राजस्थान चित्रकला की उदयपुर शैली | राजस्थान संस्कृति : – Rajasthan Culture की Rajasthan Chitrakala के एक अध्याय Rajasthan Chitrakala Ki Udaipur Shaili का इसमें विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। इसमें Udaipur शैली का विस्तृत वर्णन किया गया है। इसमें इस शैली के स्वर्णकाल, इसके ग्रंथों तथा प्रमुख चित्रों का भी विस्तारित रूप में वर्णन किया गया है।
सरकारी नौकरी भर्ती और सरकारी योजना की जानकारी प्राप्त करने के लिए निचे दिए बटन पर क्लिक करके , गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें
उदयपुर शैली
- मेवाड़ राज्य राजस्थानी चित्रकला का सबसे प्राचीन केन्द्र माना जा सकता है।
- महाराणा अमरसिंह प्रथम (1597-1620 ई.) के शासनकाल में चावण्ड चित्रशैली का अधिक विकास हुआ।
- महाराणा अमरसिंह के समय में 1605 ई. “रागमाला” मेवाड़ शैली का प्रमुख ग्रंथ है।
- इन चित्रों को “निसारदीन” नामक चित्रकार ने चित्रित किया।
- मेवाड़ में राणा जगतसिंह प्रथम (1628-1652 ई.) का काल चित्रकला के विकास का सर्वश्रेष्ठ काल था।
- इसके काल को मेवाड़ की लघु चित्रशैली का स्वर्णकाल कहा जाता है।
- इस काल में वल्लभ सम्प्रदाय के प्रसार के कारण श्रीकृष्ण के जीवन से सम्बन्धित चित्रों का निर्माण अधिक हुआ।
- इस काल में रागमाला रसिकप्रिया, गीतगोविन्द, भागवत् पुराण एवं रामायण इत्यादि विषयों पर लघु चित्रों का निर्माण हुआ।
- राणा जगतसिंह कालीन प्रमुख चित्रकार ‘साहबदीन और मनोहर’ रहे हैं।
- इन चित्रकारों ने मेवाड़ चित्रकला को हर प्रकार से मौलिकता प्रदान करने में उल्लेखनीय कार्य किया।
- सन् 1628 ई. में चित्रित रागमाला के अनेक चित्र भारत के संग्रहालयों में बिखरे पड़े हैं, जिनमें साहबदीन की जहाँगीर कालीन शैली का अन्यतम उदाहरण देखने को मिलता है।
- कृष्णचरित्र की ही भांति रामचरित्र का चित्रांकन भी महाराणा जगतसिंह के समय की कलात्मक धरोहर है।
- आर्ष रामायण को आधार बनाकर 1649 ई. से लेकर 1653 ई. तक साहिबदीन तथा उसके सहयोगी मनोहर ने अनेक काण्डों का चित्रांकन किया।
- महाराणा जगतसिंह ने राजमहल में ‘चितेरों की ओवरी’ नाम से एक चित्रशाला की स्थापना की जिसे ‘तस्वीरां रो कारखानों’ के नाम से पुकारा गया।
परीक्षाओं से तथा पोस्ट्स से सम्बंधित सभी खबर से अपडेट रहने के लिए ज्वाइन करें –
हमारे WhatsApp, Telegram & Youtube Channel से जुड़े और पायें शिक्षा से जुडी प्रत्येक ख़बर और नि:शुल्क PDF नोट्स
मेवाड़ के राजा और उदयपुर शैली
- राजा राजसिंह को काव्य तथा भवन में विशेष रुचि थी।
- सन् 1655 ई. में साहबदीन कलाकार द्वारा चित्रित ‘शूकर क्षेत्र महात्यम’ (सरस्वती भंडार, उदयपुर में संगृहीत) तथा सन् 1659 ई. का ‘भ्रमर गीत’ महान् उपलब्धियाँ हैं।
- राणा जयसिंह (1680-1698 ई.) के काल में लघु चित्रों का निर्माण अधिकता से हुआ।
- लघु चित्रों की संख्या की दृष्टि से यह काल उल्लेखनीय है।
- इस काल में महाभारत, पृथ्वीराजरासो, भगवद्गीता, पंचाख्यान, सारंगधर, सारंगतत्व, कादम्बरी, सूरसागर, रघुवंश एवं रसिकप्रिया इत्यादि ग्रन्थों पर आधारित चित्रों का निर्माण हुआ।
- महाराणा अमरसिंह द्वितीय (1698-1710 ई.) कालीन चित्रों में रसिकप्रिया के 46 चित्र उल्लेखनीय हैं।
- महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय (1710-1734 ई.) के काल में मेवाड़ी चित्रकला फिर नये आयाम स्पर्श करती है।
- इस काल में गीतगोविन्द, बिहारी सतसई, सुन्दरशृंगार, मुल्ला दो प्याजा के लतीफे और कलीला-दमना ग्रन्थों पर आधारित चित्र प्रमुख हैं।
- महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय के पश्चात् साहित्यिक ग्रन्थों के आधार पर लघु चित्रों की परम्परा लगभग समाप्त हो जाती है।
FAQ Rajasthan Chitrakala Ki Udaipur Shaili
ANS. एक चित्रशाला थी, जिसे ‘तस्वीरां रो कारखानों’ के नाम से पुकारा गया।
ANS. महाराणा जगतसिंह ने राजमहल में ‘चितेरों की ओवरी’ नाम से एक चित्रशाला की स्थापना की जिसे ‘तस्वीरां रो कारखानों’ के नाम से पुकारा गया।
ANS. मेवाड़ में राणा जगतसिंह प्रथम (1628-1652 ई.) का काल चित्रकला के विकास का सर्वश्रेष्ठ काल था। इसके काल को मेवाड़ की लघु चित्रशैली का स्वर्णकाल कहा जाता है।
ANS. महाराणा अमरसिंह के समय में 1605 ई. “रागमाला” मेवाड़ शैली का प्रमुख ग्रंथ है। इन चित्रों को “निसारदीन” नामक चित्रकार ने चित्रित किया।
राजस्थान से सम्बंधित इन पोस्ट्स को भी पढ़े –
- Rajasthan GK Important Questions in Hindi
- राजस्थान का परिचय
- स्थिति और विस्तार
- राजस्थान के संभाग और जिले
- राजस्थान के भौतिक प्रदेश : उत्तरी पश्चिमी मरुस्थलीय भाग
- अरावली पर्वतीय प्रदेश
- पूर्वी मैदानी भाग
- दक्षिणी-पूर्वी पठारी भाग
- राजस्थान के प्रमुख बाँध, झीलें और तालाब