Rajashan History : मेवाड़ राज्य का इतिहास | Mewad Rajay Ka Itihaas – इस भाग में आपको मेवाड़ राज्य के इतिहास, गुहादित्य, बप्पा रावल तथा रावल शाखा के संस्थापक क्षेमसिंह आदि का विस्तृत वर्णन किया गया है |
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मेवाड़ राज्य का इतिहास ( Mewad Rajay Ka Itihaas ) –
- मेवाड़ ( उदयपुर ) के प्राचीन नाम – शिवि, प्राग्वाट मेदपाट आदि रहें है |
- इस क्षेत्र पर पहले मेद ( मेव ) या मेर जाति का अधिकार रहेने के कारण इस स्थान का नाम मेदपाट पड़ा था |
- जब से राजधानी उदयपुर नगर में स्थापित हुयी, तब से इसे उदयपुर भी कहा जाने लगा था |
- राजपूताने ( राजस्थान ) के सम्पूर्ण इतिहास में मेवाड का इतिहास ही सबसे ज्यादा गौरव पूर्ण रहा है |
- केवल राजपूताने की रियासतों के ही नहीं, परन्तु संसार के अन्य राज्यों के राजवंशों से भी उदयपुर का राजवंश अधिक प्राचीन है |
- भगवान् राम के पुत्र कुश के वंशजों में से 566 ई. में मेवाड़ में गुहदित्य ( गुहिल ) नाम का एक प्रतापी राजा हुआ, जिसने गुहिल वंश की नींव डाली थी |
- उदयपुर के राजवंश ने तब से लेकर राजस्थान बनने तक इसी प्रदेश पर राज्य किया |
- इतने लम्वे समय तक एक ही प्रदेश पर राज्य करने वाला संसार में एकमात्र राजवंश ( मेवाड़ ) है |
- जब तत्कालीन राजाओं ने मुग़ल सम्राज के सामने अपनी स्वतन्त्रता स्थिर न रख सके और अपने सर झुका लिए |
- तब नाना प्रकार के कष्ट सहते हुए भी उदयपुर राज्य ने अपनी स्वतन्त्रता और कुल गौरव की रक्षा की थी |
- इसी कारण आज भी उदयपुर के महाराणा ‘हिंदुआ सूरज’ कहलाते है |
- मेवाड़ कि अधीनता स्वीकार करने के बाद भी मेवाड़ के महाराणाओं को बादशाही दरबार में कभी नहीं जाना पड़ा और न ही इन्होने मुगलों से कोई वैवाहिक समबन्ध बनाये |
- महाराणा राजसिंह ने औरंगजेब से न डरकर अजीतसिंह की सहायता की |
- जजिया कर देने से इनकार कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप उसे बादशाह से बड़ी लड़ाई लड़नी पड़ी |
- औरंगजेब के बाद मुग़ल साम्राज्य के अवनति काल में अन्य राजपुत नरेशों की तरह उदयपुर राजवंश के महाराणाओं ने मुग़ल बादशाह के पास जाकर विशेष कृपापात्र बनना उचित नही समझा व अपना गौरव बनाये रखा |
- उदयपुर राज्य के राज्य चिन्ह में अंकित शब्द ‘जो दृढ राखे धर्म को, तिहिं राखे करतार’ उनकी स्वंतन्त्र्ता प्रियता व धर्म पर दृढ रहें को स्म्व्यमेव ही स्पष्ट करता है |
गुहिल वंश की स्थापना ( Mewad Rajay Ka Itihaas ) –
- मेवाड़ राज्य के इतिहास की जानकारी गुहील ( गुहादित्य ) के काल से प्रारम्भ होती है |
- गुहादित्य ने 566 ई. के आसपास मेवाड़ में गुहिल वंश की नींव डाली थी |
- इनके पिता का शिलादित्य तथा माता का नाम पुष्पावती था |
- गुहादित्य के बाद महेंद्र-द्वितीय का पुत्र बप्पा रावल (734-753 ई. ) मेवाड़ का प्रतापी राजा हुआ |
- इनका मूलनाम कालभोज था |
- बप्पा के इष्टदेव एकलिंग जी थे और एकलिंग जी के मुख्य पुजारी हारित ऋषि के आशीर्वाद से सन 734 में बप्पा रावल ने मौर्य राजा मान से चित्तोड़ दुर्ग जीता |
- उस समय गुहिलों की राजधानी नागदा थी |
- बप्पा का देहांत नागदा में हुआ था |
- उनका समाधि स्थल एकलिंग जी ( कैलाशपुरी ) से एक मील की दुरी पर अभी तक मौजूद है जो बप्पा रावल के नाम से प्रसिद्ध है |
- बप्पा के वंशज अल्लट के समय मेवाड़ की बड़ी उन्नति हुयी |
- अल्लट ने आहड को अपनी दूसरी राजधानी बनाया |
- यह भी माना जाता है की अल्लट ने मेवाड़ में सबसे पहले नौकरशाही का गठन किया था |
- गुहिल शासक शक्ति कुमार ( 977-993 ई. ) के समय में मालवा के परमार राजा मुंज ने चितोड के दुर्ग पर अधिकार कर लिया था |
- मुंज के वंशज राजा भोज ने ‘त्रिभुवन नारायण शिव मंदिर‘, जिसे अब मोकल का समिद्धेश्वर मंदिर कहते है, का निर्माण करवाया |
- राजा भोज 1021-1031 ई. तक मेवाड़ में रहा था |
रावल वंश की स्थापना ( Mewad Rajay Ka Itihaas ) –
- गुहिल शासक रणसिंह, जिसको कर्णसिंह भी कहते है, 1158 ई. में मेवाड़ का शासक बना |
- रण सिंह के पुत्र क्षेमसिंह ने मेवाड़ में रावल शाखा की स्थापना की |
- रणसिंह के अन्य पुत्र रहप ने सिसोदा ग्राम की स्थापना कर राणा शाखा की नींव रखी, सिसोदा में रहने के कारण सिसोदिया कहलाये |
- रणसिंह के पुत्र कुमारसिंह के वंशज जैत्रसिंह (1213-1253 ई. ) प्रतापी व वीर राजा हुआ |
- जैत्रसिंह के समय दिल्ली के सुल्तान शमसुद्दीन अल्तमश ने नागदा पर आक्रमण ( 1222-1229 इ.) किया व नागदा को भारी क्षति पहुंचाई |
- उस समय जैत्र सिंह ने मेवाड़ की राजधानी चित्तोड़ को बनाया |
FAQ :
1. गुहिल वंश का संस्थापक कौन था?
ANS. गुहादित्य ने 566 ई. के आसपास मेवाड़ में गुहिल वंश की नींव डाली थी |
2. रावल शाखा की स्थपना किसने की ?
ANS. रण सिंह के पुत्र क्षेमसिंह ने मेवाड़ में रावल शाखा की स्थापना की |
3. नौकरशाही का गठन मेवाड़ में सबसे पहले किसने किया ?
ANS.अल्लट ने मेवाड़ में सबसे पहले नौकरशाही का गठन किया था |
4. बप्पा रावल का मूल नाम क्या था ?
ANS. कालभोज |
5. चित्तोड़ को सबसे पहले राजधानी किसने बनाया था ?
ANS. जैत्र सिंह ने मेवाड़ की राजधानी चित्तोड़ को बनाया |
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अगले अंक में रावल रतनसिंह, महाराणा हम्मीर, महाराणा लाखा और महाराणा मोकल के बारे विस्तृत जानकारी मिलेगी |