Rajasthan History : Bijouliya Kisaan Aandolan | बिजौलिया किसान आन्दोलन – इस POST से राजस्थान इतिहास का नया अध्याय किसान आन्दोलन प्रारम्भ किया जा रहा है | इस भाग में आपको राजस्थान के Bijouliya Kisaan Aandolan के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी मिलेगी |
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बिजौलिया किसान आन्दोलन (Bijouliya Kisaan Aandolan) –
- राजस्थान में संगठित किसान आंदोलन सर्वप्रथम बिजौलिया में 1897 में प्रारम्भ हुआ।
- उस समय बिजौलिया के ठिकानेदार राव कृष्णसिंह थे।
- बिजौलिया की स्थापना अशोक परमार द्वारा की गई थी।
- इसका शुद्ध नाम ‘विजयावल्ली‘ था जो बाद में बिजौलिया हो गया।
- वर्तमान में यह राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में स्थित है।
- बिजौलिया को ‘ऊपरमाल‘ भी कहते हैं।
- बिजौलिया में मुख्यतः धाकड़ जाति के किसान थे।
- इस ठिकाने में भू-राजस्व निर्धारण एवं संग्रह की पद्धति इस आंदोलन का मुख्य मुद्दा थी।
- इस कार्य हेतु लाटा एवं पूँता पद्धति मुख्यत: प्रचलित थी।
- भू-राजस्व का भुगतान न करने पर किसानों को भूमि से बेदखल कर दिया जाता था।
- भू-राजस्व के अतिरिक्त किसानों से भारी संख्या में लागबाग व बैठ-बेगार भी ली जाती थी।
- सन् 1897 में ऊपरमाल के किसानों ने एक मृत्यु भोज के अवसर पर गिरधारीपुरा नामक ग्राम में सामूहिक रूप से किसानों की ओर से नानजी और ठाकरी पटेल को उदयपुर भेजकर ठिकाने के जुल्मों के विरुद्ध महाराणा से शिकायत करने का निर्णय किया।
- राज्य सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की।
- इससे बिजौलिया ठिकाने के राव कृष्णसिंह के हौंसले बढ़ गए।
- उसने उदयपुर जाने वाले नानजी और ठाकरी पटेल को ऊपरमाल से निर्वासित कर दिया।
- किसानों का पहला प्रयत्न असफल रहा।
- 1906 में बिजौलिया के राव पृथ्वीसिंह द्वारा तलवार बँधाई की लागत (उत्तराधिकारी शुल्क अर्थात् ठिकानेदार द्वारा उत्तराधिकारी के अधीन ताजपोशी होने पर जनता से वसूल किया जाने वाला कर) जनता पर डाल दिए जाने के कारण किसानों ने साधु सीतारामदास, फतहकरण चारण एवं ब्रह्मदेव के नेतृत्व में इसका विरोध करते हुए भूमि को पड़त रखा और भूमि कर नहीं दिया।
- लेकिन ठिकानेदार की दमन कार्यवाही से आंदोलन कुछ समय के लिए दब गया।
- 1916 में श्री विजयसिंह पथिक साधु सीतरामदास के आग्रह पर इस आंदोलन से जुड़ गए।
- पथिक जी ने 1917 ई. में ‘ऊपरमाल पंच बोर्ड‘ नाम से एक संगठन स्थापित कर क्रांति का बिगुल बजाया।
- श्री मन्ना पटेल इस पंचायत का सरपंच बना।
- पथिक ने बिजौलिया किसान आंदोलन को एक निश्चित व संगठित स्वरूप प्रदान किया।
- प्रथम विश्व युद्ध प्रारंभ हो जाने के कारण किसानों पर युद्ध चन्दा व अन्य कर आरोपित किये गये जिसका किसानों ने घोर विरोध किया तो उन पर दमन चक्र शुरु हो गया।
- बिजौलिया के किसानों की मांगों के औचित्य की जाँच करने के लिए अप्रैल, 1919 में न्यायमूर्ति बिन्दूलाल भट्टाचार्य जाँच आयोग गठित हुआ जिसने विभिन्न कर एवं लागबागों में को समाप्त करने की अनुशंषा की, परन्तु मेवाड़ राज्य ने कोई निर्णय नहीं लिया फलतः किसानों ने लगान एवं करों का भुगतान बंद कर दिया।
- किसानों के आंदोलन की उग्रता को देखते हुए भारत सरकार के आदेश पर राजपूताना के ए.जी.जी रॉबर्ट हॉलैण्ड स्वयं 4 फरवरी, 1922 को बिजौलिया गये।
- किसानों का पक्ष राजस्थान सेवा संघ के प्रतिनिधियों (माणिक्यलाल वर्मा, मोती लाल पटेल, रामनारायण चौधरी आदि) ने रखा।
- हॉलैण्ड के प्रयासों से ठिकाने व किसानों के मध्य 11 जून, 1922 को सम्मानजनक समझौता हुआ और अधिकांश लाग-बागें व कर हटा लिये गये, गिरफ्तार लोगों को रिहा कर दिया गया तथा किसानों की कई माँगे मान ली गई।
- इस तरह किसानों की अभूतपूर्व विजय हुई।
- समझौता अधिक टिकाऊ नहीं रह पाया।
- बाद में पुनः लगान की दरें बढ़ाने के कारण आंदोलन शुरू हुआ।
- अब पथिक जी इस आंदोलन से 1927 में पृथक हो गये थे और उसके पश्चात् सेठ जमनालाल जी एवं हरिभाऊ जी उपाध्याय के हाथ में इसका नेतृत्व आ गया।
- 1931 में सेठ जी ने उदयपुर महाराणा एवं उनके प्रधानमंत्री सर सुखदेव प्रसाद से मुलाकात कर एक समझौता किया, जिसके अनुसार किसानों की मांगे स्वीकार की गई परंतु इसका ईमानदारी से पालन नहीं हुआ।
- इस आंदोलन का पटाक्षेप 1941 में मेवाड़ के प्रधानमंत्री सर टी. विजय राघवाचार्य के बनने पर हुआ।
- उन्होंने राजस्व विभाग के मंत्री डॉ. मोहनसिंह मेहता को समस्या का अंतिम समाधान करने के उद्देश्य से बिजौलिया भेजा।
- उन्होंने माणिक्यलाल वर्मा के नेतृत्व में किसानों की माँगे मानकर उनकी जमीनें वापस दिलवा दी।
- श्री वर्माजी के जीवन की यह प्रथम बड़ी सफलता थी।
- इस आंदोलन ने राज्य की अन्य रियासतों को भी एक नई चेतना प्रदान की।
- यह आंदोलन भारतवर्ष का प्रथम व्यापक और शक्तिशाली किसान आंदोलन था।
FAQ (Bijouliya Kisaan Aandolan) :-
ANS. यह आन्दोलन 1897 में आरम्भ हुआ था |
ANS. इस आन्दोलन में मुख्यत: धाकड़ जाति के किसान थे |
ANS. साधू सीताराम दास के आग्रह पर विजयसिंह पथिक सन् 1916 ई. में इस आन्दोलन से जुड़े थे |
ANS. विजय सिंह पथिक जी इस आंदोलन से 1927 में पृथक हो गये थे और उसके पश्चात् सेठ जमनालाल जी एवं हरिभाऊ जी उपाध्याय के हाथ में इसका नेतृत्व आ गया।
ANS. बिजौलिया किसान आंदोलन का पटाक्षेप 1941 में मेवाड़ के प्रधानमंत्री सर टी. विजय राघवाचार्य के बनने पर हुआ।