Rajasthan History : बीकानेर के रायसिंह | Bikaner Ke Raysingh

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Rajasthan History : Bikaner Ke Raysingh | बीकानेर के रायसिंह – इस POST में आपको Bikaner Raja Raysingh के बारे में तथा उनके द्वारा किये गए युद्धों (कठौली की लड़ाई) आदि का विस्तृत वर्णन है।


  • 1570 ई. में सम्राट अकबर के नागौर दरबार में राव कल्याणमल अपने पुत्र पृथ्वीराज एंव रायसिंह सहित बादशाह की सेवा में उपस्थित हुआ।
  • अकबर की अधीनता स्वीकार करने वाले वे बीकानेर के प्रथम नरेश थे।
  • उन्होंने अपने दोनों पुत्रों को अकबर की सेवा में भेज दिया।

राजा रायसिंह (Bikaner Ke Raysingh) –

  • रायसिंह का जन्म 20 जुलाई, 1541 को हुआ।
  • पिता कल्याणमल के देहावसान के बाद सन् 1574 में वे बीकानेर के शासक बने।
  • महाराजा रायसिंह के शासनकाल में बीकानेर रियासत के मुगलों से घनिष्ठ संबंध कायम हुए।
  • जिस संबंध का सूत्रपात इनके पिता राव कल्याणमल ने अकबर की सेवा में उपस्थित होकर किया, उसको महाराजा रायसिंह ने उत्तरोत्तर बढ़ाया।
  • रायसिंह अकबर के वीर, कार्यकुशल एवं राजनीति निपुण योद्धाओं में से एक थे।
  • बहुत थोड़े समय में ही वे अकबर के अत्यधिक विश्वासपात्र बन गए थे।
  • हिन्दू नरेशों में जयपुर के बाद बीकानेर से ही अकबर के अच्छे संबंध कायम हो सके।
  • जोधपुर का प्रशासक –
    • 1572 ई. में अकबर ने कुँवर रायसिंह को जोधपुर का प्रशासक नियुक्त किया
    • वहाँ उनका तीन वर्ष तक अधिकार रहा।

कठोली की लड़ाई –

  • गुजरात के मिर्जा बंधुओं के विद्रोह का दमन करने हेतु भेजी गई शाही सेना में रायसिंह भी थे।
  • कठोली की लड़ाई 1573 ई. में हुयी थी।
  • इब्राहीम हुसैन मिर्जा का पीछा करते हुए शाही सेना ने रायसिंह के नेतृत्व में उसे कठौली नामक स्थान पर घेर लिया।
  • जहाँ वह पराजित होकर पंजाब की तरफ भाग गया।

जोधपुर के राव चंद्रसेन पर चढ़ाई –

  • राव चन्द्रसेन ने जोधपुर व भाद्राजण पर मुगल सेना का अधिकार हो जाने के बाद सिवाणा को अपना ठिकाना बना लिया था।
  • सम्राट अकबर ने रायसिंह के नेतृत्व में सिवाणा के गढ़ पर अधिकार करने के लिए 1574 ई. में सेना भेजी
  • शाही सेना ने सोजत का किला जीता एवं फिर सिवाणा पर घेरा डाला
  • चंद्रसेन राठौड़ पत्ता व मुहंता पत्ता के अधिकार में गढ़ छोड़कर चले गए।
  • बाद में शाहबाज खाँ के नेतृत्व में शाही सेना ने सिवाणा के गढ़ पर अधिकार किया

देवड़ा सुरताण का दमन (Bikaner Ke Raysingh) –

  • 1576 ई. में जालौर के ताज खाँ एवं सिरोही के सुरताण देवड़ा के विद्रोह का दमन करने हेतु रायसिंह के नेतृत्व में शाही सेना भेजी।
  • ताज खाँसुरताण ने रायसिंह के समक्ष उपस्थित होकर बादशाह की अधीनता स्वीकार कर ली

अन्य महत्तवपूर्ण तथ्य –

  • अनेक लड़ाइयों में रायसिंह ने अकबर की सेना का सफलतापूर्वक संचालन किया।
  • गुजरात, काबुल, दक्षिण, लाहौर हर तरफ उसने अपने वीरोचित गुणों का प्रदर्शन किया।
  • ये कुछ ही दिनों में वे अकबर के चारहजारी मनसबदार बन गए।
  • जहाँगीर के शासन में रायसिंह का मनसब 5 हजारी हो गया।
  • अकबर और जहाँगीर का विश्वासपात्र होने के कारण विशेष अवसरों पर रायसिंह की नियुक्ति की जाती थी।
  • समय-समय पर उन्हें बादशाह की ओर से जागीरें भी प्रदान की गई
  • जूनागढ़, सोरठ, नागौर, शमशाबाद आदि जागीरें रायसिंह को मिली
  • रायसिंह की वतन जागीर में 47 परगने थे। Bikaner Ke Raysingh
  • शहजादा सलीम (जहाँगीर) का रायसिंह के प्रति अधिक विश्वास था।
  • बादशाह अकबर के बीमार पड़ने पर शहजादा सलीम ने रायसिंह को ही शीघ्रातिशीघ्र दरबार में आने के लिए लिखा
  • रायसिंह दानवीर विद्यानुरागी भी थे।
  • मुंशी देवी प्रसाद ने उन्हें ‘राजपूताने का कर्ण‘ कहा है।
  • बीकानेर में अपने मंत्री कर्मचंद की देखरेख में 1589-94 में जूनागढ़ दुर्ग का निर्माण कराया व ‘रायसिंह प्रशस्ति‘ उत्कीर्ण करवाई।
  • कर्मचन्द्रवंशोत्कीर्तनकं काव्यं‘ में रायसिंह को ‘राजेन्द्र‘ कहा है।
  • वह विजित शत्रुओं के साथ भी बड़े सम्मान का व्यवहार किया करता था।

FAQ :

1. रायसिंह को राजपूताने का कर्ण किसने कहा था?

ANS. मुंशी देवी प्रसाद ने इनको राजपूताने का कर्ण कहा था |

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2. रायसिंह को राजेन्द्र किस ग्रन्थ में कहा गया है?

ANS. कर्मचन्द्रवंशोत्कीर्तनकं काव्यं’ में रायसिंह को ‘राजेन्द्र’ कहा है।

3. जूनागढ़ का निर्माण कब किसने करवाया ?

ANS. बीकानेर में रायसिंह ने अपने मंत्री कर्मचंद की देखरेख में 1589-94 में जूनागढ़ दुर्ग का निर्माण कराया व ‘रायसिंह प्रशस्ति’ उत्कीर्ण करवाई।

4. रायसिंह बीकानेर के शासक कब बने ?

ANS. पिता कल्याणमल के देहावसान के बाद सन् 1574 में वे बीकानेर के शासक बने।

5. जहांगीर के समय रायसिंह का मनसब कितने हजारी था ?

ANS. जहाँगीर के समय रायसिंह का मनसब 4 हजारी से बढ़कर 5 हजारी हो गया था |

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