अभिक्रमित अनुदेशन विधि | हिंदी भाषा शिक्षण विधियाँ : – यहाँ पर आपको Abhikramit Anudeshan Vidhi के बारे में पूरी और विस्तृत जानकारी मिलेगी तथा इसके प्रकारों का भी वर्णन किया गया है और इस विधि के गुणों और दोषों को भी विस्तृत रूप में समझाया गया है।
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अभिक्रमित अनुदेशन
इसका (अभिक्रमित अनुदेशन) का अर्थ विषय वस्तु को छोटे-छोटे भागों में विभाजित करते हुए विद्यार्थी के समक्ष प्रस्तुत करना और फिर उस विद्यार्थी के द्वारा उस विषय वस्तु को स्वप्रेरणा एवं स्वअनुदेशन में सीखने का प्रयास करना अभिक्रमित अनुदेशन होता है। सर्वप्रथम इस प्रकार का विचार इसवी पूर्व 5 वीं सदी में सुकरात के द्वारा दिया गया था तथा इसी प्रकार का विचार बीसवीं सदी के प्रारंभ में थॉर्डाइक ने दिया। 20 वीं सदी में ही अमेरिकी विद्वान डॉ प्रेशे ने एक शिक्षण मशीन बनाई और मशीन के माध्यम से विषय वस्तु किस प्रकार से प्रतिभागी को प्राप्त हो के लिए क्रमिक व्यवस्था की गई परंतु प्रयोग असफल रहा। वर्तमान अभिक्रमित अनुदेशन क्रिया प्रसूत सिद्धांत पर आधारित है जो बीएफ स्किनर ने दिया था। बीएफ स्किनर अपने मित्र होलेंड के साथ मिलकर सबसे पहले रेखीय अभिक्रमित अनुदेशन दिया। वर्तमान समय में चार प्रकार के अभिक्रमित अनुदेशन प्रचलित हैं।
- रेखीय अभिक्रमित अनुदेशन
- शाखीय अभिक्रमित अनुदेशन
- गणितीय अभिक्रमित अनुदेशन
- कंप्यूटरीकृत अभिक्रमित अनुदेशन।
रेखीय अभिक्रमित अनुदेशन
- यह अनुदेशन 1954 में स्किनर व हॉलैंड ने दिया।
- इस अनुदेशन में प्रतिभागी के पास जो विषय वस्तु भेजी जाती है।
- वह छोटे-छोटे अंशो या भागों में क्रमशः एक के बाद एक भेजी जाती है।
- इसलिए स्तत रूप से जाने के कारण एक रेखा जैसी आकृति बन जाती है।
- अनुदेशन में मूल्यांकन की व्यवस्था का अभाव है इसलिए यह अधिक सफल नहीं माना जाता। शिक्षण विधियाँ
शाखीय अभिक्रमित अनुदेशन Abhikramit Anudeshan Vidhi
- इस अनुदेशन को नॉर्मन क्राउडर ने 1960 में दिया।
- नॉर्मन क्राउडर करने की अभिक्रमित अनुदेशन की कमियों को दूर करते हुए शाखीय अभिक्रमित अनुदेशन प्रस्तुत किया।
- जहां रेखीय अभिक्रमित अनुदेशन में मूल्यांकन का अभाव था वहीं पर शाखीय अभिक्रमित अनुदेशन में मूल्यांकन की विशेषताएं पैदा की गई।
- इसी कारण से इसमें विभिन्न प्रकार से शाखाओं का निर्माण हुआ और इसका आरेख निम्न है।
- इस फाउंडेशन में एक बालक या प्रतिभागी अपने आप का मूल्यांकन कर पाता है।
- जिससे वह भविष्य में होने वाले अधिगम की दिशा में और अधिक सकारात्मक होता है।
अभिक्रमित अनुदेशन के गुण
- यह मनोवैज्ञानिक विधि है।
- दूरस्थ शिक्षा के लिए विशेष उपयोगी है।
- बालक में स्वाध्याय स्वप्रेरणा एवं स्व अनुदेशन को जन्म देती है।
- युवाओं में शिक्षा प्रसार में सहयोगी है।
- यह विधि एक बालक को समस्या समाधान के गुण प्रदान करती है।
अभिक्रमित अनुदेशन के दोष Abhikramit Anudeshan Vidhi
- समय अधिक खर्च होता है।
- परिणाम देरी से आते हैं
- विद्यार्थी में आलस्य को जन्म देती है।
- कई बार अशुद्ध ज्ञान पैदा हो जाता है।
FAQ
ANS. इस अनुदेशन को नॉर्मल क्राउडर ने 1960 में दिया।
ANS. रेखीय अभिक्रमित अनुदेशन
शाखीय अभिक्रमित अनुदेशन
गणितीय अभिक्रमित अनुदेशन
कंप्यूटरीकृत अभिक्रमित अनुदेशन।
ANS. यह अनुदेशन 1954 में स्किनर व हॉलैंड ने दिया।
ANS. रेखीय अभिक्रमित में मूल्यांकन की व्यवस्था का अभाव है इसलिए यह अधिक सफल नहीं माना जाता।
ANS. यह मनोवैज्ञानिक विधि है।
दूरस्थ शिक्षा के लिए विशेष उपयोगी है।
बालक में स्वाध्याय स्वप्रेरणा एवं स्व अनुदेशन को जन्म देती है।
युवाओं में शिक्षा प्रसार में सहयोगी है।
यह विधि एक बालक को समस्या समाधान के गुण प्रदान करती है।
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