समवाय विधि और द्विभाषी विधि | हिंदी शिक्षण विधियाँ

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समवाय विधि और द्विभाषी विधि | हिंदी शिक्षण विधियाँ : – इसमें Samvay Vidhi Or Dvibhashi Vidhi के बारे में विस्तृत जानकरी दी गई है जो की हिंदी भाषा की महत्तवपूर्ण शिक्षण विधियाँ है। इस भाग में समवाय विधि और द्विभाषी विधि को अच्छे से उदहारण देकर के समझाया गया है तथा इन विधियों के लिए किस किस मनोवैज्ञानिक ने अच्छे से कार्य किया है उसका भी वर्णन है।


समवाय विधि

  • इसका / समवाय से अभिप्राय उस शिक्षा व्यवस्था से है, जिसमें एक बालक को अपने सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, व्यावसायिक एवं औद्योगिक क्षेत्रों को सम्मिलित करते हुए शिक्षा प्रदान की जाए
  • जिससे कि एक बालक शिक्षा प्राप्ति के बाद उस दिशा में प्रगति कर सकें।
  • जिसके लिए वह अपने सामाजिक जीवन और सामाजिक व्यवहारों को समझते हुए समायोजित या संतुलित जीवन का आधार प्राप्त कर सकें।
  • सबसे पहले इस प्रकार का विचार 19वीं सदी में फ्रोबेल के द्वारा दिया गया था जिन्होंने कहा था “बालक को जीवन केंद्रित शिक्षा दी जानी चाहिए।”
  • बीसवीं सदी के प्रारंभ में अमेरिकी विद्वान जॉन डीवी ने सामंजस्यीकरण की शिक्षा का विचार दिया जिनके अनुसार एक बालक की शिक्षा का उद्देश्य उसको सामाजिक वातावरण में संतुलित बनाए रखने से संबंधित हो।
  • उपरोक्त विचारों से प्रभावित होकर थार्नडाइक, स्कैनर एवं गेट्स आदि ने समवाय का विचार दिया।
  • जिनके अनुसार तात्कालिक वातावरण को अथवा समसामयिक परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए शिक्षा की व्यवस्था हो।
  • उपयुक्त विचारों का प्रभाव भारतीय दार्शनिक गांधीजी पर आया जिन्होंने 1937 में बुनियादी शिक्षा की अवधारणा दी।
  • गांधी ने अपने अभिन्न मित्र डॉ जाकिर हुसैन को वर्धा में रहते हुए इस अवधारणा को आगे बढ़ाने के लिए कार्य सौंपा।
  • जहां उन्होंने 1937 से 1939 के बीच कार्य करते हुए अवधारणा को भारतीय शिक्षा में समाहित किया

द्विभाषी विधि Samvay Vidhi Or Dvibhashi Vidhi

भाषा शिक्षण की एक नवाचारी विधि है जिसके अनुसार ऐसा माना जाता है कि यदि एक बालक को नवीन भाषा सिखाते समय उसके शब्द और वाक्य अलग-अलग सिखाने के स्थान पर 2 भाषाओं को सम्मिलित करते हुए वाक्य बनाकर यदि बार-बार अभ्यास करवाते हैं तो रोचकता पूर्ण तरीके से एक बालक कम समय में अन्य भाषा का वाक्य बनाना सीख जाता है अथवा मौखिक रूप से अन्य भाषा बोलने लग जाता है।

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मान लीजिए एक बालक को लो आम अंग्रेजी में सिखाना है तो निम्न अभ्यास करवा सकते हैं

  • लो आम।
  • लो MANGO
  • TAKE आम
  • TAKE MANGO.

यह विधि उस समय भी उपयोगी होती है जब एक वक्ता और श्रोता समूह में दोनों की भाषा अलग अलग हो तो वक्ता के विचारों को श्रोता तक पहुंचाने के लिए उनके बीच एक दुभाषिया काम करता है, जो वक्ता के बोलने के बाद उसके विचारों को श्रोताओं के समझ में आने वाली भाषा में बदल कर बताता है।

FAQ :-

1. जीवन केन्द्रित शिक्षा का विचार सबसे पहले किसने दिया था ?

ANS. 19वीं सदी में फ्रोबेल के द्वारा दिया गया था

2. गांधी ने बुनयादी शिक्षा की अवधारणा कब दी?

ANS. गाँधी ने 1937 में बुनियादी शिक्षा की अवधारणा दी।

3. बुनयादी शिक्षा या जीवन केन्द्रित शिक्षा भारतीय शिक्षा मे किसने समाहित की ?

ANS. डॉ जाकिर हुसैन

4. द्विभाषी विधि क्या है ?

ANS. भाषा शिक्षण की एक नवाचारी विधि है जिसके अनुसार ऐसा माना जाता है कि यदि एक बालक को नवीन भाषा सिखाते समय उसके शब्द और वाक्य अलग-अलग सिखाने के स्थान पर 2 भाषाओं को सम्मिलित करते हुए वाक्य बनाकर यदि बार-बार अभ्यास करवाते हैं तो रोचकता पूर्ण तरीके से एक बालक कम समय में अन्य भाषा का वाक्य बनाना सीख जाता है अथवा मौखिक रूप से अन्य भाषा बोलने लग जाता है।

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