राजस्थान चित्रकला की नाथद्वारा शैली और देवगढ शैली

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राजस्थान चित्रकला की नाथद्वारा शैली | राजस्थान चित्रकला : – Rajasthan Culture में Rajasthan Chitrakala का एक महत्तवपूर्ण अध्याय Rajasthan Chitrakala Ki Nathdwara Shaili Or Devgarh Shaili के बारे में विस्तारित जानकारी प्राप्त होगी। Nathadwara Shaili और Devgarh Shaili मेवाड़ चित्रकला स्कूल की एक प्रमुख शैली है जिसकी जानकरी इसमें दी जा रही है। यहाँ पर इसके उद्भव से लेकर इसके विकसित काल तक का तथा प्रसिध्द चित्रों का भी वर्णन आपको मिलेगा।


राजस्थानी चित्रकला की नाथद्वारा शैली

  • मेवाड़ शैली का दूसरा प्रमुख मोड़ नाथद्वारा शैली में दृष्टव्य है।
  • यह उदयपुर शैली एवं ब्रजशैली का समन्वित रूप है।
  • श्रीनाथजी के प्राकट्य एवं लीलाओं से संबंधित असंख्य चित्र कागज और कपड़े पर बनने लगे।
  • नाथद्वारा शैली की मौलिक देन श्रीनाथजी के स्वरूप के पीछे सज्जा के लिए बड़े आकार के कपड़े के पर्दे पर बनाए गए चित्र ‘पिछवाईयों‘ के नाम से जाने गए।
  • 18वीं सदी के इन चित्रों में कृष्ण चरित्र की बहुलता के कारण यशोदा, नन्द, बाल-ग्वाल, गोपियाँ तथा वल्लभ संप्रदायी संतों का चित्रांकन नाथद्वारा शैली की विशेष छाप है।
  • इसमें हरे-पीले रंगों का अधिक प्रयोग हुआ।
  • इसकी अन्य विशेषताओं में केन्द्र में श्रीनाथजी की आकृति, गायों का मनोरम दृश्य, आसमान में देवताओं का अंकन, पृष्ठभूमि में सघन वनस्पति, कदली वृक्षों की प्रधानता आदि है।

पुष्टि-संप्रदाय की परम्परा और नाथद्वारा शैली

  • पुष्टि-संप्रदाय की परम्परा में नाथद्वारा शैली में छोटी से छोटी वस्तु का अंकन अनिवार्य रहा है।
  • तिलक के स्थान पर तिलक तथा मध्य भाग में लाल, साथ ही नथ-बेसर के तीन मोतियों में से बीच का मोती लाल होना चाहिये।
  • चोटी, फुंदना, मुकुट, वंशी गुलाबसाही बोडा, चौखटा, काछनी, पीताम्बर आदि शृंगारिक उपकरणों का अंकन अनिवार्य है।
  • तिलकायत श्री गोवर्धनजी के समय में, यहां की चित्रकला का विकास चरम सीमा पर था।
  • वर्ष पर्यन्त चौबीस उत्सवों के अलावा, अन्नकूट, नाव का मनोरथ, बंगले के उत्सव, छप्पन भोग, कलियों की हट्टी आदि का विशेष रूप से बहुलता में अंकन हुआ है।
  • शुद्धादेय पुष्टि मार्ग का मूल उद्देश्य कृष्ण कन्हैया को रिझाना और उनका गुणगान करना ही रहा है।
  • आज से 200 वर्ष पूर्व ‘बाबा रामचन्द्र‘ जयपुर से आकर यहां बस गये थे।
  • आपकी शैली में ब्रजमण्डल के प्रकृति परिवेश के पेड़-पौधों में नवीनता प्रदर्शित है।
  • इस प्रकार उनके कार्य की तुलना किसी अन्य कलाकार से नहीं की जा सकती।
  • नारायण‘, ‘चतुर्भुज‘, ‘रामलिंग‘, ‘चम्पालाल‘, ‘घासीराम‘, ‘तुलसीराम‘, ‘उदयराम‘, ‘देवकृष्ण‘, ‘हरदेव‘, ‘हीरालाल‘, ‘विटुल‘, ‘भगवान‘ आदि चित्रकारों के नाम भी प्रसिद्ध हैं।
  • महिला कलाकारों में ‘कमला’ एवं ‘इलायची’ का नाम भी उल्लेखनीय है।

देवगढ़ शैली ( Rajasthan Chitrakala Ki Nathdwara Shaili Or Devgarh Shaili )

  • महाराणा जयसिंह के राज्यकाल में रावत द्वारिका दास चूँडावत ने देवगढ़ ठिकाना 1680 ई. में स्थापित किया।
  • तदुपरान्त देवगढ़ शैली का जन्म हुआ।
  • यहाँ के सामंत “सौलहवें उमराव” कहलाते थे।
  • देवगढ़ शैली मारवाड़, जयपुर एवं मेवाड़ शैली का समन्वित रूप है।
  • इसे सर्वप्रथम ‘डॉ. श्रीधर अंधारे‘ द्वारा प्रकाश में लाया गया।
  • इस शैली के प्रमुख चित्रकारों में बगता, कँवला प्रथम, कंवला द्वितीय, हरचंद, नंगा, चोखा एवं बैजनाथ हैं।
  • प्राकृतिक परिवेश, शिकार के दृश्य, अन्तःपुर, राजसी ठाठ-बाठ, शृंगार, सवारी आदि इसके प्रमुख विषय रहे हैं।
  • इसमें पीले रंग की बाहुल्यता रही है।
  • इस शैली के भित्ति चित्र “अजारा की ओवरी“, “मोती महल” आदि में देखने को मिलते हैं।

FAQ ( Rajasthan Chitrakala Ki Nathdwara Shaili Or Devgarh Shaili )

1. देवगढ़ शैली का जन्म कब हुआ?

ANS. महाराणा जयसिंह के राज्यकाल में रावत द्वारिका दास चूँडावत ने देवगढ़ ठिकाना 1680 ई. में स्थापित किया। तदुपरान्त देवगढ़ शैली का जन्म हुआ।

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2. देवगढ शैली को किसके द्वारा प्रकाश में लाया गया है?

ANS. देवगढ शैली को सर्वप्रथम ‘डॉ. श्रीधर अंधारे‘ द्वारा प्रकाश में लाया गया।

3. कमला और इलायची किस शैली की प्रसिध्द महिला चित्रकार है?

ANS. ये दोनों नाथद्वारा शैली की प्रसिध्द महिला कलाकार है।

4. नाथद्वारा शैली का विकास किसके काल में चरम सीमा पर था?

ANS. तिलकायत श्री गोवर्धनजी के समय में, यहाँ की चित्रकला का विकास चरम सीमा पर था।

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