Rajasthan History : सवाई जयसिंह द्वितीय | Sawaai Jaysingh Dwitiya – इस भाग में आपको आमेर के राजा Sawaai Jaysingh Dwitiya के बारे में तथा हुरडा सम्मलेन के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी मिलेगी |
सवाई जयसिंह द्वितीय –
- महाराजा विष्णुसिंह (बिशनसिंह) की सन् 1700 ई. में मृत्यु होने के बाद उनके ज्येष्ठ पुत्र ‘सवाई जयसिंह‘ के नाम से आमेर के शासक बनाये गये।
- सवाई जयसिंह का वास्तविक नाम विजयसिंह था।
- इनका ‘सवाई जयसिंह‘ नाम औरंगजेब ने ही रखा था।
- इन्होंने औरंगजेब, बहादुरशाह प्रथम, फर्रुखसीयर तथा मुहम्मदशाह नामक चार मुगल बादशाहों के काल में आमेर पर शासन किया।
- औरंगजेब की मृत्यु के बाद उत्तराधिकार युद्ध में सवाई जयसिंह ने ने शाहजादा आजम का पक्ष लिया।
- परंतु युद्ध में मुअज्जम की विजय हुई और वह बहादुरशाह के नाम से मुगल बादशाह बना।
- बादशाह ने सवाई जयसिंह को सबक सिखाने के लिए आमेर आकर 1707 ई. में इनके छोटे भाई को,आमेर का शासक घोषित कर दिया और आमेर का नाम मोमिनाबाद रख दिया।
- जयसिंह ने मेवाड़ व जोधपुर शासकों की सहायता से उसे पुनः प्राप्त करने हेतु प्रयास किया।
- मेवाड़ महाराणा अमरसिंह द्वितीय एवं जोधपुर के राजकुमार अजीत सिंह के साथ देबारी समझौता किया था।
- सवाई जयसिंह द्वारा जाटों का विद्रोह समाप्त कर दिये जाने से मुगल सम्राट मोहम्मद शाह ने जयसिंह को राज राजेश्वर, श्री राजाधिराज, सवाई, आदि उपाधियों से विभूषित किया था।
- सवाई जयसिंह की मृत्यु 1 सितम्बर, 1743 ई. को हो गई।
हुरडा सम्मलेन (Sawaai Jaysingh Dwitiya) –
- सवाई जयसिंह ने बढ़ती हुई मराठा शक्ति के विरुद्ध राजपूताना के शासकों को संगठित करने हेतु मेवाड़ के हुरड़ा नामक स्थान पर रियासती राजाओं का 17 जुलाई, 1734 ई. को सम्मेलन करवाया।
- इस सम्मलेन में आपसी सहायता करने का समझौता किया।
- यह समझौता सही तरह से काम नहीं कर पाया।
- इसके बाद सवाई जयसिंह ने राजपूताना में अपना प्रभुत्व बढ़ाने हेतु विभिन्न रियासतों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करना प्रारंभ किया।
- अपने राज्य का अधिकाधिक विस्तार किया।
सवाई जयसिंह द्वितीय के बारे में अन्य महत्तवपूर्ण तथ्य (Sawaai Jaysingh Dwitiya) –
- महाराजा सवाई जयसिंह कूटनीतिज्ञ, प्रसिद्ध यौद्धा, संस्कृत एवं फारसी का प्रकाण्ड विद्वान होने के साथ ही गणित और ज्योतिष का भी अच्छा ज्ञाता थे।
- विद्यानुरागी होने के अलावा वह वास्तु-शिल्प के प्रति भी गहन रुचि रखता था।
- 1727 ई. में उसने जयनगर (वर्तमान जयपुर) की स्थापना की।
- जयपुर नगर का नक्शा पं. विद्याधर भट्टाचार्य (बंगाल निवासी) नामक प्रसिद्ध वास्तुविद् की देखरेख में बनवाया गया।
- 1725 ई. में उसने नक्षत्रों की शुद्ध सारणी ‘जीज़ मुहम्मद शाही‘ बनवाई तथा ‘जयसिंह कारिका‘ नामक ज्योतिष ग्रन्थ की रचना की।
- पुण्डरीक रत्नाकर ने ‘जयसिंह कल्पद्रुम’ ग्रन्थ लिखा।
- सवाई जयसिंह की एक सबसे बड़ी भूल यह रही कि उन्होंने बूंदी के उत्तराधिकार के झगड़े में पड़कर तथा मुगल सम्राट पर अपना प्रभाव जमाने के लिए राजस्थान में मराठों को आमंत्रित कर लिया जिसके बाद में भयंकर परिणाम निकले।
- सवाई जयसिंह के काल में 20 मार्च, 1739 को दिल्ली पर नादिरशाह का आक्रमण हुआ।
- 1734 ई. में उसने जयपुर में एक बड़ी वेधशाला ‘जन्तर-मन्तर’ का निर्माण करवाया तथा ऐसी ही चार और वेधशालाएँ दिल्ली, उज्जैन, बनारस एवं मथुरा में बनवाई।
- जयपुर के चन्द्रमहल (सिटी पैलेस) एवं जलमहल का निर्माण इन्हीं ने करवाया था।
- सवाई जयसिंह अंतिम हिन्दू नरेश थे, जिन्होंने जयपुर में अश्वमेघ यज्ञ (1740 ई. में) सम्पन्न करवाया
- इस यज्ञ का पुरोहित पुण्डरीक रत्नाकर था।
FAQ :
ANS. इनका वास्तविक नाम विजयसिंह था |
ANS. ओरंगजेब ने |
ANS. पुण्डरीक रत्नाकर।
ANS. 1727 ई. में सवाई जयसिंह ने जयनगर (वर्तमान जयपुर) की स्थापना की।
ANS. जयपुर नगर का नक्शा पं. विद्याधर भट्टाचार्य (बंगाल निवासी) नामक प्रसिद्ध वास्तुविद् की देखरेख में बनवाया गया।
ANS. इस ग्रन्थ में नक्षत्रों की शुद्ध सारणी का वर्णन किया गया है |
ANS. इस ग्रन्थ का विषय ज्योतिष है | यह एक ज्योतिष शास्त्र है |
ANS. सवाई जयसिंह द्वितीय अंतिम हिन्दू नरेश थे, जिन्होंने अश्वमेघ यज्ञ करवाया था |
ANS. सवाई जयसिंह द्वितीय अंतिम हिन्दू नरेश थे, जिन्होंने अश्वमेघ यज्ञ करवाया था |
ANS. जंतर-मंतर जो की सबसे बड़ी वैद्यशाला थी, इसका निर्माण जयपुर में सवाई जयसिंह द्वितीय ने 1734 ई.में करवाया था |