राजस्थान संस्कृति | राजस्थान चित्रकला की शैलियों का वर्गीकरण : – इसमें Rajasthan Culture के अध्याय Rajasthaan Chitrakala Ki Shailiyon Ka Vargikaran के बारे जानकारी मिलेगी। इसमें चित्रकला का नामकरण और कालक्रम का विस्तृत वर्णन दिया गया है। राजस्थान की चित्रकलाओं की शैलियों का वर्गीकरण किया गया है। राजस्थान की चित्रकला की शैलियों को चार स्कुल में बांटा गया है और इनमे शैलियों को रखा गया है।
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राजस्थानी चित्रकला का नामकरण और कालक्रम
- राजस्थानी चित्रकला के नामकरण पर विद्वानों में तीव्र मतभेद है।
- राजस्थानी चित्रकला के नामकरण पर बल देने वाले कलामनीषियों में रायकृष्णदास, रामगोपाल विजयवर्गीय, डॉ. मोतीचन्द, कुंवर संग्राम सिंह, कार्ल खण्डालावाला, आनन्द कृष्ण आदि का इसमें उल्लेखनीय योगदान रहा है।
- राजस्थानी चित्रकला का सबसे पहला वैज्ञानिक विभाजन आनन्द कुमार स्वामी ने ‘राजपूत पेंटिंग्स’ नामक पुस्तक में सन् 1916 में किया।
- कुमार स्वामी, ओ.सी. गांगुली, हैवेल ने इसे ‘राजपूत चित्रकला‘ कहा है।
- डॉ. आनन्द कुमार स्वामी के अनुसार यह कला मुगल युग पूर्व उत्पन्न हुई थी।
- इस काल के सबसे पुराने उदाहरण बोस्टन संग्रहालय में सुरक्षित रागमाला के दो चित्र-सम्पुटों में है, जिन्हें “बोस्टन प्रिमिटिव्ज” कहा जाता है।
- स्वर्गीय जदुनाथ सरकार ने उसे राजपूत राजाओं के दरबार में विकसित होने वाली “प्रान्तीय मुगल कला” कहा।
- डॉ. से हर्मन गोएट्ज ने चित्रों में अंकित स्थापत्य तथा वेश-भूषा के आधार पर 1616-20 ई. के लगभग बोस्टन प्रिमिटव्ज की उत्पत्ति मानी।
- डॉ. कुमार स्वामी इसकी उत्पत्ति निश्चित रूप से सोलहवीं शती से मानते रहे।
- कार्ल जे. खण्डालावाला ने इसका प्रादुर्भाव मुगल कला के पश्चात् माना कि पश्चिम भारत शैली में मुगल शैली के मिश्रण से इसका विकास हुआ।
- डब्ल्यू, एच. ब्राउन ने अपने ग्रंथ ‘इण्डियन पेंटिंग्स’ में इस प्रदेश की चित्रकला का नाम ‘राजपूत कला’ दिया है, जबकि एच. सी. मेहता ने ‘स्टडीज इन इण्डियन पेंटिंग्स’ में इसे ‘हिन्दू चित्र शैली’ की संज्ञा दी है।
- ‘रायकृष्णदास जी ने इन मतों का खण्डन कर इसे ‘राजस्थानी चित्रकला का नाम दिया।
- अतः सर्वसम्मति से ‘राजस्थानी चित्रशैली’ नाम स्वीकार किया गया है।
- अनेक विद्वानों ने राजस्थान की विभिन्न शैलियों पर पुस्तकें प्रकाशित कर इसके प्रारूप को स्थापित करने में सहयोग दिया है, जिनमें मेवाड़ पर सर्वश्री डॉ. मोतीचन्द्र, श्रीधर अंधारे, डॉ. आर.के. वशिष्ठ एवं किशनगढ़ पर श्री एरिक डिकिन्सन एवं डॉ. फैयाजअली, बूंदी-कोटा पर सर्वश्री प्रमोदचन्द्र, डब्ल्यू. जी. आर्चर एवं महाराजा ब्रजेन्द्रसिंह कोटा का नाम उल्लेखनीय है।
राजस्थानी चित्रकला की शैलियों का वर्गीकरण Rajasthaan Chitrakala Ki Shailiyon Ka Vargikaran
- राजस्थानी चित्रकला की शैलियों को भौगोलिक, सांस्कृतिक आधार पर चार प्रमुख स्कूलों एवं अनेक उपस्कूलों में विभक्त किया गया है, जो निम्नलिखित हैं –
- मेवाड़ स्कूल –
- चावंड शैली, उदयपुर शैली, नाथद्वारा शैली, देवगढ़ उपशैली, सावर उपशैली, शाहपुरा उपशैली तथा बनेड़ा, बागौर, बेगें, केलवा आदि ठिकाणों की कला।
- मारवाड़ स्कूल –
- जोधपुर शैली, बीकानेर शैली, किशनगढ़ शैली, अजमेर शैली, नागौर शैली, सिरोही शैली, जैसलमेर शैली तथा घाणेराव, रियाँ, भिणाय, जूनियाँ आदि ठिकाणा कला ।
- हाड़ौती स्कूल –
- बूँदी शैली, कोटा शैली, झालावाड़ उपशैली।
- ढूंढाड़ स्कूल–
- आम्बेर शैली, जयपुर शैली, शेखावाटी शैली, अलवर शैली, उणियारा उपशैली तथा झिलाय, ईसरदा, शाहपुरा, सामोद आदि ठिकाणा कला ।
- मेवाड़ स्कूल –
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FAQ
ANS. राजस्थानी चित्रकला का सबसे पहला वैज्ञानिक विभाजन आनन्द कुमार स्वामी ने ‘राजपूत पेंटिंग्स’ नामक पुस्तक में सन् 1916 में किया।
ANS. एच. सी. मेहता ने ‘स्टडीज इन इण्डियन पेंटिंग्स’ में राजस्थान चित्रकला को ‘हिन्दू चित्र शैली’ की संज्ञा दी है।
ANS. कुमार स्वामी, ओ.सी. गांगुली, हैवेल ने इसे ‘राजपूत चित्रकला‘ कहा है।
ANS. सर्वसम्मति से राजस्थानी चित्रकला का नाम ‘राजस्थानी चित्रशैली’ नाम स्वीकार किया गया
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