राजस्थान भूगोल : राजस्थान की मिट्टियाँ | Rajasthan Ki Mittiyan – इस अध्याय में Rajasthan Ki Mittiyan के बारे में, मृदा अपरदन, मरुस्थलीकरण आदि बिन्दुओं के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी हासिल होगी |
सरकारी नौकरी भर्ती और सरकारी योजना की जानकारी प्राप्त करने के लिए निचे दिए बटन पर क्लिक करके , गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें
राजस्थान की मिट्टियाँ ( Rajasthan Ki Mittiyan ) –
- राज्य में कई प्रकार की मिट्टियाँ पाई जाती है, मृदा ही हमारे जीवन का आधार है, क्योंकि अच्छी मृदा वाली जगह ही इंसानी बस्तियां बसी होती है |
- मृदा में विभिन्नताओं के कारण ही हमें विभिन्न प्रकार की फसलें, घास तथा पेड-पौधे प्राप्त होते है |
- जिस मिट्टी में पौधे और फसलें आसानी उग जाते है , उस मृदा को उर्वर मृदा कहते है |
- जिस मृदा में कोई भी पौधे नहीं उगते है, उस मृदा को अनुर्वर या ऊसर मृदा कहते है |
- राजस्थान मे निम्न प्रकार की मिट्टियाँ पाई जाती है –
मिट्टी के प्रकार ( Rajasthan Ki Mittiyan ) –
मिट्टी के प्रकार | क्षेत्र | विशेषताएं |
---|---|---|
रेतीली / बलुई मिट्टी | शुष्क प्रदेश के जैसलमेर,बाड़मेर, जोधपुर, बीकानेर, नागौर, चुरू, झुंझुनू | | मोटा कण, नमी धारण की निम्न क्षमता | नाईट्रोजनी एंव कार्बनिक लवणों तथा जैविक अंश की मात्रा कम तथा केल्शियम लवणों की अधिकता | खरीफ की बाजरा, मोठ,तथा मुंग की फसलें हेतु उपयुक्त | |
लाल दोमट मिट्टी/ लाल लोमी मिट्टी | उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाडा तथा चित्तोडगढ | | बारीक़ कण, नमी धारण कीअद्भुत क्षमता| नाईट्रोजन, फास्फोरस, एंव कैल्शियम लवणों की अल्पता तथ पोटाश एंव लौह तत्वों की अधिकता | मक्का की फसल हेतु उपयुक्त | |
काली मिट्टी | राज्य के दक्षिणी-पूर्वी भाग | | बारीक कण, नमी धारण की उच्च क्षमता | कोटा, बूंदी, बरन, एंव झालावाड फास्फेट, नाईट्रोजन एंव जैविक पदार्थों की अल्पता तथा कैल्शियम एंव पोटाश की पर्याप्तता | कपास व नकदी फसलों हेतु उपयुक्त | |
मिश्रित लाल-काली मिट्टी | उदयपुर, चित्तोडगढ, डूंगरपुर, बांसवाडा एंव भीलवाडा | | फास्फेट, नाईट्रोजन, कैल्शियम, तथा कार्बनिक पदार्थों की अल्पता | कपास तथा मक्का की फसल हेतु उपयुक्त | |
मिश्रित लाल-पीली मिट्टी | सवाईमाधोपुर, भीलवाडा, अजमेर, सिरोही | | नाइट्रोजन, कैल्शियम एंव कार्बनिक यौगिकों व ह्यूमस की अल्पता तथा लौह ओक्साइडों की बहुलता | |
जलोढ़/कछारी मिट्टी ( नदियों से बहकर आने वाले मिट्टी ) | अलवर, भरतपुर, धौलपुर, जयपुर, टोंक सवाईमाधोपुर, कोटा, बूंदी ( बनास का प्रवाह क्षेत्र )| | फास्फेट एंव कैल्शियम तत्वों की अल्पता तथा नाइट्रोजन तत्वों की बहुलता | जलधारण की पर्याप्त क्षमता व अत्यधिक उपजाऊ | गेंहू, चावल, कपास, तथा तम्बाकू के लिए उपयुक्त | |
भूरी मिट्टी | भीलवाडा, अजमेर, सवाईमाधोपुर, टोंक ( बनास का प्रवाह क्षेत्र )| | नाईट्रोजनी एंव फोस्फोरस तत्वों का अभाव | बनास के प्रवाह क्षेत्र की मृदा | कृषि के लिए उपयुक्त | |
सिरोजम मिट्टी या धूसर | अरावली के पश्चिम में बांगड़ | | रंग पीला भूरा | उर्वरा शक्ति की कमी | शुष्क खेती हेतु उपयुक्त | |
मरुस्थलीय मिट्टी ( भूरी-रेतीली मिट्टी ) | प्रदेश में पाली, नागौर, जालौर, झुंझुनू तथा सीकर | | नाईट्रोजन , कार्बनिक पदार्थों व जैविक अंश की कमी| |
लवणीय मिट्टी | गंगानगर, बीकानेर, बाड़मेर व जालौर | | क्षारीय व् लवणीय तत्वों की अधिकता के कारण अनुपजाऊ | प्राकृतिक रूप से निम्न्भु भागों में उपलब्ध | |
पर्वतीय मिट्टी | अरावली की उपत्यका में | सिरोही, उदयपुर, पाली, अजमेर व अलवर जिलों के पहाड़ी भागों में| | मिट्टी की गहराई कम होने के कारण खेती के लिए अनुपयुक्त | |
मृदा अपरदन ( Rajasthan Ki Mittiyan )-
- मिट्टी की एक से दो सेंटीमीटर की परत बनने में लगभग दो शताब्दियाँ लग जाती है, किन्तु यह बनी बनाई मिट्टी कुछ ही समय में नष्ट ही सकती है |
- मृदा की उपरी सतह पर से उपजाऊ मृदा का स्थानांतरित हो जाना मिट्टी का कटाव या मृदा का अपरदन कहलाता है |
- अपरदन बहते हुए जल, पवन तथा हिम के साथ होता है |
मृदा अपरदन के कारण –
- वनों का ह्रास तथा अंधाधुंध कटाई |
- वर्षा पूर्व मरुस्थलीय अंधड़ |
- कृषि के अवैज्ञानिक तरीके |
- ढालू भूमि में जल की तेज धारा से मृदा का अपरदन |
- चरागाहों पर अंधाधुंध चराई, भेद बकरियों द्वारा वनस्पति को अंतिम बिंदु तक चरकर उसे खोखला बना दिया जाता है |
- पहाड़ी क्षेत्रों में आदिवाशियों द्वारा वालरा खेती |
मृदा अपरदन के कुप्रभाव –
- भीषण तथा आकस्मिक बाढ़ों का प्रकोप |
- भू-जल स्तर का गिरना |
- निरंतर सुखा | ( Rajasthan Ki Mittiyan )
- कृषि उत्पादन का निरंतर क्षय |
- नदी/नहरों का मार्ग अवरोधित होना |
- वायु अपरदन से बोई गई फसल में अंकुरण नहीं हों |
मृदा अपरदन को रोकने के उपाय –
- जंगलों व् चरागाहों की वृद्धि |
- चराई पर नियन्त्रण |
- खेतो में मेडबंदी करना |
- ढालू भूमि पर कंटूर कृषि को बढ़ावा देना |
- पट्टीदार कृषि को बढ़ावा देना |
- फसलों को हेर – फेर कर बोना एंव समय समय पर खेंतों को पडती छोड़ना |
- नदी के तेज बहाव को रोकने के लिए बांधों का निर्माण करना |
- वृक्षारोपण करना ताकि मरुस्थलीय क्षत्रों में मिट्टी को उड़ने से रोका जा सके तथा नदी के किनारों पर मिट्टी के कटाव को रोका जा सके |
मरुस्थलीकरण –
- वह प्रकिया जिसके द्वार किसी भू भाग में रेगिस्थान या मरुभूमि का निर्माण या विस्तार होता है, मरुस्थलीयकरण कहलाता है |
- वनों की अनियंत्रित कटाई व पशुधन की अधिकता से भूमि पर जैविक दवाब बढ़ने से मरुस्थलीय करण को बढ़ावा मिलता है |
रेगिस्थान की मार्च –
- जब किसी कारणों से रेगिस्थान आगे बढ़ता जाता है तो, उसे रेगिस्तान का मार्च कहतें है |
मरुस्थलीयकरण को रोकने के उपाय –
- सिंचाई के साधनों का विकास किया जाना चाहिए ताकि जल के अभाव की समस्या को रोका जा सके व अधिकाधीक वृक्षरोपन किया जा सके |
- मरुभूमि के अनुकूल वृक्षों जैसे खेजड़ी, कीकर, रोहिडा, जोजोबा, नीम, बोरडी, फोग आदि की खेती को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए |
- सुखी खेती की प्रोत्साहित किया जाना चाहिए तथा बूंद बूंद सिंचाई व फव्वारा सिंचाई का उयोग किया जाना चाहिए |
- पशुओं की चराई को नियंत्रित किया जाना चाहिए |
- ऊर्जा के वैकल्पिक व पुनर्नवीकरणीय स्त्रोतों का विअक्स किया जाना चहिये ताकि कोयले व जलाने की लकड़ी की बचत कर जंगलों को कटने से रोका जा सके |
FAQ :
ANS. जब किसी कारणों से रेगिस्थान आगे बढ़ता जाता है तो, उसे रेगिस्तान का मार्च कहतें है |
ANS. मृदा की उपरी सतह पर से उपजाऊ मृदा का स्थानांतरित हो जाना मिट्टी का कटाव या मृदा का अपरदन कहलाता है |
ANS. वह प्रकिया जिसके द्वार किसी भू भाग में रेगिस्थान या मरुभूमि का निर्माण या विस्तार होता है, मरुस्थलीयकरण कहलाता है |
ANS. राज्य के दक्षिणी-पूर्वी भाग में काली मिट्टी पायी जाती है
ANS. राज्य के गंगानगर, बीकानेर, बाड़मेर व जालौर जिलों में लवणीय मिट्टी पाई जाती है |
Read Also :
- Rajasthan GK Important Questions in Hindi
- राजस्थान का परिचय
- स्थिति और विस्तार
- राजस्थान के संभाग और जिले
- राजस्थान के भौतिक प्रदेश : उत्तरी पश्चिमी मरुस्थलीय भाग
- अरावली पर्वतीय प्रदेश
- पूर्वी मैदानी भाग
- दक्षिणी-पूर्वी पठारी भाग
- राजस्थान के प्रमुख बाँध, झीलें और तालाब