राजस्थान चित्रकला के मेवाड़ स्कूल के बारे में सम्पूर्ण जानकरी : – इसमे Rajasthan Culture कि Rajasthan Chitrakala Ki Mevad Shaili के बारे मे विस्तृत जानकारी मिलेगी। इसमें Mewad Skool के अन्दर आने वाली सभी शैलियों का भी वर्णन किया गया है। इसके साथ ही मेवाड़ स्कुल के चित्रों की विशेषताओं को भी विस्तृत रूप में बताया गया है।
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मेवाड़ स्कूल
- राजस्थानी चित्रकला का प्रारम्भिक और मौलिक रूप जो जैन, मालवा व अपभ्रंश आदि के सामंजस्य के फलस्वरूप बनने पाया था।
- मेवाड़ शैली में पाते मेवाड़ चित्रकला के उद्भव पर विचार करते हुए वासुदेवशरण अग्रवाल लिखते हैं कि राजस्थान, गुजरात की सीमा पर इस शैली का पूर्वोदय हुआ होगा।
- वल्लभीपुर से गुहिलवंशीय राजाओं के साथ ये कलाकार वहाँ से सर्वप्रथम मेवाड़ में आये और उन्होंने अजन्ता परम्परा को प्रधानता देना शुरू किया।
- स्थानीय विशेषताओं से मिलकर यह परम्परा अपना स्वतन्त्र रूप बना सकी, जिसे हम ‘मेवाड़-शैली’ कहते हैं।
- 1260 ई. का ‘श्रावकप्रतिक्रमणसूत्रचूर्णि’ नामक चित्रित ग्रन्थ इसी शैली का प्रथम उदाहरण है।
- यही शैली 1423 ई. की देलवाड़ा में लिखी गयी सुपासनाह चरियम् पुस्तक में दिखायी देती है।
- इस शैली की लड़ी को 1536 ई. का कल्पसूत्र जो सरस्वती भण्डार में सुरक्षित है, पूरा करता है।
- इसके पश्चात् मेवाड़ शैली का उजला रूप हमें सन् 1540 ई. का ‘विल्हण कृत’ ‘चौरपंचाशिका ग्रंथ’ के चित्रों में देखने को मिलता है।
- ‘चम्पावती विल्हण’ नामक चित्र इसका सुन्दर उदाहरण है।
- यह ग्रंथ ‘प्रतापगढ़‘ में चित्रित हुआ है।
- ‘डगलस बैरेट’ एवं ‘बेसिल ग्रे’ ने ‘चौरपंचाशिका शैली’ का उद्गम ‘मेवाड़’ में माना है।
- महाराणा कुंभा का काल (1433-1468 ई.) कलाओं के उत्थान के लिए स्वर्णिम युग माना जाता है।
- इनके समय का पं. भीखमचन्द द्वारा अंकित सचित्र ग्रंथ रसिकाष्टक सं. 1492 का अवश्य मिलता है।
- इस ग्रंथ में विभिन्न ऋतुओं तथा पशु-पक्षियों के छः उत्तम चित्र उपलब्ध हुए हैं जो कुम्भा-कालीन चित्रकला की पुष्टि करते हैं।
- ‘उदयसिंह’ (1535-1572 ई.) के काल में बने चित्रों में भागवत पुराण का परिजात अवतरण (1540 ई.) मेवाड़ के चित्रकार ‘नानाराम’ की कृति है जो अमेरिका के नस्ली हारा मानिक संग्रह में सुरक्षित है।
- राणा उदयसिंह के उत्तराधिकारी ‘महाराणा प्रताप‘ (1572-1596 ई.) ने मुगलों से लोहा लिया और छप्पन की पहाड़ियों में स्थित चावण्ड को अपनी राजधानी बनाया।
- इस काल में मुगल शैली से प्रभावित सचित्र ग्रंथों में प्राचीनतम कृति ‘ढोलामारू’ (1592 ई.) है, जो राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली में सुरक्षित है।
मेवाड़ स्कूल में आने वाली शैलियाँ –
- चावंड शैली,
- उदयपुर शैली,
- नाथद्वारा शैली,
- देवगढ़ उपशैली,
- सावर उपशैली,
- शाहपुरा उपशैली तथा बनेड़ा,
- बागौर, बेगें, केलवा आदि ठिकाणों की कला।
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मेवाड़ शैली के चित्रों की विशेषताएं Rajasthan Chitrakala Ki Mevad Shaili
- प्रकृति :
- मेवाड़ के चित्रकारों ने प्रकृति को आलंकारिक रूप में चित्रित किया है।
- कुंजों, लताओं, वृक्षों और पुष्पों की अधिकता है।
- कुंज अर्धचन्द्राकार मेहराबों की भाँति तथा उन पर छाई पुष्पित लताओं से बनाये गये हैं।
- जल को अपभ्रंश शैली के समान टोकरी बुनने वाले अभिप्रायों से चित्रित किया गया है, जो अलंकरणयुक्त है।
- आम्रवृक्ष, अशोकवृक्ष इत्यादि के अंकन में नैसर्गिकता लाने की चेष्टा की गयी है।
- पुरुषाकृति तथा वस्त्राभूषण:
- पुरुष मानवाकृतियाँ लम्बी, चेहरा गोल व अंडाकार है।
- चिबुक और गर्दन का भाग अधिक भारी तथा पुष्ट बनाया है।
- बड़ी-बड़ी मूंछें और विशाल नेत्र है।
- अधर प्रायः खुले हुए, सिर पर मेवाड़ी-पगड़ी, जिस पर काली कलगी, सरपेच, कानों में मोती, लम्बा जामा, कमर में दुपट्टा, पायजामा और जूतियाँ हैं, जो राजसी वैभव दर्शाती हैं।
- स्त्री आकृति तथा वस्त्राभूषण :
- स्त्रियों की मीनाकृति आँखें, भरी हुई चिबुक, अधर कुछ खुले हुये।
- लहंगा, पारदर्शक लूगड़ी, कमर तक चोली लटकती हुई, कपोलों पर झूलते केश, लम्बी नासिका नथ युक्त, आभूषणों में स्त्रियाँ कर्णफूल, कंगन, बाजूबंद, बोर, पायल पहने हैं।
- हाशिये :
- हाशिये प्राय: लाल रंग के बनाये जाते थे।
- कहीं-कहीं हाशिये सपाट लाल या पीली सादा पट्टियों से निर्मित होते थे।
- भवन :
- भवन को सफेद रंग से चित्रित किया गया है।
- भवनों के शिखर, छज्जे एवं चबूतरे गुम्बदाकार बनाये गये हैं।
- रात्रि दृश्य :
- गहरी नीली या धुएँ के रंग की पृष्ठभूमि में सफेद बिन्दियों को लगाकर चित्रकार ने तारों से पूर्ण रात्रि का दृश्य चित्रित किया है।
- दिन का दृश्य अंकित करने के लिये केवल आकाश का रंग बदल दिया गया है।
- पशु-पक्षी :
- मुगल प्रभाव के कारण हाथी, घोड़ों, हिरण, कुत्तों इत्यादि में यथार्थता एवं भावुकता दर्शायी गई है।
- पक्षियों में चकोर, हंस व मूयर प्रमुख है।
FAQ Rajasthan Chitrakala Ki Mevad Shaili
ANS. हाशिये प्राय: लाल रंग के बनाये जाते थे।
ANS. 1260 ई. का ‘श्रावकप्रतिक्रमणसूत्रचूर्णि’ नामक चित्रित ग्रन्थ मेवाड़ शैली का प्रथम उदाहरण है।
ANS. इस काल में मुगल शैली से प्रभावित सचित्र ग्रंथों में प्राचीनतम कृति ‘ढोलामारू’ (1592 ई.) है, जो राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली में सुरक्षित है।
ANS. स्त्रियों की मीनाकृति आँखें, भरी हुई चिबुक, अधर कुछ खुले हुये।लहंगा, पारदर्शक लूगड़ी, कमर तक चोली लटकती हुई, कपोलों पर झूलते केश, लम्बी नासिका नथ युक्त, आभूषणों में स्त्रियाँ कर्णफूल,कंगन, बाजूबंद, बोर, पायल पहने हैं।
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