Rajasthan History : महाराणा सांगा | Maharana Sanga – इस भाग मेवाड़ के Maharana Sanga के जीवन, उनके संघर्ष, और उनके द्वारा किये गए युद्ध जैसे की – गागरोन, खानवा युद्ध आदि का विस्तृत वर्णन है |
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महाराणा सांगा ( Maharana Sanga ) –
- इनका जन्म 12 अप्रेल, 1482 को हुआ था |
- ये महाराणा कुम्भा के पौत्र और महाराणा रणमल के पुत्र थे |
- इनके राजयोग की प्रबल संभावना संबंधी ज्योतिष वाणी के कारण उनके बड़े भाई पृथ्वीराज और जयमल ईर्ष्याग्रस्त होकर इन्हें मारना चाहते थे।
- अजमेर के कर्मचन्द पवार ने साँगा को उनके बड़े भाइयों से बचाकर अज्ञातवास में रखा था तथा राज्याभिषेक से पूर्व तक वे साँगा के आश्रयदाता बने थे।
- राज्याभिषेक 24 मई, 1509 को |
- जब मेवाड़ का राज्य सँभाला तब दिल्ली में लोदी वंश के सुल्तान सिकन्दर लोदी, तथा गुजरात में महमूदशाह बेगड़ा और मालवा में नासिर शाह खिलजी का शासन था।
- इन सभी से महाराणा का सामना हुआ व उन्हें महाराणा के आगे झुकना पड़ा।
- इन्होंने कर्मचंद पँवार को अजमेर, परबतसर, मांडल, फूलिया तथा बनेड़ा आदि 15 लाख वार्षिक आय के परगने जागीर में देकर मेवाड़ की उत्तरी-पश्चिमी सीमा पर मजबूत प्रहरी बैठा दिया।
- दक्षिण-पश्चिमी सीमा की गुजरात से सुरक्षार्थ ईडर राज्य में सुल्तान समर्थक भारमल को हटाकर अपने जमाता रायमल को गद्दी पर बैठाया।
- मेवाड़ के पड़ोसी राजपूत राज्यों को पुनः मेवाड़ के प्रभाव में लाने के लिए राणा साँगा ने वैवाहिक संबंध भी स्थापित किए।
- माण्डू के वजीर मेदिनीराय को मेवाड़ में शरण लेने पर गागरोन तथा चंदेरी के प्रान्त उसे जागीर में प्रदान कर मालवा के विरुद्ध एक शक्तिशाली जागीर की स्थापना की।
- सिरोही, वागड़ तथा मारवाड़ के राजाओं से वार्तालाप कर मुस्लिम शासकों के विरुद्ध राजपूत राज्यों के मैत्री संघ का गठन किया जो मुस्लिम आक्रमणों के विरुद्ध परस्पर एक-दूसरे की सहायता को तत्पर रह सके।
- कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार राणा संग्रामसिंह के शासनकाल (1509-1528 ई.) में मेवाड़ राज्य की सीमा बहुत दूर तक फैल गई थी।
महाराणा सांगा और मालवा ( Maharana Sanga ) –
- 1511 ई. में नासिरुद्दीन खिलजी की मृत्यु के बाद महमूद खिलजी द्वितीय मालवा की गद्दी पर बैठा किन्तु नासिरुद्दीन के छोटे भाई साहिब खाँ ने महमूद को हटाकर सिंहासन अधिकृत कर लिया।
- फरवरी, 1518 में सुल्तान महमूद खलजी द्वितीय की सहायतार्थ गुजरात के सुल्तान मुजफ्फरशाह ने मालवा पर आक्रमण कर माण्डू के दुर्ग को हस्तगत किया।
- चंदेरी के शासक मेदिनीराय के सहायता हेतु अनुरोध पर राणा साँगा ने मालवा की ओर प्रस्थान किया लेकिन माण्डू के दुर्ग के पतन के समाचार सुनकर गागरोन दुर्ग पर आक्रमण कर इस दुर्ग को मेदिनीराय के अधिकार में सौंप वे मेवाड़ लौट आए।
गागरोन युद्ध ( Maharana Sanga ) –
- 1519 ई. में हुआ |
- मालवा के लिए गागरोन दुर्ग का महत्त्व इसी प्रकार था जैसे शेर के लिए दाँत का।
- राणा सांगा के मेवाड़ लौटने के बाद मेदिनिराय की शक्ति को समाप्त करने के लिए महमूद ने गागरोन पर आक्रमण किया|
- मेदिनीराय की प्रार्थना पर साँगा पुन: गागरोन पहुँच गए व महमूद से युद्ध किया, साँगा को निर्णयक विजय प्राप्त हुई।
- महमूद को बन्दी बना लिया गया, लेकिन बाद में राणा ने उसके साथ मानवीय व्यवहार करते उसे क्षमादान देकर मालवा लौटा दिया।
- इस युद्ध में पहली बार मेवाड़ द्वारा रक्षात्मक युद्ध के स्थान पर आक्रमण युद्ध का आरम्भ हुआ।
- मालवा को मेवाड़ से अपनी ही भूमि पर पराजय मिली।
- गागरोन आक्रमण के पश्चात मालवा संकट से राणा को मुक्ति मिल गई।
राणा साँगा और गुजरात ( Maharana Sanga ) –
- साँगा के राज्यारोहण के समय गुजरात में महमूद बेगड़ा का शासन था।
- नवम्बर, 1511 में उसके देहान्त के बाद उसका पुत्र मुजफ्फरशाह द्वितीय गुजरात की गद्दी पर बैठा।
ईडर राज्य में हस्तक्षेप ( Maharana Sanga ) –
- मेवाड़ की गद्दी पर आसीन होने के कुछ वर्षों बाद ही साँगा को ईडर राज्य में अपने समर्थक को गद्दी पर बैठाने का अवसर मिल गया, जिसके लिए उसने ईडर राज्य में हस्तक्षेप किया।
- ईडर के राव भाण के पौत्रों-रायमल और भारमल की आपसी लड़ाई में महाराणा साँगा ने रायमल की सहायता कर उसे ईडर का शासक बनाने में मदद की थी।
- इस कारण से महाराणा साँगा की गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर शाह से लड़ाई हुई।
- सुल्तान मुजफ्फरशाह का उत्तराधिकारी सिकन्दरशाह था परन्तु उसका दूसरा पुत्र बहादुरशाह गद्दी पर बैठना चाहता था।
- अत: वह अपने बड़े भाई से रुष्ट होकर साँगा की शरण में मेवाड़ चला आया।
- राणा ने उसको सहायता प्रदान कर गुजरात को कई बार लुटवाया और गुजरात को शक्ति को निर्बल किया।
दिल्ली और सांगा ( Maharana Sanga ) –
- साँगा के राज्यारोहण के समय दिल्ली का सुल्तान सिकन्दर लोदी था।
- सिकन्दर लोदी की मृत्यु के बाद उसका ज्येष्ठ पुत्र इब्राहीम लोदी 22 नवम्बर, 1517 को दिल्ली के तख्त पर आसीन हुआ।
खातौली का युद्ध ( Maharana Sanga ) –
- राणा साँगा ने पूर्वी राजस्थान के उन क्षेत्रों को जो दिल्ली सल्तनत के अधीन थे जीतकर अपने राज्य में मिला लिया था।
- इससे इब्राहीम लोदी ने क्रुद्ध होकर सांगा को सबक सिखाने के लिए मेवाड़ पर आक्रमण किया एवं दोनों के मध्य 1517 में हाड़ौती की सीमा पर खातोली का युद्ध हुआ।
- इस युद्ध में इब्राहीम लोदी की पराजय हुई।
बाड़ी (धौलपुर) का युद्ध –
- यह युद्ध 1519 ई. में हुआ था |
- इब्राहीम लोदी ने अपनी पराजय का बदला लेने के लिए |
- मियाँ मक्कन के नेतृत्व में शाही सेना राणा साँगा के विरुद्ध भेजी |
- इस युद्ध में शाही सेना को बाड़ी के युद्ध में बुरी तरह पराजित होकर भागना पड़ा।
साँगा और बाबर –
- राणा साँगा के समय काबुल का शासक बाबर ( मोहम्मद जहीरुद्दीन बाबर ) था जो तैमूर लंग के वंशज उमरशेख मिर्जा का पुत्र था।
- इसकी माँ चंगेज खाँ के वंश से थी।
- बाबर ने 20 अप्रैल, 1526 को पानीपत की प्रथम लड़ाई में दिल्ली के सुल्तान इब्राहीम लोदी को परास्त कर दिल्ली पर मुगल शासन की आधारशिला रखी।
- दिल्ली पर अधिकार करने के बाद बाबर ने उस समय के शक्तिशाली शासक राणा साँगा पर भी अपना अधिकार जमाने हेतु आक्रमण किया।
- वह भारत पर अपना साम्राज्य स्थापित करना चाहता था।
- बाबर ने फतेहपुर सीकरी में अपना पड़ाव डाला था।
- बाबर की ओर से मेहंदी ख्वाजा द्वारा बयाना दुर्ग अधिगृहित कर लिया गया।
बयाना युद्ध –
- 16 फरवरी, 1527 को साँगा ने बाबर की सेना को हरा बयाना दुर्ग पर कब्जा कर लिया।
- बाबर ने इस हार का बदला लेने के लिये साँगा पर पुनः आक्रमण हेतु कूच किया।
- बयाना की विजय के बाद साँगा ने सीकरी जाने का सीधा मार्ग छोड़कर भुसावर होकर सीकरी जाने का मार्ग पकड़ा।
- वह भुसावर में लगभग एक माह ठहरा रहा।
- लेकिन इससे बाबर को खानवा के मैदान में उपयुक्त स्थान पर पड़ाव डालने और उचित सैन्य संचालन का समय मिल गया।
खानवा का युद्ध –
- 17 मार्च, 1527 को खानवा के मैदान में दोनों सेनाओं के मध्य भीषण युद्ध हुआ।
- खानवा का मैदान आधुनिक भरतपुर जिले की रूपवास तहसील में है।
- इस युद्ध में महाराणा साँगा के झंडे के नीचे प्राय: सारे राजपूताने के राजा थे।
- राणा साँगा ने खानवा के युद्ध से पहले ‘पाती पेरवन’ की राजपूत परम्परा को पुनजीवित करके राजस्थान के प्रत्येक सरदार को अपनी ओर से युद्ध में शामिल होने का निमंत्रण दिया था।
- मारवाड़ के राव गांगा एवं मालदेव, आमेर का राजा पृथ्वीराज, ईडर का राजा भारमल, वीरमदेव मेड़तिया, वागड़ ( डूंगरपुर ) का रावल उदयसिंह व खेतसी, देवलिया का रावत बाघसिंह, नरबद चंदेरी का मेदिनीराय, वीरसिंह देव, बीकानेर के राव जैतसी का पुत्र कुँवर कल्याणमल, झाला अज्जा आदि कई राजपूत राणा साँगा के साथ थे।
- साँगा अंतिम हिन्दू राजा थे, जिनके सेनापतित्व में सब राजपूत जातियाँ विदेशियों को भारत से निकालने के लिए सम्मिलित हुई।
- युद्ध के दौरान राणा साँगा के सिर पर एक तीर लगा जिससे वे मूर्छित हो गये थे।
- तब झाला अजा को सब राज्यचिह्नों के साथ महाराणा के हाथी पर सवार किया और उसकी अध्यक्षता में सारी सेना लड़ने लगी।
- झाला अज्जा ने इस युद्ध संचालन में अपने प्राण दिये।
- थोड़ी ही देर में महाराणा के न होने की खबर सेना में फैल गई व इससे सेना का मनोबल टूट गया।
- बाबर विजयी हुआ।
- मूर्छित महाराणा को राजपूत बसवा गाँव (जयपुर राज्य) ले गए।
खानवा के युद्ध में साँगा की पराजय के मुख्य कारण –
- महाराणा साँगा की प्रथम विजय के बाद तुरंत ही युद्ध न करके बाबर को तैयारी करने का समय देना था।
- राजपूतों की युद्ध तकनीक भी पुरानी थी।
- वे बाबर की युद्ध की नवीन व्यूह रचना ‘तुलुगमा पद्धति’ से अनभिज्ञ थे।
- बाबर की सेना के पास तोपें और बंदूकें थी, जिससे राजपूत सेना की बड़ी हानि हुई थी।
- 30 जनवरी, 1528 को राणा साँगा का स्वर्गवास ( कालपी नामक स्थान पर ) हो गया ।
- उनको मांडलगढ़ लाया गया जहाँ उनकी समाधि है।
FAQ :
1. गागरोन युद्ध किनके बीच में और कब हुआ ?
ANS. महमूद और राणा सांगा के बीच 1519 ई. में |
2. खातौली का युद्ध किनके बीच में और कब हुआ ?
ANS. इब्राहीम लोदी और राणा सांगा के बीच 1517 ई. में हाडौती की सीमा पर खातौली में हुआ |
3. खानवा के युद्ध में बाबर ने कौनसी पद्धति का प्रयोग किया था ?
ANS. तुलुगमा पद्धति का प्रयोग किया था |
4. महाराणा साँगा की मृत्यु कब और कहाँ पर हुयी थी?
ANS. 30 जनवरी, 1528 को राणा सांगा की मृत्यु कालपी नामक स्थान पर हुयी |
5. पानीपत का प्रथम युद्ध किनके बीच और कब हुआ था ?
ANS. 20 अप्रैल, 1526 को बाबर और दिल्ली के सुल्तान इब्राहीम लोदी के बीच मे हुआ था |
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