्षण पैदा किया।
  • चित्रकार फेजअली व उदयराम महाराजा विजयसिंह के राज्यकाल के दरबारी चित्रकार रहे है

जोधपुर शैली में महाराजा मानसिंह का योगदान

  • महाराजा मानसिंह (1803-1843 ई.) ने मारवाड़ की चित्रकला को चरमोत्कर्ष पर पहुंचाया।
  • नाथ सम्प्रदाय के अनुयायी महाराजा ने नाथों से सम्बन्धित असंख्य चित्र बनवाये।
  • इस समय के प्रमुख चित्रकारों में ‘अमरदास भाटी‘, ‘दाना भाटी‘, ‘शंकरदास‘, ‘माधोदास‘, ‘रामसिंह भाटी‘, ‘शिवदास‘ ‘लादूनाथ‘, ‘सरताज सतिदास‘ इत्यादि प्रमुख है।
  • चित्रकार ‘शिवदास‘ द्वारा सन् 1816 ई. में चित्र में ‘स्त्री को हुक्का पीते‘ हुए दिखाया गया है।
  • दाना भाटी द्वारा निर्मित चित्रों में मारवाड़ की चित्रण परम्परा का चरमोत्कर्ष देखा जा सकता है।
  • अजीतसिंह घाणेराव शिकार करते हुए 1825 ई. लघुचित्र द टाइम्स ऑफ इण्डिया वर्षिको में प्रकाशित आकर्षक कृति दाना भाटी की सभी चित्रण विशेषताओं से परिपूर्ण है।
  • इनकी चित्रशाला में प्रशिक्षित चित्रकारों ने दाना भाटी को चित्रण शैली के अनुरूप ही एक ऐसे स्कूल की स्थापना की जिसे हम दाना भाटी स्कूल के चित्र कह सकते हैं।
  • इनके चित्रों में विषय-वस्तु की व्यापकता है।
  • इन्होंने नाथ सम्प्रदाय से संबंधित अनेक चित्र बनाये हैं।
  • महाराजा मानसिंह‘ एवं ‘तख्तसिंह‘ के काल में अन्तःपुर के विकास के श्रृंगारपूर्ण चित्रण का बाहुल्य रहा है।
  • इन चित्रों में सर्वत्र महाराजा “तथा महारानी ने ही नायक-नायिका का स्थान लिया है।

जोधपुर शैली के चित्रों के विषय ( Rajasthan Chitrakala Ki Jodhpur Shaili )

  • मारवाड़ (जोधपुर) शैली विषयों में प्रेमाख्यान प्रधान विषय रहा है।
  • इन प्रेमाख्यानों में ढोला-मरवण, मूमल-निहालदे, रूपमति बाजबहादुर, कल्याण- रागिनी प्रसिद्ध रहे हैं।
  • इसके अलावा दरबारी जीवन, रेगिस्तानी टोले, राज दरबार के ठाठ-बाठ तथा उत्तराध्यान्तर सूत्र के चित्र भी प्रमुख हैं।
  • राधा-कृष्ण विषय का अन्य शैलियों की अपेक्षा यहां बहुत कम चित्रण हुआ है और जो चित्र बने हैं, उनका आधार जयदेव का श्रृंगारिक काव्य ‘गीत-गोविन्द’, केशव की ‘रसिक प्रिया’ तथा मतिराम का ‘रसराज’ है।
  • राग-रागनियाँ’, ‘बाहरमासा’ पर भी विशद् रूप से चित्रण हुआ है।

प्रमुख चित्रकार

  • मारवाड़ शैली के प्रमुख चित्रकारों में शिवदास भाटी, नारायणदास, बिशनदास, किशनदास भाटी, अमरदास, रामू, नाथो, डालू, फेजअली, उदयराम, अकली, रहीम, बभूत, भाटी, मीताराम, चतुर्भुज, रतनजी भाटी, देवदासजी, कालू, छज्जू भाटी, जीतमल आदि रहे हैं।
  • मुख्यत: भाटी परिवार ने मारवाड़ शैली को नई ऊंचाइयों पर पहुँचाया।

जोधपुर शैली की विशेषताएँ ( Rajasthan Chitrakala Ki Jodhpur Shaili )

  • स्त्रियों के आभूषणों में मोतियों का बाहुल्य है, साथ ही मखमली तथा सुनहरी जूतियाँ भी पहने दिखाई गई हैं।
  • स्त्रियों के वस्त्रों में कहीं कहीं स्त्रियों को सिर पर टोपी पहने चित्रित किया है, तो कहीं पर उन्हें लूगड़ी की जगह दुपट्टा ओढ़े चित्रित किया है।
  • मारवाड़ में ही एच. के. मूलर द्वारा बनाये गये भारतीय ऐतिहासिक कथाओं से जुड़े तैल रंगीय छाया प्रकाश द्वारा यूरोपियन पद्धति में बने चित्रों ने विशेष ख्याति प्राप्त की।
  • जिसके फलस्वरूप यहाँ के महाराजाओं, दरबारी सामन्तों सभी ने इस पद्धति पर बने व्यक्ति चित्र एवं ऐतिहासिक चित्रों को महत्त्व दिया।
  • जोधपुर शैली के पुरुष लंबे-चौड़े, गठीले बदन के तथा उनके गल-मुच्छ, ऊँची पगड़ी, राजसी वैभव के वस्त्राभूषण विशेष प्रभावशाली होते हैं।
  • स्त्रियों के अंग-प्रत्यंगों का अंकन भी गठीला है।
  • उनकी वशेभूषा में ठेठ राजस्थानी लहँगा, ओढ़नी और लाल फुदनों का प्रयोग प्रमुख रूप से हुआ है।
  • बादाम-सी आँखें और ऊँची पाग जोधपुर शैली की अपनी निजी देन है।
  • मारवाड़ शैली में लाल, पीले रंग का बाहुल्य है, जो स्थानीय विशेषता है।
  • चित्रों के हाशिये में भी पीले रंग का प्रयोग किया गया है।
  • मरु के टीले, छोटे-छोटे झाड़ एवं पौधे, विद्युत रेखाओं को सर्पाकार रूप में एवं मेघों को गहरे काले रंग में गोलाकार दिखाया गया है।
  • आम्र वृक्षों का चित्रण अधिक हुआ है।
  • पशुओं में ऊँट, घोड़ा, हिरण तथा श्वान को अधिक चित्रित किया गया है, जो स्थानीय स्वरूप को दर्शाते हैं।
  • चित्रों में खंजन पक्षी को भी बखूबी दर्शाया है।

FAQ ( Rajasthan Chitrakala Ki Jodhpur Shaili )

1. स्त्री को हुक्का पीते हुए का चित्र कब किसने बनाया?

ANS. चित्रकार ‘शिवदास‘ द्वारा सन् 1816 ई. में चित्र में ‘स्त्री को हुक्का पीते‘ हुए दिखाया गया है।

WhatsApp Channel Join Now

Telegram Group Join Now

2. नाथ सम्प्रदाय से सम्बन्धित असंख्य चित्र असंख्य चित्र किस शैली में बने हुए है?

ANS. जोधपुर शैली में महाराजा मानसिंह के समय बने हुए है।

3. जोधपुर शैली या मारवाड़ शैली के प्रमुख चित्रकार किस परिवार से सम्बन्ध रखते है?

ANS. मारवाड़ शैली के प्रमुख चित्रकारों में शिवदास भाटी, नारायणदास, बिशनदास, किशनदास भाटी, अमरदास, रामू, नाथो, डालू, फेजअली, उदयराम, अकली, रहीम, बभूत, भाटी, मीताराम, चतुर्भुज, रतनजी भाटी, देवदासजी, कालू, छज्जू भाटी, जीतमल आदि रहे हैं। मुख्यत: भाटी परिवार ने मारवाड़ शैली को नई ऊंचाइयों पर पहुँचाया।

4. खंजन पक्षी का चित्रण किस शैली के चित्रों में मिलता है?

ANS. जोधपुर शैली में ।

राजस्थान सामान्य ज्ञान से सम्बंधित ये पोस्ट्स भी पढ़ें –

Leave a Comment