Rajasthan History : Bharatpur Ka Itihaas | भरतपुर का इतिहास – इस भाग में आपको Bharatpur Ka Itihaas के बारे में, जाट शक्ति के उदय से लेकर मत्स्य संघ में विलय होने तक की सम्पूर्ण जानकारी मिलेगी|
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भरतपुर का इतिहास –
Table of Contents
- राजस्थान के पूर्वी भाग– भरतपुर, धौलपुर, डीग आदि क्षेत्रों पर जाट वंश का शासन था।
- यहाँ जाट शक्ति का उदय औरंगजेब के शासन काल से हुआ था।
- धीरे-धीरे जाट शक्ति संगठित होती गई और औरंगजेब की मृत्यु के आसपास जाट सरदार चूड़ामन ने थून में किला बनाकर अपना राज्य स्थापित कर लिया था।
- चूड़ामन के बाद बदनसिंह को जयपुर नरेश सवाई जयसिंह ने डीग की जागीर दी एवं ‘ब्रजराज‘ की उपाधि प्रदान की।
- बदनसिंह के पुत्र सूरजमल ने सोगर के निकट 1733 ई में दुर्ग का निर्माण करवाया जो बाद में भरतपुर के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
- बदनसिंह ने उसे अपनी राजधानी बनाया।
- इसने जीते जी अपने पुत्र सूरजमल को शासन की बागडोर सौंप दी।
- सूरजमल ने डीग के महलों का निर्माण करवाया।
- सूरजमल ने 12 जून, 1761 ई. को आगरे के किले पर अधिकार कर लिया।
- वह 1763 ई. में नजीब खाँ रोहिला के विरुद्ध हुए युद्ध में मारा गया।
- उसके बाद उसका पुत्र जवाहरसिंह भरतपुर का राजा बना।
- इसने विदेशी लड़ाकों की एक पेशेवर सेना तैयार की।
- 29 सितम्बर, 1803 ई. में यहाँ के शासक रणजीतसिंह ने अंग्रेजों से सहायक संधि कर ली।
- स्वतंत्रता के बाद भरतपुर का मत्स्य संघ में विलय हुआ जो 1949 में राजस्थान में शामिल हो गया।
FAQ (Bharatpur Ka Itihaas) :
ANS. जाट शक्ति का उदय मुग़ल बादशाह ओरंगजेब के शासन काल से हुआ |
ANS. जाट सरदार चुडामन ने थून में किला बना कर जाट राज्य की स्थापना की |
ANS. बदनसिंह को जयपुर के नरेश सवाई जयसिंह ने ‘डीग की जागीर’ दी तथा ‘ब्रजनिधि’ की उपाधि प्रदान की |
ANS. सूरजमल ने डीग के महलों का निर्माण करवाया |
ANS. 29 सितम्बर, 1803 ई. में यहाँ के शासक रणजीतसिंह ने अंग्रेजों से सहायक संधि कर ली।
ANS. स्वतंत्रता के बाद भरतपुर का मत्स्य संघ में विलय हुआ जो 1949 में राजस्थान में शामिल हो गया।
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