Rajasthan VDO Exam : ग्राम विकास अधिकारी परीक्षा देने से पूर्व कंप्यूटर के इन प्रश्नो को जरूर पड़े

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तो दोस्तों जैसा कि आप सभी को पता है कि Rajasthan VDO Exam Computer राजस्थान ग्राम विकास अधिकारी का एग्जाम बहुत ही नजदीक है इसके लिए हम आप सभी के लिए कंप्यूटर से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्नों का समावेश इस पोस्ट में करने वाले हैं | उम्मीद है कि आपको यह पसंद आएगी और आप अपनी यह सभी साथियों के साथ भी शेयर कर सकते हैं |


Table of Contents

Rajasthan VDO Exam Computer

कम्प्यूटर एक इलेक्ट्रॉनिक युक्ति है जो बहुत तेज गति से व परिशुद्धता से कार्य करती है। इसकी विशाल स्मृति में बड़ी संख्या में सूचनाओं का संग्रहण किया जा सकता है। कम्प्यूटर की मूल संरचना (या संगठन) एक जैसी ही होती है चाहे वह बड़ा कम्प्यूटर हो या छोटा। प्रत्येक कम्प्यूटर के निम्न पाँच भाग होते हैं-

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1. निवेश या इनपुट इकाई (Input Unit)2. स्मृति (Memory)
3. गणितीय एवं तार्किक इकाई (ALU)
4. कण्ट्रोल युनिट (Control Unit)
5. निर्गत या आउटपुट इकाई (Output Unit)
इनपुट इकाई द्वारा हम अपना डाटा, निर्देश या प्रोग्राम कम्प्यूटर में प्रविष्ट कराते हैं, जो RAM के द्वारा ग्रहण किया जाता है और मैमोरी में उचित स्थान पर स्टोर कर दिया जाता है। आवश्यकता पड़ने पर ए.एल.यू. मैमोरी से ही डाटा तथा निर्देश ले लेती है, जहाँ कंट्रोल इकाई के आदेश के अनुसार उन पर विभिन्न क्रियाएँ की जाती हैं और परिणाम आउटपुट इकाई को प्रेषित कर दिये जाते हैं या पुनः मैमोरी में ही रख दिये जाते हैं। अन्य सभी इकाईयाँ कंट्रोल इकाई के नियंत्रण में कार्य करती हैं। कम्प्यूटर प्रणाली के दो भाग होते हैं1. कम्प्यूटर हार्डवेयर
2. कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर

कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर

कम्प्यूटर के वे सभी हिस्से जो भौतिक रूप से विद्यमान होते हैं तथा जिन्हें हम देख सकते हैं व छू सकते हैं, कम्प्यूटर हार्डवेयर कहलाते हैं। सम्पूर्ण हार्डवेयर को हम निम्न भागों में बाँट सकते हैं
• केन्द्रीय संसाधन इकाई (CPU)
• पेरीफेरल डिवाइसेज (Peripheral Devices
• संग्रहण युक्तियाँ (Storage Devices)
• मीडिया (Media)

केन्द्रीय संसाधन इकाई (Central Processing Unit-CPU):

कम्प्यूटर की सिस्टम यूनिट में मुख्य हार्डवेयर CPU होता है। सिस्टम यूनिट एक बॉक्स होता है जिसमें CPU के अलावा कम्प्यूटर की अन्य डिवाइसेज एवं परिपथ बोर्ड होते हैं जो एक मुख्य परिपथ बोर्ड ‘मदर बोर्ड’ पर संयोजित रहते हैं। इस प्रकार कम्प्यूटर का अधिकांश परिपथ सिस्टम यूनिट में ही होता है।
CPU को कम्प्यूटर का मस्तिष्क कहा जा सकता है। इसका मुख्य कार्य प्रोग्राम्स को क्रियान्वित करना होता है। CPU कम्प्यूटर की गणितीय, तार्किक तथा नियंत्रण संबंधी संक्रियाएँ संपन्न करती है।
CPU कम्प्यूटर की मुख्य इकाई है जो कम्प्यूटर की सभी क्रियाओं को सम्पन्न करती है। यह की-बोर्ड से प्राप्त निर्देशों के अनुसार परिणामों की गणना करता है। इसमें सभी प्रकार की गणितीय व तार्किक समस्याओं का समाधान किया जाता है। प्रोसेसिंग के प्रश्चात् प्राप्त परिणाम यह मॉनिटर या प्रिन्टर की सहायता से हमें उपलब्ध कराता है। कम्प्यूटर के सभी भागों जैसे प्रिंटर, की-बोर्ड, माउंस, मॉनीटर, हार्ड डिस्क ड्राइव, फ्लॉपी डिस्क, सीडी रोम ड्राइव आदि को संचालित करने वाले विभिन्न सर्किट आदि इसी भाग में लगे होते हैं। CPU में ALU (Arithmatic Logical Unit) होती है जो सभी प्रकार की गणितीय गणनाएँ सम्पन्न करती है।
कम्प्यूटर CPU के निम्न भाग हाते हैं-
• कंट्रोल युनिट
• ALU
• रजिस्टर
• आंतरिक बर (IB)

नियंत्रण इकाई (Control Unit):

यह युनिट हार्डवेयर क्रियाओं को संचालित एवं नियंत्रित करती है। यह हार्डवेयर की इनपुट युनिट से निवेश (Input) किये गये डाटा के संचरण को मेमोरी से संग्रहण डिवाइस और आउटपुट युनिट तक नियंत्रित करती है।
इंटेल कार्पोरेशन (USA) ने 1970 में सबसे प्रथम माइक्रोप्रोसेसर ‘Intell-4004’ बनाया था। यह प्रोसेसर सिलिकॉन पदार्थ का बना होता है।

अंकगणितीय व तार्किक इकाई (ALU-Arithmetic Logic Unit):

कम्प्यूटर की अंकगणितीय व तार्किक इकाई (ALU) एक डिजीटल इलेक्ट्रॉनिक परिपथ (Circuit) है जो अंकगणितीय गणनाएँ व तार्किक क्रियाएँ संपन्न करती है। कम्प्यूटर की ALU इकाई नियंत्रण इकाई के निर्देशानुसार वास्तविक गणनाओं यथा-योग, बाकी, गुणा, भाग, तार्किक क्रियाएँ (Logical Operations) और तुलना करने का कार्य संपत्र करती है। ALU तार्किक क्रियाओं में दो संख्याओं या डट की तुलना कर प्रक्रिया में निर्णय लेने का कार्य भी करती है।
ALU कम्प्यूटर की नियंत्रण इकाई (CU) से निर्देश या मार्गदर्शन प्राप्त करती है तथा कम्प्यूटर की मेमोरी से डाटा प्राप्त कर प्रक्रियांकन के बाद परिणाम को मेमोरी में ही वापस पहुँचा देती है।

मेमोरी (Memory):

कम्प्यूटर मेमोरी वह इलेक्ट्रॉनिक स्थान है जहाँ कम्प्यूटर डाटा, सूचनाएँ एवं प्रोग्राम्स संग्रहित रहते हैं और आवश्यकता होने पर तत्काल कम्प्यूटर को उपलब्ध हो जाते हैं। मेमोरी दो प्रकार की होती है• आंतरिक या मैन मेमोरी
• बाह्य या सहायक/द्वितीयक मेमोरी

प्राथमिक या आंतरिक स्मृति (Primary or Internal Memory):

कम्प्यूटर के CPU में स्थित प्राथमिक स्मृति कम्प्यूटर का कार्यकारी संग्रह होता है। यह सर्वाधिक काम में आने वाली मेमोरी है। यह कम्प्यूटर का अति महत्त्वपूर्ण अंग है, जिसमें प्रक्रिया के दौरान आँकड़े व सूचनाएँ (Data) तथा कम्प्यूटर प्रोग्राम स्थित रहते हैं और आवश्यकता पड़ने पर तत्काल उपलब्ध हो जाते हैं। इसे ‘मैन मेमोरी’ भी कहते हैं। मेमोरी में डाटा व प्रोग्राम के संग्रह हेतु अनेक स्थान होते हैं जिनकी संख्या निश्चित होती है तथा इसे अतिरिक्त मेमोरी लगाकर बढ़ाया जा सकता है। यह संख्या मेमोरी की क्षमता या आकार कहलाता है, जैसे 256KB, 512MB. 2GB 4GB आदि। इस मेमोरी में यूजर द्वारा प्रयुक्त किये जा रहे प्रोग्राम्स के लिए आवश्यक सिस्टम सॉफ्टवेयर प्रोग्राम्स भी संग्रहित रहते हैं। प्राथमिक मेमोरी में प्रत्येक स्थान का एक एड्रेस (address) होता है जिसे उसकी पहचान संख्या कहते हैं। प्राथमिक मेमोरी एक सेमीकण्डक्टर (अर्द्धचाललक) चिप होती है। कम्प्यूटर की प्राथमिक या मुख्य स्मृति (Main Memory) दो प्रकार की होती है
1. रैम (RAM- Random Access Memory) : रैम एक रीड/राइट (read/write) मेमोरी होती है। इस मेमोरी में न केवल डाटा को पढ़ा जा सकता है बल्कि उसमें परिवर्तन करके संग्रहित भी किया जा सकता है। यह कम्प्यूटर की अस्थाई स्मृति (Volatile Memory) होती है। इसमें निवेश (input) किये गये डाटा एवं सूचनाएँ जब तक ही सुरक्षित रहती हैं जब तक कि इसे विद्युत सप्लाई मिलती रहती है। विद्युत सप्लाई बंद करने या बाधित होने पर रैम में संग्रहित सूचनाएँ एवं डाट समाप्त हो जाते हैं।
रैम में ही की-बोर्ड या अन्य इनपुट डिवाइस से प्राप्त किया गया डाटा प्रक्रिया से पहले संग्रहीत होता है तथा CPU द्वारा आवश्यकतानुसार प्रक्रियांकन हेतु डाटा रैम से ही प्राप्त किया जाता है। वर्तमान में RAM की क्षमता या आकार IMB से लेकर 4GB या अधिक तक उपलब्ध हैं।
2. रोम (ROM- Read Only Memory) : रोम एक स्थाई मेमोरी है। कम्प्यूटर में पॉवर सप्लाई बंद या बाधित होने पर भी इसके डाटा व प्रोग्राम मिटते नहीं है। परन्तु ROM में हम केवल आँकड़े व प्रोग्राम को पढ़ सकते हैं, उस पर कुछ लिख नहीं सकते ओर न ही उसमें कोई परिवर्तन कर सकते हैं। रोम में कम्प्यूटर निर्माण के समय कुछ डाटा व प्रोग्राम संग्रहित कर दिये जाते हैं। इसमें पूर्व में संग्रहीत इन डाटा व प्रोग्राम को नष्ट नहीं किया जा सकता है। जैसे ही कम्प्यूटर चालू किया जाता है तो ROM में संग्रहित प्रोग्राम स्वतः ही सक्रिय होकर कम्प्यूटर के सभी डिवाइसेज की जाँच कर उन्हें सक्रिय अवस्था में लाते हैं। ROM में संग्रहित ये प्रोग्राम (BIOS- Basic Input-Output System) के नाम से जाने जाते हैं। विद्युत सप्लाई बंद हो जाने के बाद भी ROM के प्रोग्राम व डाटा संग्रहित व सुरक्षित रहते हैं। रोम एक फर्मवेयर (हार्डवेयर एवं सॉफ्टवेयर की संयोजित तकनीक) है।

द्वितीयक मेमोरी (Secondary Memory) :

कम्प्यूटर की आंतरिक मेमोरी के अलावा आँकड़ों को सुरक्षित रखने की अन्य विधियाँ द्वितीयक (या सहायक) भण्डारण या मेमोरी कहलाती हैं। इसमें फ्लॉपी डिस्क, पेनड्राइव, एक्सटर्नल हार्ड डिस्क, मेग्नेटिक टेप, कॉम्पेक्ट डिस्क (CD), फ्लैश मेमोरी आदि शामिल की जाती हैं।

पेरीफेरल्स (Peripherals):

कम्प्यूटर के पेरीफेरल्स में इनपुट डिवाइसेज, सहायक (द्वितीयक) संग्रहण उपकरण एवं आउटपुट डिवाइसेज को शामिल करते हैं।

इनपुट युक्तियाँ (

कम्प्यूटर में आँकड़ों एवं सूचनाओं (Data) एवं अन्य निर्देशों को पहुंचाने वाले उपकरणों (Devices) को इनपुट डिवाइस कहा जाता है। इन डिवाइसेज के माध्यम से डाटा की प्रक्रिया कर परिणाम प्राप्ति हेतु डाटा व निर्देशों को कम्प्यूटर में प्रविष्ट कराया जाता है। ये डिवाइस डाटा एवं निर्देशों को इनपुट करके उन्हें CPU के समझने योग्य विद्युत संकेतों (Pulse) में परिवर्तित कर CPU में भेजते हैं। प्रमुख इनपुट डिवाइस निम्न हैं

की-बोर्ड (Key Board):

कुंजीपटल (Key Board) कम्प्यूटर में डाटा प्रविष्ट कराने का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण व अनिवार्यतः प्रयुक्त किया जाने वाला उपकरण है। यह टाइपराइटर के की-बोर्ड के समान होता है, लेकिन इसमें कुंजियों की संख्या अपेक्षाकृत अधिक होती है। इससे टाइप करके डाटा कम्प्यूटर
Input Devices) में प्रविष्ट कराया जाता है । यह पारस्परिक प्रक्रिया (Interactive Processing) के लिये एक आवश्यक युक्ति है जिसमें प्रयुक्तकर्ता की-बोर्ड से निर्देश या कमाण्ड (Command) कम्प्यूटर को देता है और उसका प्रभाव तत्काल ही स्क्रीन पर देखता है। टाइप किये गये डाटा को विद्युत संकेतों (बाइनरी डिजिट 1 और 0) में बदलकर की-बोर्ड दो प्रकार से मदरबोर्ड में इनपुट कर सकता है- श्रेणीक्रम (Serial) में या समान्तर क्रम (Parallel) में।

की-बोर्ड की कुंजियों का वर्गीकरणः

की-बोर्ड में वर्णमाला के अक्षर (alphabets), अंक (digits), विशिष्ट केरेक्टर्स (Special Characters), फंक्शन कीज (Function Keys) एवं कुछ नियंत्रण कीज (Control Keys) होती हैं। इसमें साधारणतया 101 से 108 तक कुंजियाँ (Keys) होती हैं।
ये निम्न हैं

अंक कुंजियाँ (Number Keys)-

ये संख्या में दस होती हैं जो निम्न हैं-0,1,2,3,4,5,6,7,8,9 इनसे 0 से 9 तक के अंक टाइप किये जाते हैं।

वर्ण कुंजियाँ (Alphabet Keys):

ये A से Z तक सभी वर्णों के संबंध में टाइपराइटर के समान व्यवस्थित होती हैं। इनसे वर्णमाला के अक्षर टाइप किये जाते हैं। इन्हें ‘Shift की’ के साथ दबाने पर Capital अक्षर टाइप होते हैं।

कार्य कुंजियाँ (Function Keys)-

की-बोर्ड पर सबसे ऊपर F1 से F12 तक की 12 Function Keys होती हैं तथा इन पर F1, F2, F3, .F11, F12 अंकित होता है। ये अलग-अलग सॉफ्टवेयर में अलग-अलग तरह के कार्य करती हैं। इनमें कम्प्यूटर पर चल रहे प्रोग्राम के अनुसार निर्देश पहले से स्टोर होते हैं अतः इन्हें दबाने पर वह निर्देश स्वतः ही चालू हो जाता है। F1 कुंजी (Key) प्रोग्राम से help कार्य हेतु प्रयुक्त होती है

सम्पादनकुंजियाँ (EditingKeys)-

ये कुल 13 होती हैं तथा इनका कार्य टाइप की गई विषय वस्तु को सम्पादित करना होता है। ये निम्न होती हैं- 11 → (arrowKeys), PgUp, PgDn, Home, End, Backspace, Space Bar, Delete, Insert एवं Tab । स्पेश बार (Space Bar) की-बोर्ड की सबसे लंबी कुंजी होती है। इसका प्रयोग एक अक्षर जितना खाली स्थान छोड़ने के लिए किया जाता है। इनमें से कुछ कुंजियाँ कर्सरकण्ट्रोल की’ (Cursor Control Key) भी कहलाती हैं क्योंकि इनमें से कुछ स्क्रीन पर कर्सर को इधर से उधर प्वाइंट करने के लिए प्रयुक्त होती हैं।

नियंत्रण कुंजियाँ (ControlKeys)-

ये निम्न होती है-Enter/Return, Shift, Esc, Pause, Numlock, Capslock, Ctrl,Alt. की-बोर्ड पर ShifKey, EnterKey, Ctrl (Control) Key, Alter (Alt)Key दो-दो होती हैं।

चिह्नकुंजियाँया स्पेशल केस्क्टरकुंजियाँ (SymbolKeys)

ये सिर्फ विशेष चिह्न प्रिंट करने के काम आती है। जैसे-:, @,#,%, $ , 1 ,~,I, I, ?,, 3 आदि। *

अतिरिक्त कुंजियाँ-

आधुनिक कम्प्यूटरों के की-बोर्ड में कुछ अतिरिक्त कुंजियाँ आती हैं जो मल्टीमीडिया जैसे नये सॉफ्टवेयरों के आधार पर कार्य करती हैं, जैसे- Power, Play, Start, Sleep, Volume, WakeUp आदि।
की-बोर्ड पर दायीं तरफ 17 कुंजियों का न्यूमेरिक कीपैड होता है जिसमें 0 से 9 तक के अंक एवं गणितीय चिह्न (+, -, *, x आदि) होते हैं । इस न्यूमेरिक की-पैड को कर्सर कण्ट्रोल के लिए भी प्रयुक्त किया जा सकता है।
जब की-बोर्ड की किसी कुंजी (key) को दबाया (pressed) जाता है तो एक इलेक्ट्रिक सिग्नल उत्पन्न होता है जो एक इलेक्ट्रिक सर्किट-की बोर्ड इनकोडर (keyboard encoder) द्वारा पढ़ा जाता है तथा जिसे कम्प्यूटर संकेतों में परिवर्तित कर RAM में भेजा जाता है। वहाँ से प्रोसेसर द्वारा उसे लेकर संक्रिया की जाती है।

प्रमुख कुँजियों (Keys) के कार्यः

एस्केप कुंजी (Escape Key):

इस कुंजी का उपयोग कुछ प्रोग्रामों को बाहर निकालने के लिए किया जाता है।

कर्सर कंट्रोल कुंजियाँ (Cursor Control Keys):

इन कुंजियों पर तीर के चिह्न छपे होते हैं। इन कुंजियों से कर्सर को मॉनीटर के पर्दे पर कहीं भी ले जाया जा सकता है। किसी तीर की कुंजी को दबाने पर कर्सर उस पर छपे तीर की दिशा में एक स्थान सरक जाता है, जैसे कुंजी को दबाने पर कर्सर एक लाइन नीचे की ओर चला जाएगा और → कुंजी को दबाने पर कर्सर एक स्थान दायीं ओर चला जाएगा। →, 6,1, , Page Up, Page Down, Home, End, Tab, Backspace, Delete आदि कर्सर कंट्रोल की हैं।

कंट्रोल कुंजी (Control Key):

इस कुंजी का उपयोग कुछ विशिष्ट आदेश देने के लिए अन्य कुंजियों के साथ संयुक्त रूप से किया जाता है। उदाहरण के लिए, विंडोज वातावरण में कंट्रोल के साथ C(Ctrl+C) दबाने पर कोई चुनी हुई वस्तु या सामग्री क्लिप बोर्ड में कॉपी (Copy) हो जाती है। दूसरे शब्दों में, यह Copy आदेश का शॉर्टकट है। कंट्रोल कुंजी का उपयोग इसी प्रकार विभिन्न शॉर्टकट आदेश देने के लिए किया जाता है।

ऑल्ट कुंजी (Alt Key):

इस कुंजी का उपयोग भी कंट्रोल कुंजी की तरह कुछ शॉर्टकट आदेशों में किया जाता है।

एण्टर कुंजी (Enter Key):

इसे रिटर्न (Return) की भी कहा जाता है। यह हमारे द्वारा तैयार किये गये किसी आदेश को कम्प्यूटर में भेजने का कार्य करती है। इसका प्रयोग दस्तावेज तैयार करते समय नया पैराग्राफ शुरू करने के लिए भी किया जाता है।

शिफ्ट कुंजियाँ (Shift Keys):

ये संख्या में दो होती हैं, इनका उपयोग टाइप करते समय अंग्रेजी वर्णमाला के बड़े अक्षर (Capital Letter) टाइप करने के लिए किया जाता है। यदि किसी कुंजी पर दो चिह्न छपे हैं, तो शिफ्ट के साथ दबाने पर ऊपर का चिह्न टाइप होता है।

बैक स्पेस कुंजी (Back Space Key) व डिलीट की (Delete Key) :

इसका उपयोग टाइप की गलतियों को तत्काल ठीक करने के लिए किया जाता है। इसे दबाने पर कर्सर से पहले का या बायीं ओर का चिह्न (Character) मिट दिया जाता है। इसी प्रकार Delete Key से कर्सर के बाद (Right) वाला अक्षर या सलेक्ट किया हुआ टैक्स्ट मिटता है।

कैप्सलॉक कुंजी (Caps Lock Key):

यह कुंजी सेट कर देने पर केवल छापे के बड़े अर्थात् कैपिटल अक्षर टाइप होते हैं, अन्यथा छापे के छोटे अक्षर (small letters) टाइप होते हैं। वर्णमाला कुंजियों के अलावा अन्य कुंजियों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

माउस (Mouse):

यह एक माउस (चूहे) के आकार का ऑनलाइन इनपुट उपकरण होता है जो केबल की सहायता से कम्प्यूटर CPU से जुड़ा होता है। इससे कम्प्यूटर स्क्रीन पर अंकित कर्सर (माउस पाइन्टर) को इधर-उधर खिसकाकर वांछित क्रियाएँ की जाती हैं। माउस के ऊपर दो या तीन बटन होते हैं तथा नीचे की सतह पर एक छोटी-सी गेंद (बॉल) होती है। माउस बटनों को दबाने से स्क्रीन पर पॉइंटर की सहायता से स्क्रीन के अवयव चुने जाते हैं। माउस प्रायः स्क्रीन पर तीर के चिह्न पॉइंटर को नियंत्रित करता है। माउस के बाएँ बटन को अंगुली से एक बार दबाने की क्रिया क्लिक कहलाती है। जब माउस के बाएँ बटन को जल्दी-जल्दी दो बार दबाते हैं तो इसे डबल-क्लिक करना कहते हैं। जब माउस की दाएँ बटन को दबाते हैं तो उसे ‘Right Click’ कहते हैं।
माउस एक प्वांइटिंग डिवाइस है। इसे एक हाथ से पकड़कर एक समतले सतह ‘माउस पैड’ (Mouse Pad) पर चलाया जाता है। माउस के द्वारा हम मॉनीटर स्क्रीन पर चित्र भी बना सकते हैं। ड्राइंग के कार्य के लिए इसे ग्राफिक टैबलेट पर भी मूव कराया जा सकता है। माउस की मदद से आप टेक्स्ट को एडिट कर सकते हैं। माउस दो प्रकार के होते हैं। एक प्रकार के माउस में रोलिंग बॉल का प्रयोग होता है जबकि ऑप्टीकल माउस में ऑप्टिकल सेंसिंग तकनीक इस्तेमाल की जाती है। माउस से आने वाले सिग्नल को एक प्रोग्राम द्वारा प्रोसेस किया जाता है जिसे ‘माउस ड्राइवर’ कहते हैं।

लाइटपेनः

दिखने में यह एक सामान्य पेन की भांति होता है। लाइटपेन भी एक प्वांइटिंग डिवाइस है। इसे मॉनीटर स्क्रीन पर दिखाई देने वाले मैन्यू (menu) ऑप्शनों को सिलेक्ट करने हेतु प्रयुक्त करते हैं। यह फोटो सेंसेटिव डिवाइस होती है। इसका सम्बन्ध सीधा सी.पी.यू. से होता है, इसमें आगे की ओर एक छोटा-सा इलेक्ट्रॉनिक बॉल होता है जिसे एक स्क्रीन पर चलाकर किसी भी तरह के स्केच या हस्ताक्षर या लेख को सीधे कम्प्यूटर में इनपुट करा सकते है। स्क्रीन पर लाइट पैन से सीधे ड्राइंग भी बनायी जा सकती है।

जॉयस्टिक (Joy Stick) :

जॉय स्टिक एक इनपुट डिवाइस है जो कम्प्यूटर में अधिकतर कम्प्यूटर गेम खेलने के काम आती है। कम्प्यूटर की स्क्रीन पर उपस्थित टर्टल या आकृति को जॉय स्टिक के हैंडल से हाथ से पकड़कर चलाया जाता है।
जॉयस्टिक एक छड़ी (stick) होती है, जिसमें ऊपर तथा नीचे दोनों ओर एक गोलाकार (spherical) बॉल लगी होती है। इसे दाएँ, बाएँ, आगे, पीछे घुमाया जा सकता है। जॉयस्टिक में एक बटन लगा होता है जिसे पुश बटन या फायर बटन कहते हैं।

स्कैनर (Scanner):

यह एक ऐसा हार्डवेयर इनपुट डिवाइस जो किसी पृष्ठ पर बनी चित्र या आकृति (Image) या लेख (Text) को स्कैन कर सीधे कम्प्यूटर में डिजीटल डाटा के रूप में इनपुट करता है। इसका मुख्य लाभ यह है कि प्रयुक्तकर्ता को सूचना टाइप नहीं करनी पड़ती है। OCR, OMR, MICR, OBER आदि स्कैनर के ही उदाहरण हैं। इनके अलावा इमेज स्कैनर भी होते हैं जो किसी चित्र, फोटोग्राफ, आकृति आदि को कम्प्यूटर की मेमोरी में डिजिटल अवस्था में इनपुट करते हैं। स्कैनर का बेसिक कार्य है डॉक्यूमेंट को डिजिटल फॉर्मेट में परिवर्तित करना।

ऑप्टिकल बार कोड रीडर (Optical Bar Code Reader. OBR):

बार कोड रीडर एक विशेष डिवाइस होती है जो बार कोडेड डाटा को पढ़ने के लिए इस्तेमाल की जाती है। बार कोड एक विशेष प्रकार का कोड है, जिसका उपयोग आइटमों को तीव्रता से पहचानने के लिए होता है। OBR द्वारा टैगों को पढ़ा जाता है जो कि शॉपिंग सेन्टर में विभिन्न उत्पादों में, दवाइयों के पैकेट पर तथा लाइब्रेरी की पुस्तकों के आवरण, आदि पर छपे रहते हैं। ऑप्टीकल बार कोड रीडर को बारकोड के ऊपर से निकालते हैं तो यह इस पर छपी हुई सूचना को कम्प्यूटर में प्रविष्ट कर देता है।

ऑप्टिकल मार्क रीडर (Optical Mark Reader-OMR):

OMR एक विशेष प्रकार का स्कैनर होता है जिसका प्रयोग पेन या पेंसिल से बनाए गए विशेष प्रकार के चिह्नों (Marks) को पहचानने के लिए किया जाता है। इसका प्रयोग, आजकल आयोजित होने वाली विभिन्न परीक्षाओं में उत्तर पुस्तिका की जाँच में हो रहा है। इसमें चिह्नित कागज पर प्रकाश डाला जाता है और परावर्तित (Reflected) प्रकाश को जाँचा जाता है। जहाँ चिह्न उपस्थित होगा, कागज के परावर्तित प्रकाश की तीव्रता कम होगी। OMR तकनीक ‘वैकल्पिक प्रश्नों’ (Objective Questions) वाली परीक्षा की उत्तरपुस्तिका को जाँचने के लिए अत्यधिक उपयोगी युक्ति है।

ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकोग्नीशन (Optical Character Recognition-OCR):

OCR एक ऐसी तकनीक है जिसमें पहले से छपे कैरेक्टर्स (Preprinted Characters) के परस्पर फर्क (Distinguish) को देखकर OCR मानक कैरेक्टर्स से पहचान की जाती है।

मैग्नेटिक इंक कैरेक्टर रिकोग्नीशन (Megnetic Ink Character Recognition-MICR):

MICR बैंकिंग में अधिक उपयोग की जाने वाली तकनीक है, जहाँ अधिक संख्या में चैक (Cheque) क्लियरिंग में जाँचे जाते हैं। MICR तकनीक में चैक पर विशेष चुम्बकीय स्याही द्वारा कैरेक्टर छपे होते हैं। MICR रीडर चैक पर छपे एनकोडेड कैरेक्टर को चुम्बकीय कॉइल के संवेदन से पढ़ता है एवं उन्हें डिटेक्ट करता है। इन करैक्टर्स को पढ़ने के बाद MICR उन्हें कम्प्यूटर के लिए डिजीटल डाटा में बदल देता है। इससे चैक की विश्वसनीयता की जाँच हो जाती है एवं उसे क्लीयरिंग में भुगतान हेतु पास कर दिया जाता है।

ट्रैकरबॉलः

ट्रैकरबॉल भी एक प्रकार की पॉइटिंग डिवाइस होती है जो जॉयस्टिक की तरह ही कार्य करती है। इसे रोलर बॉल भी कहते हैं।

वेब कैमरा:

एक वेब कैमरा, कम्प्यूटर की एक ऑब्जेक्ट , पर केवल फोकस करके उसका इनपुट ग्रहण करने की अनुमति देता है। कैमरे को इनपुट ऑब्जेक्ट पर फोकस किया जाता है, जिससे उस ऑब्जेक्ट की पिक्चर ली जा सके।
इस ऑब्जेक्ट की इमेज को, इंटरनेट द्वारा या नेटवर्क द्वारा दूरस्थ कम्प्यूटर के मॉनीटर पर देखा जा सकता है। इस नेटवर्क पर वॉयस को भी ट्रांसफर किया जा सकता है। अतः दो या अधिक व्यक्ति इस तरीके से एक दूसरे से बातचीत कर सकते हैं। यही तरीका वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में एवं Skype पर बातचीत करने में इस्तेमाल होता है।

टच स्क्रीन (Touch Screen):

सारे टच टर्मिनल एक सेन्सिटिव स्क्रीन रखते हैं जिनमें कि एक-एक की-बोर्ड होता है तथा वह डाय को इनपुट कराने की अनुमति प्रदान करता है। अंगुलियों से स्क्रीन को छूने के माध्यम से जब प्रयुक्तकर्ता उन बिन्दुओं को चुनता है तो सेंसर के माध्यम से कम्प्यूटर उसे पढ़ लेता है और आवश्यक ‘निर्देश या सूचना ग्रहण कर लेता है।

वॉयस इनपुट एवं रिकॉग्नीशन सिस्टम:

वॉयस इनपुट एवं रिकॉग्नीशन सिस्टम एक इनपुट डिवाइस है जिसमें एक माइक्रोफोन या टेलीफोन लगा होता है जो मानव की आवाज़ को इलेक्ट्रिकल सिग्नल में परिवर्तित करता है। इस तरीके से मिले सिग्नल पैटर्न को कम्प्यूटर में भेजा जाता है जहाँ इसे पहले से स्टोर किए गए पैटों से मिलाकर देखा जाता है ताकि इनपुट की सही पहचान हो सके। जब एक अत्यंत पास का मैच मिलता है तो सिस्टम उस शब्द को पहचान लेता है और कम्प्यूटर में डाय भेज देता है।

डिजीटाइजर टेबलेट या ग्राफिक टेबलेट (Digitizer Tablet or Graphic Tablet):

ग्राफिक टेबलेट भी एक इनपुट डिवाइस की तरह प्रयुक्त होता है। इसकी एक ड्राइंग सतह होती है इसके ऊपर एक पेन या माउस होला है। ड्राइंग सतह में पतले तारों का जाल होता है जिस पर पेन या माउस को चलाने से संकेत कम्प्यूटर में चले जाते हैं। इसका प्रयोग हाथों द्वारा प्रिंटेड कैरेक्टरों को सीधे कम्प्यूटर में भेजने के लिए किया जाता है।

वीडियो या डिजीटल कैमरा (Video or Digital Camera):

वीडियो डिजीटल कैमरा एक ऐसी मोबाइल इनपुट युक्ति है जो कि किसी भी दृश्य, चलचित्र आदि का वीडियो या फोटो खींचकर स्टोर करने के काम आता है। इसके माध्यम से हम दृश्य को स्टोर करते समय उस दृश्य को कैमरे के स्क्रीन पर भी देख सकते हैं। इसके द्वारा खींची गई तस्वीरों के डिजीटल या एनॉलॉग सिग्नल उत्पन्न होते हैं जो कि एक कम्प्यूटर मॉनीटर पर डिस्प्ले हो सकते हैं एवं स्थाई रूप से रिकॉर्ड हो सकते हैं।

कार्ड रीडरः

कार्ड रीडर एक डिवाइस है जो पंच किए गए कार्ड को पढ़ता है। पंच कार्ड एक मोटे कागज के कार्ड पर बना एक स्टोरेज माध्यम है जिसमें पंच किए गए होल्स (holes) के रूप में डाटा रखा जाता है। कम्प्यूटर से कनेक्ट की गई पंच कार्ड पेरीफेरल डिवाइस अथवा एक की पंच मशीन द्वारा कार्ड में होल्स पंच किए जाते हैं। A

निर्गत उपकरण (Output Devices)

कम्प्यूटर में एक बार डाटा पर प्रक्रिया (Processing) करने के बाद प्रयुक्तकर्ता उसके उपयुक्त परिणाम प्राप्त करना चाहता है। कम्प्यूटर द्वारा संसाधित आँकड़ों (Processed Data) के परिणाम (या निष्कर्ष) कम्प्यूटर के जिन यंत्रों द्वारा प्रदान किये जाते हैं वे यंत्र कम्प्यूटर के निर्गम यंत्र (Output Devices) कहलाते हैं। ये निर्गत यंत्र सूचनाओं या परिणामों को हार्ड कॉपी के रूप में या सॉफ्ट कॉपी के रूप में हमें प्रदान करते हैं। उदाहरणार्थ- परीक्षा के प्राप्तांकों की कम्प्यूटर द्वारा प्रक्रिया के बाद प्रत्येक विद्यार्थी के विषयवार एवं कुल प्राप्तांक एवं उसका परीक्षा परिणाम आदि सूचनाओं को उसे प्रदान करना होता है, जिसे विद्यार्थी प्रगति पत्र के माध्यम से पूरा किया जाता है। कम्प्यूटर का प्रिंटर इन प्रगति पत्रों को कागज पर छापकर हमें देता है। साथ ही मॉनीटर पर हम ये परिणाम देख भी सकते हैं। कम्प्यूटर की आउटपुट युक्तियाँ परिणामों को प्रायः निम्न दो अवस्थाओं में प्रस्तुत कर सकती हैं-

हार्ड कॉपी (Hard Copy):

किसी कागज या माइक्रोफिल्म (Micro-film) पर छपा हुआ आउटपुट हार्ड कॉपी (Hard Copy) कहलाता है, यह स्थाई होती है।

सॉफ्ट कॉपी (Soft Copy):

सिस्टम यूनिट (सी.पी.यू.) से प्राप्त परिणाम (आउटपुट) जब मॉनीटर पर प्रदर्शित होता है तो परिणाम के इस दृश्य को सॉफ्ट कॉपी (soft copy) कहते हैं जो कि अस्थाई होती हैं।
कम्प्यूटर की विभिन्न आउटपुट युक्तियाँ (Output Devices) निम्नलिखित हैं

मॉनीटर (स्क्रीन):

स्क्रीन या मॉनीटर पर आउटपुट के दिखाई देने की क्रिया डिस्प्ले (Display) कहलाती है। अतः स्क्रीन या मॉनीटर, डिस्प्ले युक्तियाँ (Display Devices) हैं। ‘कम्प्यूटर मॉनीटर’ टेलीविजन के समान स्क्रीन वाला उपकरण होता है जिस पर कम्प्यूटर द्वारा संसाधित परिणामों को देखा जा सकताहै। अतः इसे विजुअल डिस्ले युनिट (VDU) कहते हैं। आउटपुट प्रदर्शन के आधार पर कम्प्यूटर मॉनीटर दो प्रकार के होते हैं

मोनोक्रोम मॉनीटर (Monochrome Monitor):

मोनो (Mono) का अर्थ है एकल (Single) और क्रोम (Chrome) का अर्थ है रंग (Colour)। इसीलिए मोनोक्रोम डिस्प्ले युक्ति, एकल रंग के मॉनीटर होते हैं। जैसे- ब्लेक एण्ड व्हाइट टी.वी.।

कलर मॉनीटर (Colour Monitor):

कलर मॉनीटर (Colour Monitor) में आउटपुट रंगीन दिखाई देता है। यह लाल, हरा व नीला (RGB: Red-Green-Blue) आदि विभिन्न रंगों के मिश्रण से विभिन्न रंग डिस्प्ले करता है। RGB प्रकार के कारण उच्च रेजोलूशन का आउटपुट डिस्प्ले हो सकता है। विजुअल डिस्प्ले युनिट (VDU) पर दिखाई जाने वाली हर सूचना या चित्र बहुत से छोटे-छोटे चमकीले बिन्दुओं (dots) से मिलकर बनती है, जिन्हें पिक्सल (Pixels) कहते हैं। मॉनीटर पर एक छेटी-सी चमकीली लाइन ‘-‘ टिमटिमाती है जिसे ‘कर्सर’ कहते हैं।तकनीक के आधार पर मॉनीटर दो प्रकार के होते हैं-

कैथोड रे ट्यूब मॉनीटर (CRT Monitor):

अधिकतर मॉनीटरों में पिक्चर ट्यूब एलीमेन्ट (Picture Tube Element) होता है। यह ट्यूब सी.आर.टी. (CRTCathode Ray Tube) कहलाती है। इस ट्यूब में एक इलेक्ट्रॉन गन लगाई जाती है। इसके द्वारा प्राप्त इलेक्ट्रॉन बीन को परावर्तित कर चित्र बनाया जाता है अर्थात् स्क्रीन पर डिस्प्ले प्राप्त होता है। कम्प्यूटर के कीबोर्ड पर जो भी टाइप किया जाता है वह मॉनीटर पर दिखाई देता है।

फ्लेट पैनल डिस्प्ले (FPD) या एलसीडी मॉनीटर:

वर्तमान में CRT तकनीक के स्थान पर फ्लैट पैनल डिस्प्ले मॉनीटर प्रयुक्त हो रहे हैं। ये मॉनीटर वजन में हल्के तथा विद्युत की कम खपत करने वाले होते हैं। FPD मॉनीटर में द्रवीय क्रिस्टल डिस्प्ले (LCD) तकनीक प्रयुक्त होती हैं। LCD मॉनीटर में CRT मॉनीटर की तुलना मे कम रेजोलूशन (Resolution) होता है।

प्रिंटर (Printers):

मॉनीटर या डिस्प्ले डिवाइसेज में आउटपुट युक्ति के रूप में दो कमियाँ होती हैं
• एक बार में सीमित डाटा ही दिखाई देता है और
• स्क्रीन पर आउटपुट की सॉफ्ट कॉपी स्थानान्तरणीय नहीं होती है जिससे इसे कागज पर नहीं लिया जा सकता।
मॉनीटर की उक्त दोनों कमियाँ आउटपुट युक्ति के रूप में प्रिंटर पूरी करता है। प्रिंटर एक ऑन-लाइन आउटपुट युक्ति है, जो आउटपुट को कागज पर छापकर प्रस्तुत करता है। कागज पर आउटपुट की यह प्रतिलिपि ‘हार्ड कॉपी’ कहलाती है।

प्रिंटर्स के प्रकार :

कार्य करने की गति के आधार पर

कैरेक्टर प्रिन्टर (Character Printer):

यह एक बार में एक कैरेक्टर प्रिन्ट करता है। इसे सीरियल प्रिन्टर भी कहते हैं। कैरेक्टर प्रिन्टर 200-450 कैरेक्टर/सेकेन्ड प्रिन्ट करता है। सभी डॉट मैट्रिक्स प्रिंटर, डेजीव्हील प्रिंटर तथा इंकजेट प्रिंटर कैरेक्टर प्रिंटर होते हैं।

लाइन प्रिन्टर (Line Printer):

यह एक बार में एक लाइन प्रिन्ट करता है। यह तीव्र गति से कार्य करता है। लाइन प्रिन्टर 200-500 लाईन प्रति मिनट प्रिन्ट करता है। ड्रम प्रिंटर, बैण्ड प्रिंटर एवं चैन प्रिंटर लाइन प्रिंटर होते हैं।

पेज प्रिन्टर (Page Printer):

यह प्रिंटर एक बार में पूरा पेज प्रिन्ट करता है। यह विशाल डेटा का प्रिन्ट लेने में सक्षम होता है। इन्हें इमेज प्रिंटर भी कहते हैं। लेजर प्रिंटर, LED प्रिंटर, Phaser प्रिंटर आदि पेज प्रिंटर होते हैं।

कम्प्यूटर प्रिंटिंग तकनीक के अनुसार प्रिंटर्स के विभिन्न प्रकार निम्नलिखित हैं

इम्पैक्ट प्रिंटर्स (Impact Printer):

प्रिंटिंग को यह विधि टाइपराइटर की विधि के समान होती है जिसमें एक धातु का ‘हैमर’ (Hammer) या प्रिंट हैड कागज व रिबन पर चोट कर प्रिंट करता है। इम्पैक्ट (Impact) प्रिंटिंग में अक्षर या कैरेक्टर्स, ठोस-मुद्रा अक्षरों (Solid Fonts) या डॉट मैट्रिक्स (Dot Matrix) विधि से कागज पर उभरते हैं। डॉट मैट्रिक्स प्रिंटर एवं डेजीव्हील प्रिंटर इम्पैक्ट प्रिंटर होते हैं।

नॉन-इम्पैक्ट प्रिंटर्स (Non-Impact Printer):

इस प्रिंटिंग तकनीक में प्रिंट हैड और कागज के मध्य सम्पर्क नहीं होता है। यह ध्वनिमुक्त प्रिंटर है क्योंकि इसमें प्रिंट हैड कागज पर चोट नहीं करता है। नॉन-इम्पैक्ट प्रिंटिंग की अनेक विधियाँ हैं, जैसे-इलेक्ट्रोथर्मल (Electro-thermal), इंक-जेट (Ink-jet), लेजर (LASER) और थर्मल-ट्रांसफर (Thermal-Transfer) आदि।

इंपैक्ट प्रिंटरों के प्रकार (Type of Printers):

• डॉट मैट्रिक्स प्रिंटर (Dot Matrix Printer- DMP) • डेजी व्हील प्रिंटर (Daisy Wheel Printer): • इंक-जेट प्रिंटर (Ink-Jet Printer)
लेजर प्रिंटर (Laser Printer)
• इलेक्ट्रोथर्मल प्रिंटर्स (Electrothermal Printer)• थर्मल-ट्रांसफर प्रिंटर्स (Thermal Transfer Printer)

प्लॉटर (Plotter):

यह एक आउटपुट युक्ति है जो चार्ट, चित्र (Drawings), नक्शे (Maps), त्रि-विमीय रेखाचित्र और अन्य प्रकार की हार्डकॉपी प्रस्तुत करने का कार्य करती है। प्लॉटर सामान्यतया दो प्रकार के होते हैं- ड्रम पेम प्लॉटर और फ्लैट बेड प्लॉटर।

विशेष-उद्देशीय आउटपुट उपकरण :

कुछ आउटपुट डिवाइसेज किसी विशिष्ट उद्देश्य या कार्य हेतु निर्गत

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