Rajasthan History : Gurjar Pratihar | गुर्जर प्रतिहार – इस भाग में आपको मारवाड़ के राजवंश Gurjar Pratihar के वत्सराज, नागभट्ट-द्वितीय, मिहिरभोज, महेंद्रपाल प्रथम, महिपाल आदि के बारे में विस्तृत जानकारी मिलेगी |
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गुर्जर-प्रतिहार ( Gurjar Pratihar ) –
Table of Contents
- उत्तरी-पश्चिमी भारत में गुर्जर प्रतिहार वंश का शासन मुख्यत: आठवीं से 10वीं सदी तक रहा था |
- प्रारम्भ में इनकी शक्ति का केंद्र मारवाड़ था |
- उस समय राजपुताना यह क्षेत्र गुर्जरात्रा ( गुर्जर प्रदेश ) कहलाता था |
- गुर्जर क्षेत्र के स्वामी होने के कारण प्रतिहारों को गुर्जर प्रतिहार कहा जाने लगा था |
- इसी कारण तत्कालीन मंदिर स्थापत्य की प्रमुख कला शैली को गुर्जर प्रतिहार शैली का नाम दिया गया है |
- आठवीं से दसवीं सदी तक राजस्थान के गुर्जर प्रतिहारों की तुलना में कोई भी प्रभावी राजपूत वंश नहीं था |
- इनका अधिकार राजस्थान के अलावा कन्नौज तथा बनारस तक फैला हुआ था |
- आठवीं और नौवीं सदी में कन्नौज व्यापार और वाणिज्य का प्रमुख केंद्र था |
- कन्नौज पर अधिकार करने के लिए लगभग 100 वर्षों तक गुर्जर प्रतिहारों, बंगाल के पालों एंव दक्षिण राष्ट्रकूटो के मध्य त्रिपक्षीय संघर्ष चलता रहा |
- इस संघर्ष के पश्चात अंतत: विजयश्री गुर्जर प्रतिहार को ही मिली |
- राजस्थान में गुर्जर प्रतिहारों की दो शाखाओं का अस्तित्व था –
- 1. मंडोर शाखा
- 2. भीनमाल ( जालौर ) शाखा |
- राजस्थान में गुर्जर प्रतिहारों की प्रारम्भिक राजधानी मंडोर ( जोधपुर ) थी |
- प्रतिहार शासक नागभट्ट प्रथम ने आठवीं शताब्दी में भीनमाल पर अधिकार कर उसे अपनी राजधानी बनाया |
- इन्होने उज्जैन को अपने अधिकार में कर लिया और वो इनकी शक्ति का प्रमुख केंद्र हो गया था |
- नागभट्ट प्रथम के उत्तराधिकारी कक्कुक एंव देवराज थे |
वत्सराज ( Gurjar Pratihar ) –
- देवराज का पुत्र वत्सराज गुर्जर प्रतिहार वंश का प्रतापी शासक हुआ |
- उसने मांडी वंश को पराजित किया |
- बंगाल के धर्मपाल को भी पराजित किया |
- वत्सराज को ‘रणहस्तिन्’ कहा जाता है |
नागभट्ट- द्वितीय ( Gurjar Pratihar ) –
- वत्सराज का उत्तराधिकारी उसका पुत्र नागभट्ट-द्वितीय सन् 815 में गद्दी पर बैठा |
- उसने 816 ई. में कन्नौज पर आक्रमण कर चक्रायुद्ध को पराजित किया |
- कन्नौज को प्रतिहार वंश की राजधानी बनाया तथा 100 वर्षों से चल रहे त्रिपक्षीय संघर्ष को समाप्त किया |
- उन्होंने बंगाल के शासक धर्मपाल को हरा कर मुंगेर पर अधिकार कर लिया |
- उसके समय प्रतिहार उत्तरी भारत का सबसे शक्तिशाली राज्य बन चूका था |
- नागभट्ट द्वितीय ने अरब आक्रमणों को रोके रखने में भी महत्तवपूर्ण भूमिका निभाई |
- उसने 833 ई. में गंगा में जल समाधि ली |
- इनके बाद इनके पुत्र रामभद्र ने 833 ई. शासन की बागडोर संभाली |
- नागभट्ट के समय प्रतिहार राज्य का विस्तार राजपुताना के एक बड़े क्षेत्र, उत्तरप्रदेश के वृहत क्षेत्र, मध्य भारत, उत्तरी काठियावाड़ एंव आसपास के क्षेत्रों तक हो गया था |
त्रिपक्षीय संघर्ष ( Gurjar Pratihar) –
- गुप्त साम्राज्य के पतन के साथ ही उत्तर भारत की राजनितिक शक्ति का केंद्र बिंदु पाटलिपुत्र के स्थान पर कन्नौज (U.P. के फरुर्खाबाद ) हो गया |
- आठवीं शताब्दी के मध्य में भारत के तीन शक्तिशाली राजवंशों का उदय हुआ |
- दक्षिण में राष्ट्रकूट,पूर्व में पाल एंव उत्तरी भारत में गुर्जर प्रतिहार |
- कन्नौज पर अधिकार के लिए इन तीनों महाशक्तियों के मध्य हुए संघर्ष को ‘त्रिपक्षीय संघर्ष’ कहा जाता है |
- इसकी शुरुआत प्रतिहार नरेश वत्सराज ने कन्नौज के शासक इन्द्रायुध को पराजित करके की एंव अंतत: प्रतिहार इसमें सफल हुए |
- प्रतिहार शासक नागभट्ट द्वितीय ने 816 ई. कन्नौज के शासक चक्रायुद्ध को हरा कर कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया |
मिहिरभोज –
- रामभद्र के उत्तराधिकारी मिहिरभोज के समय प्रतिहारों की शक्ति अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंची |
- उसने बुन्देलखंड तक अपने वंश का राज्य पुन: स्थापित किया |
- अरब यात्री ‘सुलेमान’ ने ( 851 ई. ) मिहिरभोज के कुशल प्रशासन और शक्तिशाली सेना की प्रशंसा की |
- राष्ट्रकूट शासक ध्रुव ने मिहिर भोज के दक्षिणी क्षेत्रों में विजय अभियान पर रोक लगाईं |
- बाद में भोज ने राष्ट्रकूट शासक कृष्णा तृतीय को पराजित कर मालवा पर अधिकार कर लिया था |
- मिहिरभोज ने आदिवाराह, प्रभास आदि विरुद धारण किये |
महेन्द्रपाल प्रथम –
- मिहिरभोज के बाद उसका पुत्र महेंद्र पाल प्रथम प्रतिहार वंश का शासक बना |
- यह विद्वानों का उदार संरक्षक था |
- इसके दरबारी साहित्यकार राजशेखर ने कर्पूरमंजरी, काव्य मीमांसा, बाल रामायण, बाल भारत आदि ग्रंथों की रचना की थी |
- राजशेखर ने अपने ग्रंथों में इनको ‘निर्भय नरेश’ कहा है |
महिपाल –
- महेन्द्रपाल के बाद शासन पर अधिकार के लिए संघर्ष छिड़ गया था |
- संघर्ष के पश्चात महिपाल ने शासन की बाग़डोर संभाली |
- लेकिन तब तक राष्ट्र्कुट नरेश इंद्र तृतीय ने प्रतिहारों को हरा कर कन्नौज को नष्ट कर दिया |
- इनके समय अरब यात्री ‘अल मसूदी’ इनके राज्य में यात्रा पर आया था |
अन्य महत्तवपूर्ण तथ्य –
- अंतिम प्रतिहार शासकों मे एक शासक राज्यपाल हुआ, जिसके शासनकाल में 1018 ई. में महमूद गजनवी ने कन्नौज पर आक्रमण किया परन्तु राज्यपाल मुकाबला करने के स्थान पर कन्नौज छोड़कर सुरक्षित स्थान पर चला गया |
- उसके इस कायरतापूर्ण कार्य के फलस्वरूप चंदेल राजा गंड तथा उसके पुत्र विद्याधर ने उस पर आक्रमण कर उसे मार डाला
- अंतत: 11वीं सदी के पूर्वार्द्ध में ही गहड़वालों ने कन्नौज पर अधिकार कर अपना शासन स्थापित किया |
- सन् 1036 ई. के एक अभिलेख में उल्लिखित यशपाल देव सम्भवत: अंतिम गुर्जर प्रतिहार शासक था |
- प्रारम्भिक प्रतिहार शासकों की जानकारी भोज प्रतिहार की ग्वालियर प्रशस्ति, उद्योतन सुरि रचित ‘कुवलयमाला’, पुरातन प्रबंध संग्रह एंव हरिवंश पुराण में मिलती है |
- प्रतिहारों की मंडोर शाखा के एक शासक ने मेड़ता ( मेड्न्तक ) को अपनी राजधानी बनाया था |
FAQ :
ANS. इसकी शुरुआत प्रतिहार नरेश वत्सराज ने की थी |
ANS. नागभट्ट द्वितीय ने चक्रायुद्ध को पराजित कर 100 वर्षों से चल रहे त्रिपक्षीय संघर्ष को समाप्त किया |
ANS. नागभट्ट द्वितीय के समय प्रतिहार उत्तरी भारत का सबसे शक्तिशाली राज्य था |
ANS. वत्सराज को रणहस्तिन् के नाम से जाना जाता है |
ANS. कन्नौज का त्रिपक्षीय संघर्ष दक्षिण में राष्ट्रकूट,पूर्व में पाल एंव उत्तरी भारत में गुर्जर प्रतिहार के बीच में हुआ |
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