Rajasthan History : Rav Chandrasen | राव चंद्रसेन – इस POST में आपको राव चंद्रसेन के जीवन के सम्पूर्ण संघर्ष, मुग़ल विरोध आदि की विस्तारित जानकारी मिलेगी |
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राव चंद्रसेन ( Rav Chandrasen ) –
- राव चन्द्रसेन मारवाड़ नरेश राव मालदेव के छठे पुत्र थे।
- इनका जन्म 16 जुलाई, 1541 को हुआ।
- राव मालदेव के देहान्त के बाद उन्हीं की इच्छानुसार उनका कनिष्ठ पुत्र राव चन्द्रसेन 1562 में जोधपुर की गद्दी पर बैठा।
- चंद्रसेन के तीनों बड़े भाइयों में सबसे बड़े भाई रामसिंह अपनी जागीर गूंदोच में, दूसरे रायमल्ल सिवाना में और तीसरे उदयसिंह फलौदी में थे।
- सन् 1563 में राव चन्द्रसेन ने अपने भाई रामसिंह पर चढ़ाई की।
- राम अपनी विजय की आशा न देखकर नागौर के शाही हाकिम हुसैन कुली बेग के पास चला गया सहायता माँगी।
- राव चंद्रसेन व उनके भाइयों की कलह का लाभ मुगल बादशाह अकबर ने उठाया।
- अकबर ने नागौर में अपने हाकिम हुसैनकुली बेग को राव चंद्रसेन पर चढ़ाई कर जोधपुर का किला छीनने का आदेश दिया।
- युद्ध के दौरान राव चन्द्रसेन परिवार सहित भाद्राजण की तरफ चले गए।
- 1564 ई. में जोधपुर किले पर मुगल सेना का अधिकार हो गया।
नागौर दरबार –
- नवम्बर, 1570 ई. में अकबर अजमेर से नागौर पहुँचा और वहाँ कुछ समय तक अपना दरबार लगाया।
- राजस्थान के कई राजपूत राजा उसकी सेवा में वहाँ उपस्थित हुए और अकबर की अधीनता स्वीकार की।
- जिनमें जैसलमेर नरेश रावल हरराय जी, बीकानेर नरेश राव कल्याण मल जी व उनके पुत्र रायसिंह जी तथा राव चन्द्रसेन के बड़े भाई उदयसिंह जी प्रमुख थे।
- राव चन्द्रसेन जी भी भाद्राजूण से नागौर दरबार में आये थे।
- अन्य राजाओं की तरह उन्होंने अकबर की गुलामी स्वीकार नहीं की एवं चुपचाप वहाँ से भाद्राजूण चले गये।
- चंद्रसेन को अपने अधीन करने के लिये अकबर ने सन् 1574 ई.में जलाल खाँ व 1576-77 में शाहबाज खाँ के नेतृत्व में अपनी सेनाएँ भाद्राजूण भेजी।
- भाद्राजूण पर अकबर की सेना का अधिकार हो गया और राव चन्द्रसेन वहाँ से सिवाणा की तरफ निकल गये।
- इस प्रकार ‘नागौर दरबार’ मारवाड़ की परतंत्रता की कड़ी में महत्त्वपूर्ण कड़ी साबित हुआ।
- अकबर ने इस दरबार. के बाद जोधपुर का शासन बीकानेर के राजकुमार रायसिंह को संभला दिया।
नागौर दरबार के बाद का संघर्ष –
- अकबर ने 30 अक्टूबर, 1572 ई. में बीकानेर के शासक कल्याणमल के पुत्र कुँवर रायसिंह को जोधपुर का सूबेदार नियुक्त किया।
- सिवाणा पर भी एक मजबूत सेना भेज दी।
- इसमें शाहकुली खाँ आदि मुसलमान सेनानायकों के साथ ही बीकानेर के राव रायसिंह जी, केशवदास मेड़तिया (जयमल का पुत्र), जगतराय आदि हिन्दू नरेश और सामंत थे।
- बादशाह की बड़ी इच्छा थी कि किसी तरह राव चन्द्रसेन शाही अधीनता स्वीकार कर ले।
- सेना सोजत की तरफ गई और वहाँ पर इसने चन्द्रसेनजी के भतीजे कल्ला को हराया इसके बाद शाही सेना ने सिवाणा की तरफ मुख किया।
- राव चन्द्रसेन अपने सेनापति राठौड़ पत्ता को किले की रक्षा का भार सौंपकर पीपलोद व काणूजा पहाड़ियों की तरफ निकल गए।
- शाही सेना असफल रही।
- इसके बाद चन्द्रसेन जी को दबाने के लिए 1574 ई. में जलाल खाँ को सिवाना भेजा गया, लेकिन चंद्रसेन के हाथों वह मारा गया। ( Rav Chandrasen )
- 1576-77 में शाहबाज खाँ के नेतृत्व में शाही सेना भेजी गई लेकिन चन्द्रसेन को पकड़ने में वह भी असफल रही।
- चन्द्रसेन ने अंत में सारण के पर्वतों (सोजत) में अपना निवास कायम किया।
- यहीं पर सचियाप में 11 जनवरी 1581 को इनका अचानक स्वर्गवास हो गया।
- सारण में जिस स्थान पर इनकी दाह क्रिया की गई थी उस जगह इनकी संगमरमर की एक राव चन्द्रसेन की घोड़े पर सवार प्रतिमा अब तक विद्यमान है और उसके आगे 5 स्त्रियाँ खड़ी है।
- इससे प्रकट होता है कि उनके पीछे 5 सतियाँ हुई थी।
- राव चन्द्रसेनजी ही राजस्थान के प्रथम मनस्वी वीर और स्वतंत्र प्रकृति के नरेश थे।
- महाराणा प्रताप ने इन्हीं के दिखलाए मार्ग का अनुसरण किया था।
- राजपूताने में महाराणा प्रताप और राव चन्द्रसेन यही दो स्वाभिमानी वीर अकबर की आंखों के कांटे बने थे।
- राव चंद्रसेन ने सिवाना की पहाड़ियों का आश्रय लेकर मुगल सेना से टक्कर ली।
- चन्द्रसेन अंतिम राठौड़ शासक था जिसने अकबर की अधीनता को नकारते हुए कष्टों के मार्ग को अपनाया था।
- इनकी मृत्यु के साथ ही राठौड़ों की स्वाधीनता का स्वप्न भी समाप्त हो गया।
राव चंद्रसेन के अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य –
- पहला राजस्थानी शासक था जिसने मुगल विरोधी अभियान को पूरी गम्भीरता से प्रारम्भ किया था।
- परिस्थितिजन्य अभावों में भी मुगलों की शक्ति से संघर्ष करते हुए उनकी जीवनलीला समाप्त हुई।
- मुगलों का प्रतिरोध करने में राजपूत शासकों का आदर्श कहे जा सकते हैं।
- चन्द्रसेन की मुगल विरोधी कार्यवाहिये के कारण चन्द्रसेन को मेवाड़ के राणा प्रताप का पथ प्रदर्शक कहा जाता है।
- राव चन्द्रसेन ऐसे प्रथम राजपूत शासक थे जिन्होंने रणनीति में दुर्ग के स्थान पर जंगल और पहाड़ी क्षेत्र को अधिक महत्त्व दिया था।
- खुले युद्ध के स्थान पर छापामार युद्ध प्रणाली का महत्त्व स्थापित करने में राणा उदयसिंह के बाद वे दूसरे शासक थे।
- इसी प्रणाली का अनुसरण प्रताप ने किया था।
FAQ :
1. राव चंद्रसेन का जन्म कब हुआ था ?
ANS. इनका जन्म 16 जुलाई, 1541 को हुआ।
2. महाराणा प्रताप का पथ प्रदर्शक किसे कहते है ?
ANS. चन्द्रसेन की मुगल विरोधी कार्यवाहिये के कारण चन्द्रसेन को मेवाड़ के राणा प्रताप का पथ प्रदर्शक कहा जाता है।
3. अकबर ने नागौर दरबार कब लगाया था ?
ANS. नवम्बर, 1570 ई. में अकबर अजमेर से नागौर पहुँचा और वहाँ कुछ समय तक अपना दरबार लगाया।
4. मारवाड़ का प्रताप कौन था ?
ANS. मारवाड़ का प्रताप राव चन्द्रसेन को कहा जाता है।
5. चंद्रसेन की मृत्यु कब हुई थी ?
ANS. सचियाप में 11 जनवरी 1581 को इनका अचानक स्वर्गवास हो गया।
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