उत्तरी पश्चिमी मरुस्थलीय भाग | Uttari Pashchimi Mrusthaliy Bhag – इस Post में आपको राजस्थान के भौतिक भाग(उत्तरी पश्चिमी मरुस्थलीय) के बारें में विस्तृत जानकारी प्राप्त होगी | इसके साथ ही इसमें आपको उत्तरी पश्चिमी मरुस्थलीय भाग की विशेषताएं, प्रदेश में पाई जाने वाली नदियों, जलवायु तथा बालुका स्तूपों आदि के बारे विस्तृत जानकारी मिलेंगी |
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उत्तरी पश्चिमी मरुस्थलीय भाग की विशेषता (Uttari Pashchimi Mrusthaliy Bhag) –
- राज्य के कुल क्षेत्रफल का लगभग 61% भाग है |
- संपूर्ण थार मरुस्थल का लगभग 62 प्रतिशत क्षेत्र अकेले राजस्थान में है |
- इस प्रदेश की उत्तर से दक्षिण लम्बाई 640 किमी तथा पूर्व से पश्चिम की लम्बाई 300 किमी है |
- यह भू-भाग अरावली पर्वतमाला के उत्तर-पश्चिम और पश्चिम में है |
- इस प्रदेश में कुल 12 जिलें है – जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, बीकानेर, गंगानगर, हनुमानगढ़, नागौर, जालौर, चुरू, सीकर, झुंझुनू, तथा पाली जिले पश्चमी भाग है |
- राज्य की कुल जनसंख्या का लगभग 40% भाग इस भाग में निवास करता है |
- यहाँ की जलवायु शुष्क और अत्यधिक गर्म है |
- थार मरुस्थल थली या शुष्क बालू का मैदान के नाम से भी जाना जाता है जो ‘ग्रेट पेलियोआर्कटिक अफ्रीकी मरुस्थल’ का पूर्वी भाग है |
- तापमान गर्मियों में 49° तथा सर्दियों में -3° तक जाता है |
- मिट्टी – रेतीली बलुई।
- वर्षा : 20 सेमी से 50 सेमी।
- अरावली का वृष्टि छाया प्रदेश होने के कारण दक्षिणी-पश्चिमी मानसून (अरब सागर व बंगाल की खाड़ी का मानसून) सामान्यतः यहाँ वर्षा बहुत कम करता है |
- इसकी समुद्र तल से सामान्य ऊँचाई 200 से 300 मीटर है |
- न्यून वर्षा कारण इसे शुष्क बालू का मैदान भी कहते हैं |
- यहाँ टेथिस सागर के अवशेष भी मिलते है |
- रेत के विशाल बालुका स्तूप इस भू-भाग की प्रमुख विशेषता है |
- मुख्य फसलें – बाजरा, मोठ व ग्वार |
- वनस्पति – बबूल, फोग, खेजड़ा, कैर, बेर व सेवण घास आदि |
- राष्ट्रीय मरु उद्यान – प्रमुख वन्य जीव अभ्यारण्य | राज्य का सबसे बड़ा वन्य जीव अभयारण्य |
- यह मरुस्थल विश्व का सर्वाधिक आबादी वाला मरुस्थल है |
- यह वनस्पति एवं पशु सम्पदा की दृष्टि से भी विश्व के मरुस्थलों में सर्वोत्कृष्ट है | यही नहीं सबसे अधिक जैव विविधता भी इसी में पाई जाती है |
- मरुस्थल में बालुका-स्तूपों के बीच में कहीं-कहीं निम्न भूमि मिलती है जिसमें वर्षा का जल भर जाने से अस्थायी झीलों व दलदली भूमि का निर्माण होता है जिसे ‘रन‘ कहते हैं | जैसे – कनोड़, बरमसर, भाकरी, पोकरण (जैसलमेर), बाप (जोधपुर) तथा थोब (बाड़मेर) प्रमुख रन हैं |
- इस भू-भाग की पश्चिमी सीमा ‘रेडक्लिफ रेखा’ ( अन्तर्राष्ट्रीय सीमा ) है | Uttari Pashchimi Mrusthaliy Bhag
- इस भाग की प्रमुख नदी लूनी है, जो नागपहाड़ (अजमेर) से निकलकर नागौर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर व जालौर में बहकर कच्छ के रन (गुजरात) में विलुप्त हो जाती है |
- थार मरुस्थल विश्व का एकमात्र ऐसा मरुस्थल है, जिसके निर्माण में दक्षिण-पश्चिमी मानसून हवाओं का मुख्य योगदान है |
- यह मरुस्थल विश्व के मरुस्थलों में सर्वाधिक आबादी, जनसंख्या घनत्व, सर्वाधिक वनस्पतियुक्त पारिस्थितिकी तथा पशुधन की अधिकता के लिए विख्यात है |
उत्तरी पश्चिमी मरुस्थलीय भाग के हिस्से –
- इस क्षेत्र को दो भागों में बाँटा जा सकता है | Uttari Pashchimi Mrusthaliy Bhag
- 25 सेमी सम वर्षा रेखा इन दोनों क्षेत्रों को अलग करती है, जो निम्न है-
1. रेतीला शुष्क मैदान ( Uttari Pashchimi Mrusthaliy Bhag ) :-
- गंगानगर, चुरू, बाड़मेर, जैसलमेर, आदि क्षेत्र में वर्षा अत्यधिक कम होने के कारण इस प्रदेश को शुष्क बालूका मैदान भी कहते हैं।
- यहाँ का अधिकांश भाग बालुका स्तूपों से आच्छादित है |
- यह बालुका स्तूपों से ढका भूभाग पाकिस्तान की सीमा के सहारे-सहारे गुजरात से पंजाब तक विस्तृत है |
- पश्चिमी रेतीले शुष्क मैदान के दो उपविभाग हैं –
A. बालुकास्तूप युक्त मरुस्थलीय प्रदेश –
- यहाँ बालू रेत के विशाल टीले पाये जाते हैं जो तेज हवाओं के साथ अपना स्थान बदलते रहते हैं |
- इनका स्थानान्तरण मार्च से जुलाई माह के मध्य में सर्वाधिक होता है |
- बालुकास्तूप वायू अपरदन एवं निक्षेपण का परिणाम हैं |
- इस क्षेत्र में निम्न प्रकार के बालूका स्तूपों का बाहुल्य पाया जाता है –
- 1. बरखान – ये चुरू, जैसलमेर, सीकर, लूणकरणसर, सूरतगढ़, बाड़मेर, जोधपुर आदि में पाए जाते हैं | अर्द्ध चंद्रकार होते हैं | ये गतिशील, रंध्रयुक्त व नवीन बालुयूक्त होते हैं।
- 2.पवानानुवर्ती – रेखीय होते हैं | जैसलमेर, जोधपुर एवं बाड़मेर में पाए जाते हैं | इन पर वनस्पति पाई जाती है | Uttari Pashchimi Mrusthaliy Bhag
- 3. अनुप्रस्थ बालुकास्तूप – ये बालुकास्तूप पवन की दिशा के समकोण पर बनते हैं | बीकानेर, दक्षिण गंगानगर, हनुमानगढ़, चुरू, सूरतगढ़, झुंझुनूं आदि क्षेत्रों में |
- 4.पैराबोलिक बालुकास्तूप – इनका निर्माण वनस्पति एवं समतल मैदानी भाग के बीच उत्पाटन से होता हैं | इनकी आकृति महिलाओं के हेयरपिन की तरह होती है | सभी मरुस्थलीय जिलों में विद्यमान है |
- 5. नेटवर्क बालुकास्तूप – ये उत्तरी-पूर्वी मरुस्थलीय भाग- हनुमानगढ़ से हिसारभिवानी (हरियाणा) तक मिलते हैं |
- 6. ताराबालुका स्तूप – इन बालुकास्तूपों का निर्माण मुख्य रूप से अनियतवादी एवं संश्लिष्ट पवनों के क्षेत्र में ही होता है | मोहनगढ़, पोकरण (जैसलमेर), सूरतगढ़ (गंगानगर) आदि क्षेत्रों में पाए जाते है |
B. बालुकास्तूप मुक्त मरुस्थलीय प्रदेश –
- इस क्षेत्र में एक विशाल समुद्र (टेथीस सागर) था, जिसके अवशेष यहाँ पाये जाने वाले चट्टानी समूहों में मिलते हैं |
- यह क्षेत्र बालुकामुक्त प्रदेश है |
- इस क्षेत्र को जैसलमेर-बाड़मेर का चट्टानी प्रदेश भी कहते हैं |
- इनमें चूना पत्थर की चट्टानें मुख्य हैं । इन चट्टानों में वनस्पति अवशेष एवं जीवाष्म पाये जाते हैं।
- जैसलमेर के राष्ट्रीय मरुउद्यान में स्थित आकल वुड फोसिल पार्क जीवाश्मों का उदाहरण है |
- लाठी क्षेत्र इसी भूगर्भीय जल पट्टी का अच्छा उदाहरण है | अवसादी शैलों में भूमिगत जल का भारी भण्डार है | Uttari Pashchimi Mrusthaliy Bhag
- इन्हीं टीयरीकालीन चट्टानों में प्राकृतिक गैस एवं खनिज तेल के भी व्यापक भण्डार मौजूद हैं| बाड़मेर (गुड़ामालानी, बायतु ) एवं जैसलमेर क्षेत्र में तेल एवं गैस के व्यापक भण्डारों के मिलने का कारण वहाँ टर्शियरी काल की चट्टानों का होना ही है |
2. अर्द्ध शुष्क मैदान ( बांगड़ क्षेत्र ) :-
- अर्द्धशुष्क मैदान, शुष्क रेतीले प्रदेश के पूर्व में व अरावली पहाड़ियों के पश्चिम में लूनी नदी के जल प्रवाह क्षेत्र में अवस्थित है |
- इसका उत्तरी भाग घग्घर का मैदान, उत्तरपूर्वी भाग शेखावाटी का आन्तरिक जल प्रवाह क्षेत्र, व दक्षिण-पूर्वी भाग लूनी नदी बेसिन तथा मध्यवर्ती भाग नागौरी उच्च भूमि है|
- यह आन्तरिक प्रवाह क्षेत्र है |
- इस सम्पूर्ण प्रदेश को निम्न चार भागों में विभाजित किया जाता है –
A. लूनी बेसिन या गौड़वाड़ क्षेत्र –
- जोधपुर, जालौर, पाली एवं सिरोही के क्षेत्र शामिल हैं |
- लूनी एवं उसकी सहायक नदियों के इस अपवाह क्षेत्र को गौड़वाड़ प्रदेश कहते हैं |
- बालोतरा के बाद लूनी नदी का पानी नमकयुक्त चट्टानों, नमक के कणों एवं मरुस्थली प्रदेश के अपवाह तंत्र के कारण खारा हो जाता है |
- इस क्षेत्र में जसवंतसागर, सरदारसमन्द, हेमावास बाँध एवं नयागाँव आदि बाँध हैं |
B. घग्घर का मैदान –
- इस मैदानी भाग का निर्माण मुख्यतः घग्घर वैदिक सरस्वती, सतलज एवं चौतांग नदियों की जलोढ़ मिट्टी से हुआ है |
- यह मुख्यतः हनुमानगढ़ एंव गंगानगर जिलों में विस्तृत है |
- वर्षा ऋतु में इसमें कई बार बाढ़ आ जाती है, जो हनुमानगढ़ जिले को जलमग्न कर देती है |
- यह नदी भटनेर के पास रेगिस्तान में विलुप्त हो जाती है |
- यह मृत नदी के नाम से भी जानी जाती है |
C. नागौरी उच्च भूमि प्रदेश –
- राज्य के बांगड़ प्रदेश के मध्यवर्ती भाग को नागौर उच्च भूमि कहते हैं |
- इस क्षेत्र में डीडवाना, कुचामन, सांभर, नावां आदि खारे पानी की झीलें हैं जहाँ नमक उत्पादित होता है |
- इस क्षेत्र में नमकयुक्त झीलें, अन्तप्रवाह जलक्रम, प्राचीन चट्टानें एवं ऊँचा नीचा धरातल मौजूद है |
D. शेखावाटी आंतरिक प्रवाह क्षेत्र –
- इस भू-भाग में चुरु, सीकर, झुंझुनूं व नागौर का कुछ भाग आता है |
- इसके उत्तर में घग्घर का मैदान तथा पूर्व में अरावली पर्वत श्रृंखला है तथा पश्चिम में 25 सेमी सम वर्षा रेखा है |
- 25 सेमी. की सम वर्षा रेखा इसे शुष्क मरुस्थल से अलग करती है |
- इस प्रदेश में बरखान प्रकार के बालुकास्तूपों का बाहुल्य है |
- इस भाग की सभी नदियाँ काँतली, मेंथा, रूपनगढ़, खारी आदि आंतरिक जल प्रवाह की नदियाँ हैं |
FAQ :
ANS. जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, बीकानेर, गंगानगर, हनुमानगढ़, नागौर, जालौर, चुरू, सीकर, झुंझुनू, तथा पाली जिले पश्चमी भाग है
ANS. थार मरुस्थल का लगभग 62 प्रतिशत क्षेत्र अकेले राजस्थान में है |
ANS. लूनी एवं उसकी सहायक नदियों के इस अपवाह क्षेत्र को गौड़वाड़ प्रदेश कहते हैं |
ANS. मरुस्थल में बालुका-स्तूपों के बीच में कहीं-कहीं निम्न भूमि मिलती है जिसमें वर्षा का जल भर जाने से अस्थायी झीलों व दलदली भूमि का निर्माण होता है जिसे ‘रन’ कहते हैं
ANS. यह मरुस्थल टेथिस सागर का अवशेष माना जाता है |
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