राजस्थान चित्रकला का मारवाड़ स्कूल और बीकानेर शैली | राजस्थान संस्कृति : – Rajasthan Culture की Rajasthan Chitrakala के अध्याय Marwar School Or Bikaner Shaili के बारे में विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। इसमें Marwar School के ग्रंथों का वर्णन, चित्रित ग्रंथो तथा प्रमुख चित्रकारों का वर्णन किया गया है। Bikaner Shaili का भी उसके प्रारम्भ से लेकर चरम काल तक वर्णन किया गया है तथा इसके प्रमुख चित्रकारों का और प्रसिध्द चित्रों का भी वर्णन किया गया है।
मारवाड़ स्कूल
- मारवाड़ क्षेत्र की चित्रकला का वैभव मूलतः जोधपुर की दरबारी शैली के रूप में देखा जा सकता है।
- इसके अतिरिक्त जैसलमेर, नागौर एवं अजमेर के कुछ भागों में भी इसका व्यापक प्रभाव परिलक्षित होता है।
- मारवाड़ के आरम्भिक चित्रों में अजन्ता की चित्र परम्परा का निर्वाह मण्डौर द्वार के कलावशेषों में मूल्यांकित किया जा सकता है।
- तिब्बती इतिहासकार लामा तारानाथ ने सातवीं सदी में मारु देश में चित्रकार शृंगधर का उल्लेख किया है जिसने पश्चिमी भारत में यक्ष शैली को जन्म दिया।
- लामा तारानाथ ने लिखा है कि इसके द्वारा स्थापित शैली के शास्त्रीय आधार अजन्ता से भिन्न थे तथा अंग-प्रत्यंगों के लावण्यपूर्ण मोड़ तथा आंख, नाक, कान आदि के नुकीले रूपों का विशेष रूप से नवीनीकरण हुआ।
- इसके प्रारम्भिक चित्रावशेष हमें प्रतिहारकालीन ‘ओघ निर्युक्ति वृत्ति 1060 ई. में मिलते हैं।
- पश्चिमी राजस्थान की चित्रकला का तत्कालीन क्रमिक विकास निम्न सचित्र ग्रंथों से दिखाई देता है –
- ओघनिर्युक्ति, 1060 ई.
- दशवैकालिक सूत्र, 1060 ई.
- ज्ञात सूत्र, 1130 ई.
- पंचाशिका प्रकरणवृत्ति, पाली, 1150 ई.
- उपदेश माला प्रकरणवृत्ति, अजमेर, 1156 ई.
- दव्याश्रण्य महाकाव्य जालौर, 1255 ई.
- पाण्डव चरित्र नागौर, 1468 ई.
- कल्पसूत्र भीनमाल, 1507 ई.
- कल्पसूत्र नागौर, 1551 ई.
- कालकाचार्य सूत्रकथा, नागौर, 1552 ई.
- यहां मारवाड़ी साहित्य के प्रेमाख्यान पर आधारित चित्रण अधिक हुआ है।
- इसके पश्चात् जिन प्रारम्भिक चित्रों में मारवाड़ की स्पष्ट छवि उजागर हुई उनमें भागवत, ढोलामारू रा दूहा, वेलिक्रिसन रूक्मिणी री, वीरमदे सोनगरा री बात, चन्द्रकुंवर री बात, मृगावती रास, फूलमती रो वार्ता, हंसराज बच्छराज चौपाई आदि साहित्यिक कृतियों के चरित्र मारवाड़ चित्रकला के आधार रहे हैं।
- उपदेशमालावृति एवं रसिकप्रिया प्रमुख रहे।
- इनमें मूलत: स्थानीय लोक शैली का प्रभाव स्पष्ट नजर आता है।
( Marwar School Or Bikaner Shaili ) बीकानेर शैली
- बीकानेर शैली का प्रादुर्भाव 16वीं शती के अन्त में माना जाता है।
- राव रायसिंह के समय चित्रित ‘भागवत पुराण’ प्रारंभिक चित्र माना जाता है।
- बीकानेर नेरश ‘रायसिंह’ (1574-1612 ई.) मुगल कलाकारों की दक्षता से प्रभावित होकर वे उनमें से कुछ को अपने साथ ले आये।
- इनमें ‘उस्ता अली रजा’ व ‘उस्ता हामिद रुकनुद्दीन’ थे।
- इन्हीं दोनों कलाकारों की कलाकृतियों से चित्रकारिता की बीकानेर शैली का उद्भव हुआ।
- बीकानेर के प्रारम्भिक चित्रों में जैन स्कूल का प्रभाव जैन पति मथेरणों के कारण रहा।
- मथेरण परिवार पारम्परिक जैन मिश्रित राजस्थानी शैली के चित्र बनाने में सिद्धहस्त था तथा मुगलदरबार से उस्ता परिवार मुगल शैली में कुशल था।
- महाराजा अनूपसिंह के समय में उस्ता परिवार ने हिन्दू कथाओं, संस्कृत, हिन्दी, राजस्थानी काव्यों को आधार बनाकर सैकड़ों चित्र बनाये।
- इस समय यह शैली चरमोत्कर्ष पर पहुँच गई।
- बीकानेर शैली के चित्रों में कलाकार का नाम उसके पिता का नाम और संवत् उपलब्ध होता है।
- 18वीं सदी में ठेठ राजस्थानी शैली में चित्र बने उनकी रंगत ही अलग है।
- ऊँची मारवाड़ी पगड़ियां, ऊँट, हरिन, बीकानेरी रहन-सहन और राजपूती संस्कृति की छाप प्रमुखतया देखने को मिलती है।
- भागवत कथा आदि पर भी चित्र बने हैं।
- महाराजा अनुपसिंह के काल में विशुद्ध बीकानेर शैली के दिग्दर्शन होते हैं।
बीकानेर शैली के प्रमुख चित्रकार
- मथेरण परिवार के चितारों ने अपनी परम्परा को कायम रखा।
- उन्होंने जैन-ग्रंथों की अनुकृति, धर्मग्रंथों का लेखन एवं तीज-त्यौहारों पर राजाओं के व्यक्ति-चित्र बनाकर उन्हें भेंट किये।
- मुन्नालाल, मुकुन्द (1668), रामकिशन (1170), जयकिशन मथेरण, चन्दूलाल (1678), शिवराम (1788), जोशी मेघराज (1797) आदि चित्रकारों के नाम एवं संवत् अंकित चित्र आज भी देखने को मिलते हैं।
- इस समय के चित्रकारों में उस्ता परिवार के उस्ता कायम, कासिम, अबुहमीद, शाह मोहम्मद, अहमद अली, शाहबदीन, जीवन आदि प्रमुख हैं, जिन्होंने रसिकप्रिया, बारहमासा, रागरागिनी, कृष्ण लीला, शिकार, महफिल तथा सामन्ती वैभव का चित्रण किया।
बीकानेर शैली की विशेषताएं
- बीकानेर राज्य का मुगल दरबार से गहन सम्बन्ध होने के कारण मुगल शैली की सभी विशेषताएं बीकानेर की प्रारंभिक चित्रकला में द्रष्टव्य हैं।
- किन्तु इकहरी तन्वंगी मृगनैनी कोमल ललनाओं का अंकन नीले-हरे और लाल रंगों का प्रयोग, शाहजहाँ और औरंगजेब शैली की पगड़ियों के साथ ही ऊँची मारवाड़ी पगड़ियाँ, ऊँट, हिरण तथा बीकानेरी रहन-सहन और राजपूती संस्कृति की छाप हमें उसे अलग शैली मानने को प्रेरित करती है।
- बीकानेर के राजा अधिकतर दक्षिणी मोचों पर मुगलों के गवर्नर रहे, अत: दक्षिणी शैली का प्रभाव बीकानेर शैली पर सर्वाधिक है।
- बीकानेर शैली में रेखाओं की गत्यात्मकता, कोमलांकन तथा बारीक रेखांकन विशेष हुआ है।
- चटक रंगों के स्थान पर कोमल रंगों का प्रयोग हुआ है।
- लाल, बैंगनी, जामुनी, सलेटी, बादामी रंगों का प्रयोग शैली की विशेषता रही है।
- मोतियों के आभूषण बीकानेर शैली में अत्यधिक अंकित किये गये हैं।
- पहनावे में मुगल एवं राजपूती सम्मिश्रण है।
- 18वीं शती के बाद की शैली में झालरदार बादलों का अंकन, चन्द्रमहल, लालनिवास, सरदार महल आदि के भित्ति चित्रों में विशेष दर्शनीय हैं।
- बालू के टीलों का अंकन चीनी और ईरानी कला से प्रभावित मेघ-मण्डल, पहाड़ों और फूल-पत्तियों का आलेखन उल्लेखनीय है।
- इस शैली में आकाश को सुनहरे छल्लों से युक्त मेघाच्छादित दिखाया गया है।
- बरसते बादलों में से सारस-मिथुनों की नयनाभिराम आकृतियाँ भी इसी शैली की विशेषता है।
- यहाँ फव्वारों, दरबार के दिखाओं आदि में दक्षिण शैली का प्रभाव दिखाई देता है।
FAQ Marwar School Or Bikaner Shaili
ANS. ये चित्रकार मथैरण परिवार और उस्ता परिवार से सम्बन्धित थे।
ANS. ‘उस्ता अली रजा’ व ‘उस्ता हामिद रुकनुद्दीन’ दोनों कलाकारों की कलाकृतियों से चित्रकारिता की बीकानेर शैली का उद्भव हुआ।
ANS. ओघनिर्युक्ति, 1060 ई.
दशवैकालिक सूत्र, 1060 ई.
ज्ञात सूत्र, 1130 ई.
पंचाशिका प्रकरणवृत्ति, पाली, 1150 ई.
उपदेश माला प्रकरणवृत्ति, अजमेर, 1156 ई.
दव्याश्रण्य महाकाव्य जालौर, 1255 ई.
पाण्डव चरित्र नागौर, 1468 ई.
कल्पसूत्र भीनमाल, 1507 ई.
कल्पसूत्र नागौर, 1551 ई.
कालकाचार्य सूत्रकथा, नागौर, 1552 ई.
ANS. तिब्बती इतिहासकार लामा तारानाथ ने सातवीं सदी में मारु देश में चित्रकार शृंगधर का उल्लेख किया है जिसने पश्चिमी भारत में यक्ष शैली को जन्म दिया।
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