व्यक्तित्व के प्रमुख सिध्दांत | मनोविश्लेषणात्मक सिध्दांत

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व्यक्तित्व के प्रमुख सिध्दांत | मनोविश्लेषणात्मक सिध्दांत: – इस भाग में व्यक्तित्व के प्रमुख सिध्दांतों में से एक अतिमहत्तवपूर्ण सिध्दांत ( मनोविश्लेषणात्मक सिध्दांत ) Manovishleshanatmak Sidhdant के बारे में विस्तृत जानकारी मिलेगी। यह सिध्दांत आस्ट्रिया के मनोवैज्ञानिक सिगमंड फ्रायड ने दिया था। इस में आपको इस सिध्दांत के बारे में सम्पूर्ण जानकारी मिलेगी तथा जैसे की चेतना शक्ति के प्रकार, विशेषताएं और उदाहरण भी शामिल है।


मनोविश्लेषणात्मक सिध्दांत

  • इस विधि का प्रतिपादन वियना, ऑस्ट्रिया निवासी ‘सिगमण्ड फ्रायड (Sigmond Freud) नामक प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक ने किया था।

“व्यक्ति का अचेतन मन भी उसके व्यवहार को प्रभावित करता है।’

फ्रायड
  • इस विधि में मनोनिदानात्मक तकनीकों की सहायता से अचेतन मन एवं विभिन्न प्रकार की इच्छाओं की जानकारी प्राप्त की जाती है।
  • इन इच्छाओं की पूर्ति न होने के कारण मार्ग का अंतरण भी किया जाता है।
  • अचेतन वास्तव में व्यक्ति की अतृप्त अथवा दमित इच्छाओं, भावनाओं का पुंज होता है।
  • मनोविश्लेषण विधि के द्वारा व्यक्ति के अचेतन मन का अध्ययन करके उसकी अतृप्त इच्छाओं की जानकारी प्राप्त की जाती है।
  • आपने तीन प्रकार की चेतना शक्ति का विश्लेषण किया।

इदम् / ID / अचेतन मन-

  • इदम् ‘जीवन’ और ‘मृत्यु’ दोनों मूल-प्रवृत्तियों का केन्द्र बिन्दु है।
  • यह व्यक्तित्व का बड़ा अस्पष्ट, और अव्यवस्थित अंश अथवा अंग है।
  • यह’ अहं’ और ‘आदर्श – अहं’ का आधार है।
  • इसका संबंध सीधे तौर पर बाह्य जगत से न होकर व्यक्ति की शारीरिक क्रियाओं से होता है, जहाँ से वह शक्ति ग्रहण करता है।
  • यह किसी भी प्रकार के बाहरी तथा आंतरिक तनाव को सहन नहीं कर पाता है।
  • उल्टे उससे तत्काल राहत पाने का कार्य करता है।
  • इसलिए इसको सिगमण्ड फ्रायड ने तात्कालिक सुख का नाम दिया है।

इदम् / ID / अचेतन मन की विशेषताएँ

  1. यह मन हमेशा नकारात्मक पशु प्रवृत्ति के समान होता है।
  2. इस मन के आधार पर व्यक्ति अच्छे व बुरे कर्म न करके जो भी मन में ठान लेता है वह कार्य करके रहता है।
  3. यह काम प्रवृत्ति का मुख्य केन्द्र माना जाता है
  4. सम्पूर्ण प्रकार की इच्छाओं का जन्म का केन्द्र है।
  5. इसमें दोनों प्रकार की मूल प्रवृतियाँ होती है।
  6. यह मन हमेशा आनंद की कल्पना करता है।
  7. यह प्रत्येक व्यक्ति में लगभग 90% होता है।
  8. इस प्रकार की चेतना शक्ति बालक में जन्म के समय ही उत्पन्न हो जाती है।

अहं / EGO / अर्द्धचेतन-

  • हमारे व्यक्तित्व का ‘अहं’ अंग बाह्य वास्तविकता से सम्पर्क बनाये रखता है।
  • यह व्यक्तित्व का वह व्यवस्थित अंग है, जो व्यक्तित्व का केन्द्र है और बाह्य जगत, इदम् तथा ‘आदर्श अहं’ के मध्य संयोजन का कार्य करता है।
  • यह व्यक्तित्व के दूसरे संघटकों को नियंत्रित करता है और उनसे स्वयं नियंत्रित भी होता है।
  • प्रत्यक्षीकरण, अधिगम, स्मरण, तर्क और विचार के आधार पर अहं व्यवहार को इस प्रकार से निर्दिष्ट करता है ताकि इदम् आवेगों की पूर्ति बाह्य वास्तविकता के अनुसार हो सके।

अहं / EGO / अर्द्धचेतन की विशेषता

  1. यह इड व सुपर इगो दोनों के बीच का तालमेल का कार्य करता है।
  2. इस मन में व्यक्ति को अच्छे बुरे के बारे में पता होता है कि क्या करना चाहिए व क्या नहीं
  3. लेकिन यह अल्पकालीन तार्किक प्रवृत्ति होती है जो कि सुपर इगो से पहले की अवस्था
  4. यह मन व्यक्ति को वास्तविकता के बारे में ज्ञान करवाने की कोशिश करता है।
  5. इसे वकील या पुल का सिद्धान्त भी कहते है।
  6. यह व्यक्ति के व्यवहार पर नियंत्रण रखता है। इसीलिए इसे मन का शासक भी कहा जाता है।
  • ‘अहं’ का ‘इदम्’ से अलग कोई अस्तित्व नहीं है।
  • यह इदम् से पूर्णतः स्वतंत्र नहीं हो सकता।
  • ‘अहं’ तथा ‘इदम्’ के आपसी संबंधों पर ‘ अधिअहं’ द्वारा प्रभाव डाला जाता है, जो आंशिक रूप से इदम् के विरुद्ध प्रतिकरण है।

पराअहं / Super IGO / चेतन मन / अधिअहं Manovishleshanatmak Sidhdant

  • ‘अधि अहं’ व्यक्तित्व का नैतिक पक्ष है।
  • व्यक्तित्व का यह अंग सबसे अंत में विकसित होता है।
  • माता-पिता, अध्यापकगण तथा समाज के नैतिक मूल्यों एवं आदर्शों की अभिव्यक्ति ‘अधि अहं’ के रूप में होती है।
  • यह वास्तविकता के स्थान पर आदर्श को व्यक्त करती है और इसका उद्देश्य सुख- -प्राप्ति न होकर पूर्णता की प्राप्ति है।
  • ‘अधि-अहं’ बाल्यावस्था में ‘अहं’ ही उत्पन्न होता है।
  • यह प्रक्रिया तादात्म्य और ‘अन्तर्निवेश’ की मनोरचना के द्वारा सम्पादित होती है।
  • इसमें भले-बुरे का विचार, क्यों आदि का उत्तर दिये बिना ही होता है।
  • माँ-बाप के गुणों को प्रारम्भिक अवस्था में बालक अपने आप में आत्मसात कर लेता है, जो कि ‘अधि-अहं’ के रूप में विकसित होते है।

पराअहं / Super IGO / चेतन मन / अधिअहं की विशेषताएँ

  1. यह मन हमेशा व्यक्ति को अच्छे कार्यों की ओर ले जाता है, लेकिन इसका विकास सबसे अंत में होता है तथा क्रियाशील भी अन्य की अपेक्षा कम ही रहता है।
  2. इसे नैतिकता, आदर्शवादी, सामाजिकता एवं अर्न्तनिहित आत्मा की आवाज आदि भी कहा जाता है।
  3. यह मन केवल व्यक्ति विशेष में फ्रायड के अनुसार 10% ही निवास करता है।

मनोविश्लेषणात्मक विधि के दोष / सीमाएँ Manovishleshanatmak Sidhdant

  1. अधिक खर्चीली होती है।
  2. व्यक्ति तथा मनोविश्लेषण में धैर्य होना असम्भव
  3. इस विधि का प्रयोग केवल दक्ष मनोविश्लेषक ही कर सकते हैं।

नोट – मूल प्रवृत्ति का सिद्धान्त-मैक्डुगल के द्वारा दिया गया, जबकि दो प्रकार की मूल प्रवृत्ति (जीवन मूल प्रवृत्ति एवं मृत्यु मूल प्रवृति) दोनों सिगमण्ड फ्रायड के द्वारा दी गई।

मनोविश्लेषणात्मक सिध्दांत

FAQ Manovishleshanatmak Sidhdant

1. मनोविश्लेषणात्मक सिध्दांत किसने दिया ?

ANS. सिगमण्ड फ्रायड

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2. चेतना शक्ति के कितने प्रकार है ?

ANS. चेतना शक्ति के तीन प्रकार होते है
1. इदम् / ID / अचेतन मन
2. अहं / EGO / अर्द्धचेतन
3. पराअहं / Super IGO / चेतन मन / अधिअहं

3. चेतना शक्ति के किस प्रकार का सबसे अंत में विकास होता है ?

ANS. पराअहं / Super IGO / चेतन मन / अधिअहं का विकास सबसे अंत में होता है |

4. चेतना के किस प्रकार को मन का शासक कहा जाता है ?

ANS. अहं / EGO / अर्द्धचेतन को मन का शासक कहते है।

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