राजस्थान चित्रकला की किशनगढ़ शैली | राजस्थान संस्कृति

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राजस्थान चित्रकला की किशनगढ़ शैली | राजस्थान संस्कृति : – Rajasthan Culture की Rajasthan Chitrakala की एक मुख्य Rajasthan Ki Kishangarh Shaili के बारे में इस पोस्ट में पूरी जानकारी दी जा रही है। Kishangarh Shaili के प्रारंभ से लेकर के इसके पूर्ण विकास तक का सारा वर्णन दिया गया है। इसमें इसकी सभी विशेषताओं का भी वर्णन दिया गया है तथा इसके प्रमुख चित्रों और प्रसिध्द चित्रकारों का भी वर्णन किया गया है।


किशनगढ़ शैली

  • उदयसिंह के आठवें पुत्र किशनसिंह ने सन् 1609 ई. में अलग राज्य किशनगढ़ की नींव डाली।
  • यहाँ के राजा वल्लभ सम्प्रदाय में दीक्षित रहे, इसलिए राधा-कृष्ण की लीलाओं का साकार स्वरूप चित्रण के माध्यम से बहुलता से हुआ।
  • राजा रूपसिंह, राजा मानसिंह, राजा राजसिंह के समय (1643-1748 ई.) काव्य और चित्रकला का क्रमिक विकास हुआ।
  • भँवरलाल, सूरध्वज आदि चित्रकारों ने इसे खूब बढ़ाया।
  • किशनगढ़ शैली अपनी धार्मिकता के कारण विश्वप्रसिद्ध हुई।
  • राजसिंह ने चित्रकार निहालचन्द को चित्रशाला प्रबंधक बनाया।
  • राजा सावन्तसिंह (भक्तवर नागरीदास, जन्म- 1699 ई.) के समय में किशनगढ़ की चित्रकला में एक नवीन मोड़ आया।
  • राजा सावन्तसिंह का काल (1748-1764 ई.) किशनगढ़ शैली की दृष्टि से स्वर्णयुग कहा जा सकता है।
  • अपनी विमाता द्वारा दिल्ली के अन्तःपुर से लाई हुई सेविका उसके मन में समा गई।
  • इस सुन्दरी का नाम बणी-ठणी था।
  • नागरीदास जी के काव्य प्रेम, गायन, बणी-ठणी के संगीत प्रेम और कलाकार मोरध्वज निहालचंद के चित्रांकन ने इस समय किशनगढ़ की चित्रकला को सर्वोच्च स्थान पर पहुँचा दिया।
  • नागरीदास की प्रेमिका बणी-ठणी को राधा के रूप में अंकित किया जाता है।
  • किशनगढ़ शैली की वह अलौकिकता धीरे-धीरे विलीन होने लगी और विकृत स्वरूप सामने आने लगा।
  • जो 19वीं शती में पृथ्वीसिंह के समय (1840-1880 ई.) के चित्रों में दिखाई पड़ता है।
  • इसके उपरान्त अपना अमर इतिहास पीछे छोड़कर किशनगढ़ शैली धीरे-धीरे पतनोन्मुख हो गयी।

किशनगढ़ शैली की विशेषताएँ

  • पुरुषाकृति में लम्बा छरहरा नील छवियुक्त शरीर, जटाजूट की भाँति ऊपर उठी हुई मोती की लड़ियों से युक्त श्वेत या मूँगिया पगड़ी, समुन्नत ललाट, लम्बी नासिका, मधुर स्मित से युक्त हिगुली, पतले से अधर और खंजनाकृत कर्णान्त तक खिचे हुए विशाल अरुणाभ नयन किशनगढ़ शैली की अपनी निजी विशेषताएं हैं।
  • सारे मुखमण्डल में नेत्र इतने प्रमुख रहते हैं कि दर्शक की प्रथम दृष्टि वहीं पर मँडराने लगती है।
  • नुकीली चिबुक, लम्बी सुराहीदार गर्दन, आजानुभुजाएं गोल और सुकुमार लम्बी अंगुलियाँ, पतली कमर, पैरों तक झूलता पारदर्शी जामा तथा अलंकारों और फूलों से आवेष्टित सारा शरीर किशनगढ़ शैली में अनोखा है।
  • नारी आकृति में भी प्राय: उपर्युक्त ही नारी सुलभ लावण्य दर्शनीय है।
  • अर्द्ध-विकसित किन्तु उन्नत और खिंचा हुआ वक्षस्थल, लहँगा, कंचुकी और ओढ़नी से लिपटा तथा अलंकारों और फूलों से सुसज्जित शरीर सुकोमल हाथ में एक-दो अर्द्ध-मुकुलित कमल की कलियाँ, राधा के बहाने नायिका के रूप-यौवन को उजागर करते हैं।
  • बेसरि (नाक का आभूषण) अलग ढंग का है।
  • किशनगढ़ शहर तथा रूपनगढ़ का प्राकृतिक परिवेश का शैली में प्रकृति का चित्रण भी शैली में अनोखा हुआ है।
  • प्रकृति के विस्तृत प्रांगण को चित्रित करने का श्रेय किशनगढ़ शैली को ही है।
  • यही चित्रण बूँदी शैली में सीमित क्षेत्र में हुआ है।
  • चाँदनी रात में राधाकृष्ण को केलि-क्रीड़ाएं, प्रातःकालीन और सांध्यकालीन बादलों का सिन्दूरी चित्रण शैली में विशेष हुआ है।
  • किशनगढ़ शैली के चित्रों में कई जगह ताम्बूल सेवन का वर्णन मिलता है।
  • राधाकृष्ण के सुकोमल भावों को चित्रित करने के लिए यहां के कलाकारों ने अधिकतर हल्के रंगों का प्रयोग किया है।
  • यहां के प्रमुख रंग सफेद, गुलाबी, सलेटी और सिंदूरी हैं।
  • हाशिए में गुलाबी और हरे रंगों का बाहुल्य किशनगढ़ शैली की अपनी देन है।

किशनगढ़ शैली के प्रमुख चित्र और चित्रकार ( Rajasthan Ki Kishangarh Shaili )

  • प्रमुख चित्र-
    • बणीठणी अर्थात् राधा के रूप-सौन्दर्य का चित्रांकन शैली का विशेष आकर्षण रहा है।
    • आश्चर्य की बात है कि राग-रागिनियों का चित्रण किशनगढ़ शैली में अनुपलब्ध है।
    • इस शैली का प्रसिद्ध चित्र बणी-ठणी ही है जिसे एरिक डिकिन्सन ने भारत की ‘मोनालिसा’ कहा है।
    • भारत सरकार ने 1973 ई. में बणी-ठणी पर डाक टिकट जारी किया।
    • किशनगढ़ शैली को प्रकाश में लाने का श्रेय ‘एरिक डिकिन्सन’ तथा ‘डॉ. फैयाज अली’ को है।
    • किशनगढ़ शैली के अन्य प्रमुख चित्र हैं-
      • दीपावली, सांझी लीला, नौका विहार (दा बोट ऑफ लव), राधा/बणीठणी (1760 ई.), गोवधर्न धारण (1755 ई.), इनके चित्रकार निहालचंद थे।
      • लाल बजरा (1735-1757 ई.). राजा सावंत सिंह की पूजा और बणीठणी (1740 ई.), ताम्बूल सेवा (1780 ई.) दा डिवाईन कपल (1780 ई.) भी उल्लेखनीय चित्र है।
  • प्रसिध्द चित्रकार
    • किशनगढ़ शैली के चित्रकारों में ‘अमीरचन्द‘, ‘धन्ना‘, ‘भंवरलाल‘, ‘छोटू‘, ‘सूरतराम‘, ‘सूरध्वज‘, ‘मोरध्वज निहालचन्द‘, ‘नानकराम‘, ‘सीताराम‘, ‘बदनसिंह‘, ‘अमरू‘, ‘सूरजमल‘, ‘रामनाथ,’ ‘जोश‘, ‘सवाईराम‘, ‘तुलसीदास‘, ‘लालडी दास‘ के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं।

FAQ ( Rajasthan Ki Kishangarh Shaili )

1. बणी-ठणी क्या है ?

ANS. यह एक सुन्दर सेविका थी जो की सांवत सिंह की विमाता के साथ दिल्ली से आई थी। ये सेविका सांवत सिंह के मन को भा गयी और जल्द ही वो इसकी पासवान बन गयी। बाद में किशनगढ़ चित्रशाला के प्रबंधक निहालचंद ने इसका चित्र बनाया, जो बणी-ठणी के नाम से बहुत प्रसिध्द्द हुआ।

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2. किशनगढ़ शैली को प्रकाश में लाने का श्रेय किसको जाता है ?

ANS. किशनगढ़ शैली को प्रकाश में लाने का श्रेय ‘एरिक डिकिन्सन’ तथा ‘डॉ. फैयाज अली’ को है।

3. प्रसिद्ध चित्र बणी-ठणी को भारत की मोनालिसा किसने कहा ?

ANS. एरिक डिकिन्सन ने भारत की ‘मोनालिसा’ कहा है, बणी-ठणी को।

4. किशनगढ़ शैली में मुख्यतया किस-किस रंग का प्रयोग किया गया है ?

ANS. इस शैली के प्रमुख रंग सफेद, गुलाबी, सलेटी और सिंदूरी हैं। हाशिए में गुलाबी और हरे रंगों का बाहुल्य किशनगढ़ शैली की अपनी देन

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