Rajasthan History : राठौड़ वंश के शासक | Rathoud Vansh Ke Shasak – इस भाग में Rathoud Vansh Ke Shasak जो राव मालदेव के बाद हुए, उनका विस्तारित वर्णन मिलेगा, जैसे- मोटाराजा उदयसिंह, अजित सिंह, दुर्गादास आदि |
मोटाराजा उदयसिंह (1583-1595) –
- राव चन्द्रसेन के बड़े भ्राता उदयसिंह नागौर दरबार में अकबर की सेवा में आ चुके थे।
- इनकी वीरता व सेवा से प्रसन्न हो अकबर ने उन्हें 4 अगस्त, 1583 को जोधपुर का शासक बना दिया।
- राव उदयसिंह जोधपुर के प्रथम शासक थे जिन्होंने मुगल अधीनता स्वीकार की।
- अपनी पुत्री मानीबाई का विवाह शाहजादा सलीम से कर मुगलों से वैवाहिक संबंध स्थापित किये।
- राव उदयसिंह ने अकबर को अनेक युद्धों में विजय दिलवाई और अन्ततः 1595 में लाहौर में इनका स्वर्गवास हुआ।
- मोटा राजा उदयसिंह ने मालदेव के समय प्रारंभ हुई सतत युद्ध की स्थिति को समाप्त कर।
- जोधपुर रियासत को सुख-शांति से जीने का अवसर उपलब्ध कराया।
शूरसिंह ( Rathoud Vansh Ke Shasak ) –
- राव उदयसिंह के पुत्र शूरसिंह जी सन् 1595 में जोधपुर के सिंहासन पर आसीन बादशाह।
- अकबर ने शूरसिंह जी की वीरता से प्रसन्न हो 1604 ई. में इन्हें ‘सवाई राजा’ की उपाधि से सम्मानित किया।
- शहजादा खुर्रम के मेवाड़ अभियान में शूरसिंह जी ने उसका पूरा साथ दिया था।
- शूरसिंह जी बड़े प्रतापी व बुद्धिमान राजा थे।
- राव मालदेव के बाद इन्होंने ही मारवाड़ राज्य की वास्तविक उन्नति की।
- शूरसिंह के बाद उनके पुत्र राव गजसिंह 1619 ई. में 8 अक्टूबर को जोधपुर की गद्दी पर विराजमान हुए।
- इनकी वीरता से प्रसन्न हो सम्राट जहाँगीर ने इन्हें दलथंभन की उपाधि दी एवं इनके घोड़ों को शाही दाग से मुक्त कर दिया।
- सन् 1638 में आगरे में इनका देहान्त हो गया।
- वहीं यमुना किनारे इनकी अन्त्येष्टि की गई।
महाराजा जसवंतसिंह (प्रथम) –
- महाराजा गजसिंह के बाद उनके प्रिय पुत्र जसवंतसिंह जोधपुर के शासक बने।
- आगरा में इनका राजतिलक किया गया।
- शाहजहाँ ने इन्हें ‘महाराजा‘ की उपाधि देकर सम्मानित किया।
- 1656 ई. में शाहजहाँ के बीमार हो जाने पर उसके चारों पुत्रों में उत्तराधिकार का संघर्ष हुआ।
- महाराजा जसवंतसिंह ने शाहजहाँ के बड़े पुत्र दाराशिकोह का साथ दिया और औरंगजेब को हराने के लिए उज्जैन की तरफ सेना लेकर गए।
- महाराजा जसवंतसिंह को बाद में औरंगजेब ने शिवाजी के विरुद्ध दक्षिण में भेजा।
- इन्होंने शिवाजी को मुगलों से संधि करने हेतु राजी किया।
- शिवाजी के पुत्र शम्भाजी को शाहजादा मुअज्जम के पास लाये और दोनों के मध्य शांति संधि करवाई।
- इन्होंने औरंगाबाद के निकट जसवंतपुरा नामक कस्बा बसाया था।
- 28 नवम्बर, सन् 1678 में महाराजा का जमरूद (अफगानिस्तान) में देहान्त हो गया।
- महाराजा जसवंतसिंह की मृत्यु के समय इनकी रानी गर्भवती थी
- जीवित उत्तराधिकारी के अभाव में औरंगजेब ने जोधपुर राज्य को मुगल साम्राज्य में मिला लिया।
- जसवंतसिंह की मृत्यु पर औरंगजेब ने कहा था कि “आज कुफ्र (धर्म विरोध) का दरवाजा टूट गया है।”
मुहणोत नैणसी –
- इनके मंत्री मुहणोत नैणसी ने ‘नैणसी री ख्यात‘ एवं ‘मारवाड़ रा परगना री विगत’ नामक दो महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक ग्रंथ लिखे।
- परंतु अंतिम दिनों में महाराजा से अनबन हो जाने के कारण नैणसी को कैदखाने में डाल दिया गया।
- जहाँ मुहणोत नैणसी ने आत्महत्या कर ली।
धरमत का युद्ध ( Rathoud Vansh Ke Shasak ) –
- शाहजादे औरंगजेब एवं दाराशिकोह के मध्य उत्तराधिकार युद्ध।
- जो उज्जैन (मध्यप्रदेश) के पास धरमत में लड़ा गया।
- शाही फौज को औरंगजेब ने हरा दिया।
- मारवाड़ शासक महाराजा जसवंतसिंह प्रथम ने युद्ध में दाराशिकोह की शाही सेना का नेतृत्व किया था।
दौराई का युद्ध –
- 11 मार्च से 15 मार्च, 1659 तक अजमेर के निकट दौराई स्थान पर पुन: दाराशिकोह एवं बादशाह औरंगजेब की सेना के मध्य युद्ध हुआ।
- इस युद्ध में दाराशिकोह बुरी तरह हारा।
महाराजा अजीत सिंह –
- महाराजा जसवंत सिंह की गर्भवती रानी ने राजकुमार अजीतसिंह को 19 फरवरी, 1679 को लाहौर में जन्म दिया।
- जोधपुर के राठौड़ सरदार वीर दुर्गादास एवं अन्य सरदारों ने मिलकर ओरंगजेब से राजकुमार अजीतसिंह को जोधपुर का शासक घोषित करने की माँग की।
- औरंगजेगब ने इसे टाल दिया एवं कहा कि राजकुमार के बड़ा होने पर उन्हें राजा बना दिया जायेगा।
- इसके बाद औरंगजेब ने राजकुमार एवं रानियों को परवरिश हेतु दिल्ली अपने पास बुला लिया।
- इन्हें वहाँ रूपसिंह राठौड़ की हवेली में रखा गया।
- औरंगजेब राजकुमार को समाप्त कर जोधपुर राज्य को हमेशा के लिए हड़पना चाहता था।
वीर दुर्गादास और महाराजा अजीत सिंह –
- वीर दुर्गादास औरंगजेब की चालाकी को समझ गये।
- दुर्गादास अन्य सरदारों के साथ मिलकर चालाकी से राजकुमार अजीतसिंह एवं रानियों को औरंगजेब के चंगुल से बाहर निकाल लाये।
- ‘बाघेली‘ नामक महिला ने इनकी मदद की।
- गुप्त रूप से सिरोही के कालिन्दी स्थान पर जयदेव नामक ब्राह्मण के घर पर उनकी परवरिश की।
- दिल्ली में एक अन्य बालक को नकली अजीत सिंह के रूप में रखा।
- बादशाह औरंगजेब ने बालक को असली अजीतसिंह समझते हुए उस हुए उसका नाम ‘मोहम्मदीराज’ रखा।
- मारवाड़ में भी अजीतसिंह को सुरक्षित न देखकर वीर राठौड़ दुर्गादास ने मेवाड़ में शरण ली।
- मेवाड़ महाराणा राजसिंह ने अजीतसिंह के निर्वाह के लिए दुर्गादास को केलवा की जागीर-प्रदान की।
देबारी समझौता –
- राजकुमार अजीत सिंह, कच्छवाहा राजा सवाई जयसिंह व मेवाड़ महाराणा अमरसिंह द्वितीय के मध्य देबारी नामक स्थान पर हुआ समझौता।
- जिसके अनुसार अजीतसिंह को मारवाड़ में, सवाई जयसिंह को आमेर में पदस्थापित करने।
- महाराणा अमरसिंह द्वितीय की पुत्री का विवाह सवाई जयसिंह से करने।
- इस विवाह से उत्पन्न पुत्र को सवाई जयसिंह का उत्तराधिकारी घोषित करने पर सहमति हुई।
औरंगजेब की मृत्यु –
- औरंगजेब की मृत्यु के बाद महाराजा अजीतसिंह ने वीर दुर्गादास व अन्य सैनिकों की मदद से जोधपुर पर अधिकार कर लिया।
- 12 मार्च, 1707 को उन्होंने अपने पैतृक शहर जोधपुर में प्रवेश किया।
- गलत लोगों के बहकावे में आकर महाराजा अजीतसिंह ने वीर दुर्गादास जैसे स्वामीभक्त वीर को अपने राज्य से निर्वासित कर दिया ।
- जहाँ से वीर दुर्गादास दुःखी मन से मेवाड़ की सेवा में चले गये।
- महाराजा अजीतसिंह ने मुगल बादशाह फर्रुखशियर के साथ संधि कर ली ।
- अपनी लड़की इन्द्र कुँवरी का विवाह बादशाह से कर दिया।
- 23 जून, 1724 को महाराजा अजीतसिंह की इनके छोटे पुत्र बख्तसिंह ने सोते हुए में हत्या कर दी।
वीर दुर्गादास राठौड़
- जन्म 13 अगस्त, 1638 को महाराजा जसवंतसिंह प्रथम के मंत्री आसकरण के यहाँ मारवाड़ के सालवा गाँव में हुआ।
- महाराजा जसंवतसिंह के देहान्त के बाद राजकुमार अजीतसिंह की रक्षा व उन्हें जोधपुर का राज्य पुनः दिलाने में वीर दुर्गादास का योगदान रहा।
- अनेक कष्ट सहते हुए भी कुँवर अजीतसिंह की परवरिश की एवं अंत में उन्हें जोधपुर का शासन दिलवाया।
- राजस्थान के इतिहास में मेवाड़ की पन्नाधाय के पश्चात् दुर्गादास दूसरे व्यक्ति हैं जिनकी स्वामिभक्ति अनुकरणीय है।
- उन्होंने जीवन भर अपने स्वामी मारवाड़ के महाराजाओं की सेवा की।
- ऐसे साहसी, वीर और कूटनीतिज्ञ के कारण ही मारवाड़ का राज्य स्थाई रूप से मुगल साम्राज्य का अंग नहीं बन सका।
- वीर दुर्गादास की मृत्यु उज्जैन में 22 नवम्बर, 1718 को हुई।
- यहाँ शिप्रा नदी के तट पर इनकी छतरी बनी हुई है।
- दुर्गादास के लिए कहा जाता है कि– ‘मायड एडो पूत जण, जडो दुर्गादास।’
महाराजा मानसिंह –
- 1803 में उत्तराधिकार युद्ध के बाद मानसिंह जोधपुर सिंहासन पर बैठे।
- जब मानसिंह जालौर में मारवाड़ की सेना से घिरे हुए थे।
- तब गोरखनाथ सम्प्रदाय के गुरु आयस देवनाथ ने भविष्यवाणी की, कि मानसिंह शीघ्र ही जोधपुर के राजा बनेंगे।
- अतः राजा बनते ही मानसिंह ने देवनाथ को जोधपुर बुलाकर अपना गुरु बनाया।
- वहाँ नाथ सम्प्रदाय के ‘महामंदिर’ का निर्माण करवाया।
- सन् 1817 में मानसिंह को शासन का कार्यभार अपने पुत्र छत्रसिंह को सौंपना पड़ा।
- परंतु छत्रसिंह की जल्दी ही मृत्यु हो गई।
- सन् 1818 में 16 जनवरी को मारवाड़ ने अंग्रेजों से संधि कर मारवाड़ की सुरक्षा का भार ईस्ट इंडिया कम्पनी को सौंप दिया।
गिंगोली का युद्ध –
- मेवाड़ महाराजा भीमसिंह की राजकुमारी कृष्णा कुमारी के विवाह के विवाद में।
- जयपुर राज्य की महाराजा जगतसिंह की सेना, पिंडारियों व अन्य सेनाओं ने संयुक्त रूप से।
- जोधपुर पर मार्च 1807 में आक्रमण कर दिया तथा अधिकांश हिस्से पर कब्जा कर लिया।
- परंतु शीघ्र ही मानसिंह ने पुन: सभी इलाकों पर अपना कब्जा कर लिया।
FAQ :
ANS. राव उदयसिंह जोधपुर के प्रथम शासक थे जिन्होंने मुगल अधीनता स्वीकार की।
ANS. अकबर ने शूरसिंह जी की वीरता से प्रसन्न हो 1604 ई. में इन्हें ‘सवाई राजा’ की उपाधि से सम्मानित किया। इनकी वीरता से प्रसन्न हो सम्राट जहाँगीर ने इन्हें दलथंभन की उपाधि दी एवं इनके घोड़ों को शाही दाग से मुक्त कर दिया।
ANS. जसवंतसिंह की मृत्यु पर औरंगजेब ने कहा था कि “आज कुफ्र (धर्म विरोध) का दरवाजा टूट गया है।”
ANS. धरमत का युद्ध शाहजादे औरंगजेब एवं दाराशिकोह के मध्य उत्तराधिकार युद्ध था |
ANS. 11 मार्च से 15 मार्च, 1659 तक अजमेर के निकट दौराई स्थान पर पुन: दाराशिकोह एवं बादशाह औरंगजेब की सेना के मध्य युद्ध हुआ। इस युद्ध में दाराशिकोह बुरी तरह हारा।
ANS. ‘बाघेली’ नामक महिला ने दुर्गादास की मदद की।
ANS. महाराजा अजीत सिंह को उनका राज्य दिलवाने के लिए दुर्गादास ने उनकी मदद की थी।
ANS. दुर्गादास के लिए कहा जाता है कि- ‘मायड एडो पूत जण, जडो दुर्गादास।’
ANS. गोरखनाथ सम्प्रदाय के गुरु आयस देवनाथ ने भविष्यवाणी की, कि मानसिंह शीघ्र ही जोधपुर के राजा बनेंगे।
ANS. सन् 1818 में 16 जनवरी को मारवाड़ के मानसिंह ( छत्रसिंह ) अंग्रेजों से संधि कर मारवाड़ की सुरक्षा का भार ईस्ट इंडिया कम्पनी को सौंप दिया।
ANS. राजकुमार अजीत सिंह, कच्छवाहा राजा सवाई जयसिंह व मेवाड़ महाराणा अमरसिंह द्वितीय के मध्य देबारी नामक स्थान पर हुआ समझौता।